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मुद्दा: डिजिटल अंतर मिटाने का वक्त, असमानता की खाई को पाटना बड़ी चुनौती

patralekha chatterjee पत्रलेखा चटर्जी
Updated Fri, 12 Jan 2024 07:48 AM IST
सार
युवा कौशल बढ़ाने के लिए डिजिटल इंडिया के तहत कई कार्यक्रम चल रहे हैं। पर उत्तर व दक्षिण तथा पुरुषों व महिलाओं में अब भी भारी असमानता है।
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digital india programme youth skills development digital divide North-South and men-women
Digital India Scheme - फोटो : Istock

विस्तार
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नए वर्ष में जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव करीब आते जाएंगे, सियासी गर्मी बढ़ती जाएगी। इस दौरान कई गैर-जरूरी मुद्दे बहस के केंद्र में आ सकते हैं, जिससे बाकी मुद्दों को विमर्श से बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन एक ऐसा मुद्दा है, जो देश के भविष्य के साथ जुड़ा है। यह है-मानव पूंजी। भारत एक युवा राष्ट्र है, जहां औसत उम्र मात्र 28 वर्ष है। देश के जनसांख्यिकीय लाभ के बारे में बातें होती हैं, पर यह लाभ मिलेगा ही, इसकी गारंटी नहीं है, क्योंकि युवाओं का एक विशाल बहुमत अब भी अपनी पूरी क्षमता का एहसास नहीं कर पा रहा है।



मानव पूंजी की कमी इसका एक प्रमुख कारण है। शिक्षा और विपणन कौशल मानव पूंजी के प्रमुख तत्व हैं। इसके बिना बदलती विश्व व्यवस्था में उभरते हुए नए अवसरों का लाभ नहीं उठाया जा सकता। थोड़े लोग हैं, जो इन नए अवसरों के लिए जरूरी कौशल से लैस हैं और उनका लाभ उठा रहे हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि इस वर्ष हम बाकी लोगों के बारे में विचार करेंगे, जो देश में और देश के बाहर उभरते अवसरों का लाभ उठाने के योग्य नहीं हैं।


ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में रॉयल बैंक रिसर्च प्रोफेसर ऑफ इकनॉमिक्स अमर्त्य लाहिड़ी ने हाल ही में कहा है, 'हर साल भारत की श्रम शक्ति में 80 लाख से एक करोड़ तक नए श्रमिक जुड़ते हैं। एक दशक तक यह गति जारी रहेगी। इन नए श्रमिकों में से अधिकांश हाई स्कूल या बेहतर शैक्षणिक योग्यताओं से लैस होकर आ रहे हैं। इसलिए उनकी अपेक्षाएं आनुपातिक रूप से ज्यादा हैं और भारत की उपलब्धि के अंततः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने के सामान्य राष्ट्रीय आख्यान से और ज्यादा उत्साहित हैं।'

पर आकांक्षाएं हमेशा जमीनी वास्तविकता से मेल नहीं खातीं। लाहिड़ी के मुताबिक, 'असली समस्या कौशल की कमी की है। इस समय भारत करीब 22 लाख ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और पीएच.डी. धारक पैदा करता है। दुर्भाग्य से उनमें से अधिकांश प्रशिक्षण पाने के बावजूद रोजगार के लिए अयोग्य हैं। कुशल श्रमिकों का एक समूह तैयार करने के लिए उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के लिए निरंतर निवेश की आवश्यकता होगी, ताकि उन्हें इन उच्च मानव पूंजी के क्षेत्रों में अच्छे वेतन की नौकरी मिल सके।'

हाल के वर्षों में युवाओं को हुनरमंद बनाने और उनका कौशल बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। डिजिटल इंडिया पहल के तहत भी कई कार्यक्रम चल रहे हैं। लाखों युवा अब डिजिटल रूप से अधिक समझदार व शिक्षित हैं, पर देश के विभिन्न हिस्सों में अंतर बना हुआ है। जैसे, उत्तरी और दक्षिणी राज्यों और पुरुषों एवं महिलाओं के बीच भारी असमानता है। लाखों भारतीय अब भी स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते।

मई, 2023 तक देश में साइबर सुरक्षा पेशेवरों के लिए 40,000 रिक्तियां थीं, पर भारतीय भर्ती और मानव संसाधन सेवा कंपनी टीमलीज सर्विसेज की सहायक कंपनी टीमलीज डिजिटल के अनुसार, कौशल की भारी कमी के कारण इनमें से 30 फीसदी रिक्तियां भरी नहीं जा सकीं। पिछले वर्ष मार्च में सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी मल्टीपल इंडिकेटर सर्वे के अनुसार, भारत को सूचना एवं संचार तकनीक (आईसीटी) से संबंधित कुशल पेशवरों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। 11,63,416 लोगों के सैंपल पर आधारित इस डाटा से पता चला कि सभी आयु समूहों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के पास आईसीटी कौशल अधिक है।

सर्वे में शामिल 15 से 29 वर्ष के आयु के और केवल 27 फीसदी लोगों ने कहा कि वे दस्तावेज, तस्वीर और वीडियो के साथ ईमेल भेजना जानते हैं। यदि आप इसे राज्यवार देखें, तो तमिलनाडु में 47.1 फीसदी ग्रामीण युवा यह कर सकते हैं, जबकि बिहार में मात्र 17.8 फीसदी। विशेष प्रोग्रामिंग भाषा का उपयोग कर कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करने वालों का प्रतिशत कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में ज्यादा है। देश की एक चौथाई से ज्यादा आबादी 15 से 29 वर्ष के युवाओं की है। इस आबादी में आईसीटी कौशल की कमी तेजी से बढ़ती डिजिटल दुनिया में बड़ी चुनौती है। इस वर्ष इस पर ध्यान केंद्रित करना होगा कि हर युवा को उसकी क्षमता और आकांक्षाओं पर खरा उतरने में कैसे मदद की जा सकती है।

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