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कानून: आपका डाटा कितना सुरक्षित, नया विधान साबित हो सकता है महत्वपूर्ण
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सार
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Digital Data Protection Bill
- फोटो :
Istock
विस्तार
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बुधवार को हुई बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक को मंजूरी दी है, जिसे सरकार 20 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में कानून की शक्ल दे सकती है। देश में व्यक्तिगत डाटा और निजता की सुरक्षा को लेकर कानून की लंबे समय से मांग को देखते हुए यह अहम कदम होगा।
भारत आंकड़ों की सुरक्षा के मुद्दे पर यूरोप और अमेरिका से काफी पीछे चल रहा है। डाटा संरक्षण और गोपनीयता पर यूरोप में 2018 से ही कानून लागू है, लेकिन इंटरनेट जिस तेजी से दुनिया बदल रहा है, उससे नया बहुत जल्दी पुराना होता जा रहा है। कृत्रिम मेधा (एआई) प्रौद्योगिकी आधारित भाषा मॉडल के बढ़ते इस्तेमाल से भारत में आ रहे व्यक्तिगत डाटा और निजता सुरक्षा कानून में कई अन्य नए मुद्दों को शामिल किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि इस भाषा मॉडल में मुख्य भूमिका इंटरनेट पर उपलब्ध डाटा की ही है। ओपन एआई और गूगल के चैटजीपीटी ने आंकड़ों के खेल को दिलचस्प बना दिया है। ध्यान रहे कि भारत इंटरनेट का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।
इसी बीच, गूगल ने अपनी गोपनीयता नीति में परिवर्तन किए हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि गूगल हर उस सामग्री को पढ़ने में सक्षम है, जो आपने गूगल के किसी उत्पाद पर पोस्ट की है, और वह सारी सामग्री अब कंपनी की संपत्ति है, और उन सारी सामग्रियों को वह एक चैटबॉट को भी भेज रही है। यह नीति आगे बताती है कि गूगल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का उपयोग एआई मॉडल्स को प्रशिक्षित करने और गूगल ट्रांसलेट, बार्ड और क्लाउड एआई क्षमताओं से लैस उत्पादों और सुविधाओं को बेहतर बनाने में कर सकता है।
गूगल अपनी निजता नीति को समय-समय पर परिवर्तित करता रहता है। यह वाक्यांश स्पष्ट करता है कि इंटरनेट की दिग्गज कंपनी का एआई सिस्टम अपनी पिछली नीति में संशोधन करते हुए आपके ऑनलाइन पोस्ट किए गए विचारों का उपयोग कर सकता है। यह नया वाक्यांश हमें बताता है कि पिछली नीति में जहां ऑनलाइन पोस्ट की गई सामग्री का उपयोग केवल गूगल अनुवाद, बार्ड और क्लाउड एआई के लिए ही था, लेकिन अब यह उल्लेख किया गया है कि डाटा का उपयोग एआई मॉडल के बजाय भाषा मॉडल के लिए किया जाएगा। गोपनीयता नीति में यह प्रावधान थोड़ा विचित्र है। आमतौर पर ये नीतियां बताती हैं कि कोई कंपनी आपके द्वारा ऑनलाइन पोस्ट किए गए डाटा का उपयोग कैसे करती है। पर इस मामले में ऐसा लगता है कि गूगल को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डाटा को इकट्ठा करने और उसका उपयोग कृत्रिम मेधा परीक्षण क्षेत्र में करने का एकाधिकार मिला हुआ है।
यद्यपि नीति कई मामलों को स्पष्ट करती है, लेकिन यह कुछ रोचक सवाल भी उठाती है। जब हम इंटरनेट पर कुछ पोस्ट या लेखन करने के लिए सक्रिय होते हैं, तो हम यह मानकर चलते हैं कि जो कुछ सार्वजनिक रूप से पोस्ट होता है, वही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध भी होता है। लेकिन अब हमें यह भी समझना होगा कि प्रश्न केवल एक सार्वजनिक पोस्ट के बारे में नहीं है, बल्कि यह है कि ऑनलाइन कुछ भी लिखने का क्या अर्थ है। अब यह भी संभव है कि आपके द्वारा दस साल की उम्र में लिखी गई लंबे समय से विस्मृत कर दी कोई पोस्ट या शायद आपके द्वारा की गई किसी रेस्तरां की समीक्षा का इस्तेमाल भी बार्ड और चैट जीपीटी जैसे बड़े एआई मॉडल भाषा मॉडल्स को विकसित करने में कर रहे हों।
अब यहां यह प्रश्न उठना भी लाजिमी है कि ये मॉडल अपनी जानकारी कहां से प्राप्त करते हैं। इसका जवाब यह है कि गूगल के बार्ड या ओपनएआई के चैटजीपीटी ने अपनी भाषा मॉडल्स को प्रशिक्षित करने के लिए इंटरनेट पर ऑनलाईन पोस्ट की गई विशाल सामग्री का इस्तेमाल किया है। लेकिन अब भी स्पष्ट नहीं है कि ऐसी प्रक्रिया कानूनी है या नहीं, और इस सामग्री पर कॉपीराइट किसका होगा। यहां एक और महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि कृत्रिम मेधा (एआई) प्रौद्योगिकी आधारित भाषा मॉडल के सारे जवाब किसी न किसी साहित्यिक चोरी से निकले हैं। ऐसे बहुत से सारे सवालों के जवाब अभी दिए जाने हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यक्तिगत डाटा और निजता कानून में इन मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाएगा।