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उम्मीद पर दुनिया कायम है: एससीओ में पाकिस्तान ने चली चाल, आतंकवाद पर भारत ने सुझाया एक समाधान
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सार
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ भारतीय विदेश मंत्री
- फोटो :
एएनआई
विस्तार
एक बार विदेश में आयोजित सार्क शिखर सम्मेलन में एक सार्क देश के वरिष्ठ विदेशी प्रतिनिधि ने मुझसे शिकायत की कि जब भी सार्क शिखर सम्मेलन होता है, तो इसे पाकिस्तान और भारत द्वारा 'हाईजैक' कर लिया जाता है, क्योंकि सबकी निगाहें, खासकर मीडिया की, इन्हीं दोनों पड़ोसी देशों पर टिकी होती हैं और अन्य सार्क देशों को नजर अंदाज कर दिया जाता है!
यह बात इस बार भी सही साबित हुई, जब पहली बार यह खबर पाकिस्तान पहुंची कि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में हिस्सा लेने के लिए इस्लामाबाद आ रहे हैं। मीडिया में इस बात को लेकर काफी उत्साह था, क्योंकि करीब एक दशक बाद कोई भारतीय विदेश मंत्री पाकिस्तान का दौरा कर रहा था। इससे पहले दिवंगत सुषमा स्वराज 2015 में इस्लामाबाद आई थीं। मुझे याद है कि दिवंगत सुषमा स्वराज के साथ मेरी मुलाकात हमेशा सुखद होती थी, क्योंकि वह उर्दू कविताओं की बहुत अच्छी जानकार थीं और अतीत के महान उर्दू शायरों की कविताएं सुनाती थीं। वास्तव में एस. जयशंकर तब उनके विदेश सचिव थे और उनके साथ यहां आए थे। हालांकि पाकिस्तान में इस बात को लेकर थोड़ा संदेह था कि हाल ही में भारत और कनाडा के बीच हुए विवाद के बाद जयशंकर एससीओ की बैठक में हिस्सा नहीं भी ले सकते हैं। इन सबके बावजूद उनका पाकिस्तान पहुंचना इस बात का बहुत मजबूत संदेश था कि भारत एससीओ की बैठक को कितना महत्वपूर्ण मानता है।
भारतीय विदेश मंत्री के पाकिस्तान आने से कुछ दिन पहले से ही अखबारों में लेख छपने लगे थे, जिनमें से कुछ में उन्हें संबोधित करते हुए भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य पर चर्चा की गई थी और कहा गया था कि भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होना चाहिए। यही बात प्रमुख अखबारों के संपादकीयों में भी दिखाई पड़ी, जिनमें दोनों देशों से भारतीय विदेश मंत्री की यात्रा का लाभ उठाने के लिए कहा गया। लेकिन दोनों देशों ने यह साफ कर दिया कि यह द्विपक्षीय यात्रा नहीं है और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता नहीं होगी। कई विशेषज्ञों ने भी जयशंकर के लिए संदेश दिए, जिनका मानना था कि कम से कम कुछ मुद्दों पर, जो इस महाद्वीप के लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं, बातचीत होनी चाहिए। पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री मरियम नवाज ने प्रस्ताव दिया कि पराली जलाने, धुआं और प्रदूषण, जो दोनों मुल्कों के पंजाब को एक ही मौसम में प्रभावित करते हैं, ऐसा मुद्दा है, जिस पर दोनों मुल्क तालमेल बना सकते हैं। विश्व बैंक के मुताबिक, दोनों मुल्कों के 1.5 अरब लोग अत्यधिक प्रदूषण से पीड़ित हैं।
एक अन्य प्रस्ताव यह था कि पाकिस्तान, जो अभी तक पोलियो से मुक्त नहीं हो पाया है तथा अकेले इस वर्ष वहां इसके 30 से अधिक मामले सामने आए हैं, वह भारत के अच्छे कार्यों से सीख सकता है, जिसने देश से पोलियो को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया है। इससे भारत के प्रति पाकिस्तानियों की दिलचस्पी का पता चलता है। अन्य देशों के प्रतिनिधियों में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था। इसका प्रमुख कारण है कि अन्य एससीओ देशों के साथ पाकिस्तान का कोई लंबित मुद्दा नहीं है और किसी अन्य एससीओ देशों के साथ राजनयिक संबंध इतने खराब नहीं हैं। इन दोनों देशों का अभी न तो इस्लामाबाद और न ही नई दिल्ली में कोई स्थायी उच्चायुक्त है। एससीओ बैठक में हिस्सा लेने कई प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और अन्य वरिष्ठ गणमान्य आए थे, लेकिन कैमरा और मीडिया की दिलचस्पी केवल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर में ही थी और यह समाचारों के कवरेज में भी दिखा।
अतिथियों के साथ विभिन्न देशों से मीडिया की बड़ी टीमें आई थीं, लेकिन केवल भारतीय पत्रकारों की ही पूछ थी। इसका कारण यह था कि दोनों देशों का मीडिया अपने देशों के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करने और उन पर बहस करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित था। एस. जयशंकर और पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व के बीच हुई बैठकों के नतीजों को देखें, तो यह बहुत सकारात्मक और निश्चित रूप से अच्छा था। इस्लामाबाद में जब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा आयोजित औपचारिक रात्रिभोज के लिए गए, तो लाइव कवरेज में शरीफ को गर्मजोशी से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाते हुए दिखाया गया और अगली सुबह सम्मेलन के शुरू होने पर भी ऐसा ही हुआ, जब दोनों राजनेताओं ने कुछ गुफ्तगू की। सूत्रों के मुताबिक जब नेता लाउंज एरिया में मिले, तो जयशंकर ने कई पाकिस्तानी राजनेताओं से बातें भी कीं। रात्रिभोज के समय भी वह उप प्रधानमंत्री इशाक डार के बगल में बैठे थे और खाते हुए एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। हालांकि भारतीय विदेश मंत्री द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री को उनके आतिथ्य और सौजन्यता के लिए ट्वीट करके धन्यवाद देने भर से दोनों मुल्कों के बीच जारी गतिरोध में कोई बदलाव नहीं आया।
पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की इस बात के लिए आलोचना हो रही है कि उन्होंने उद्घाटन भाषण में जम्मू-कश्मीर का उल्लेख क्यों नहीं किया। सम्मेलन में अपने भाषण में जयशंकर ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना भारत के रुख को दोहराया। उन्होंने पड़ोसियों के बीच ईमानदार बातचीत की ओर इशारा किया और इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद जैसे मुद्दों का समाधान क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
गौरतलब है कि सम्मेलन में भारत ही एकमात्र ऐसा देश था, जिसने एससीओ घोषणापत्र पर प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के समय चीन की वन बेल्ट ऐंड वन रोड परियोजना का समर्थन करने से इन्कार कर दिया था। मुझे लगता है कि यदि दोनों पक्षों में राजनीतिक इच्छाशक्ति है और यदि भारतीय विदेश मंत्री की यात्रा को वास्तव में सकारात्मक माना जा सकता है, तो द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने का सबसे आसान तरीका दोनों उच्चायुक्तों और अन्य वरिष्ठ राजनयिकों की वापसी होगी। दोनों मुल्कों के अरबों नागरिक दोनों देशों के राजनीतिक मतभेदों के बंधक नहीं रह सकते। अब समय आ गया है कि दोनों मुल्क आपस में बातचीत शुरू करें।