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मजा लीजिए इस मौसम का भी

अशोक सण्ड Updated Mon, 03 Jun 2013 10:14 PM IST
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अखबारों में खबर पढ़ी कि तापमान रिकॉर्ड तोड़कर अड़तालीस डिग्री तक पहुंच गया, तो अपने इलाहाबादी सखा से उसकी राजी-खुशी दरयाफ्त करने के लिए फोन किया कि क्या हाल है, कैसी कट रही है। लेकिन फोन करना भारी पड़ गया। पूछते ही उबल पड़ा वह, कट आपकी रही होगी, यहां तो काटे नहीं कट रही है।

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तप तो दिल्ली भी रही है, पारा मई-जून में नहीं चढ़ेगा, तो क्या दिसंबर में चढ़ेगा- परिहास किया मैंने। तुनकते हुए बोले श्रीमंत, एक तो आसमानी मुसीबत, दूसरा सुल्तानी सितम! बिजली आवारा संतान सरीखी जब मन होता है आती है और जब मन हुआ, तो चली जाती है। आप नेशनल कैपीटल में रहते हो, इसलिए दिल्लगी सूझ रही है।
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पेश्तर इसके कि पार्टीशन के पहले भी शिद्द्त से पड़ने वाली इस जालिम गर्मी की बावत इलाहाबादी जज साहब का कलाम ‘पड़ जाए अभी आबले अकबर के बदन में/ पढ़कर जो कोई फूंक दे अप्रैल मई जून ’ सुनाता सखा ने काट दिया फोन।

जेठ, बैशाख तो तपने वाले सनातनी महीने ठहरे। सुबूत के लिए उधार ले रहा हूं यश मालवीय की पंक्तियां-आपस में करने लगीं किरणें क्रूर सलाह, बड़े सबेरे हो गया सूरज तानाशाह। गंगा मैया को इसी तपिस गर्दो-गुबार वाले जेठ महीने में राहत का ख्याल कर स्वर्ग छोड़ धरती पर आना पड़ा।

गर्मी का अलग ही रोआब और रुतबा होता है। फिर चाहे वह मौसम की हो अथवा पैसों और पद की। नेचर की तो फिर भी बर्दाश्त की जा सकती है, दिमाग की गर्मी वाले से अगर कहीं पाला पड़ गया, तो संबंध राख होने की आशंका बनी रहती है। मगर शुक्ल पक्ष भी है इस मौसम का। आम भले ही खास लोगों की पहुंच में हो, तरावट के लिए तरबूज-खरबूजे इसी गर्मी की पैदावार हैं। तरबूज भले साइज में छोटे हो गए हों, खरबूजा आज भी खरबूजे को देखकर ही रंग बदलता है।

इन दिनों तपिश वाली गर्मी है। फिर उमस भरी चिपचिपाने वाली, आगे भी मुसीबतों के धारावाहिक-घमंडी घन गरजेंगे। पिया-विहीनों को डर लगेगा, बजबजाएंगी नालियां। यह कहने का मौका भी नहीं दिया सखा ने कि इस गर्मी में फूलते चटक गुलमोहर, अमलताश तपती दुपहरी को बदस्तूर ठेंगा दिखाते हैं। सोचो उनकी, जिन्हें न कूलर से वास्ता है और न फ्रिज का ठंडा पानी, फिर भी चढ़ते पारे में बिन सन्सक्रीम लोशन और गॉगल्स के हमारे-आपके लिए श्रम करते हैं। मजा लीजिए इसका भी।

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