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बिहार चुनाव: विपक्ष का अंकगणित विफल, जाति-आधारित लामबंदी पूरी तरह से फेल

शेखर अय्यर Published by: लव गौर Updated Sat, 15 Nov 2025 06:41 AM IST
सार
महागठबंधन का प्रदर्शन एक अजीबोगरीब ठहराव को दर्शाता है। छोटी पार्टियों को शामिल करने के बावजूद, वह अपने 2020 के आंकड़े को दोहराने में भी नाकाम रहा। जाति-आधारित लामबंदी का विपक्ष का अंकगणित विफल रहा।
 
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opposition arithmetic of caste-based mobilization failed in Bihar election Result
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले रोड शो के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी (फाइल) - फोटो : एएनआई

विस्तार
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अगर किसी चुनाव में लोगों का किसी एक व्यक्ति पर भरोसा अहम कारक बना, तो वह बिहार चुनाव ही है। यही कारण है कि राजग ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में 200 से ज्यादा सीटें जीतकर इतिहास रच दिया है। राजग का चुनावी ताना-बाना नीतीश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और मुख्यमंत्री की लोकप्रियता पर टिका था। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। जब से भाजपा ने जद(यू) से हाथ मिलाया है, वह बिहार की सत्ता में लगातार जूनियर पार्टनर रही है। इस बार भाजपा जद (यू) से ज्यादा सीटें पाने में कामयाब रही।


महागठबंधन का प्रदर्शन एक अजीबोगरीब ठहराव को दर्शाता है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए युवा और अधिक ऊर्जावान विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश नाकाम रही। विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) जैसी छोटी पार्टियों को शामिल करने के बावजूद, गठबंधन अपने 2020 के आंकड़े को दोहराने में नाकाम रहा।


जाति-आधारित लामबंदी का विपक्ष का अंकगणित विफल रहा। इसके विपरीत, राजग ने अपने वोट शेयर में दस प्रतिशत का जबर्दस्त उछाल दर्ज किया। यह काफी हद तक लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की राजग के पाले में वापसी से प्रेरित था, जिसने अकेले 5.5 प्रतिशत वोटों का योगदान दिया। इसके अलावा, भाजपा और जद (यू), दोनों ने अपने वोट शेयर में क्रमशः डेढ़ और तीन प्रतिशत की वृद्धि की।

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और ओवैसी की एआईएमआईएम ने मिलकर करीब 3.5 फीसदी वोट हासिल किए। महागठबंधन का वोट प्रतिशत महज 37.3 प्रतिशत ही रह गया, जो लगभग जनसुराज पार्टी के आसपास ही है। हालांकि, राजद ने भी 2.5 करोड़ नौकरियां, 200 यूनिट बिजली और हरेक महिला को 2,500 रुपये देने का वादा किया था। लेकिन ये सारे वादे नीतीश कुमार की कल्याणकारी योजनाओं के सामने फीके पड़ गए।

शुरुआत में, तेजस्वी यादव का नौकरी देने के वादे ने युवाओं को आकर्षित तो किया, लेकिन उसका कोई खास असर नहीं पड़ा। तेजस्वी यादव मुस्लिम-यादव के ढांचे से बाहर निकलने में कामयाब नहीं हो सके और नीतीश से काफी पीछे रह गए। वामपंथियों ने भी कोई खास प्रभाव नहीं डाला। सीपीआई (एम-एल) लिबरेशन ने 2020 में 12 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसका प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा। महागठबंधन के उप-मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार, विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश साहनी ने खुद चुनाव भी नहीं लड़ा, जो शायद उनके मतदाताओं को रास नहीं आया।
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