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Warning System : चेतावनी प्रणाली से बचती जान; जनहानि कम करने में निभा रहीं अहम भूमिका
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आपदा
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अमर उजाला
विस्तार
पिछले हफ्ते महाराष्ट्र में बचावकर्मी मुश्किल इलाकों और खराब मौसम में सौ लोगों की तलाश करते हुए जूझ रहे थे, जिनके भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन में फंसे होने की आशंका थी, जिनमें कई लोगों की मौत हो गई थी। मुंबई से सौ किलोमीटर से भी कम दूरी पर इरशालवाडी के सुदूर पहाड़ी इलाके में आधी रात को जमीन ढह गई थी। लेकिन अब ऐसी आपदा कोई नई बात नहीं है। मणिपुर की हिंसा और दिल्ली की राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद यह पहले पन्ने की खबर बनी। जलवायु परिवर्तन के दौर में यह हैरान करने वाली बात नहीं है।
हाल ही में जारी एशिया-प्रशांत आपदा रिपोर्ट (2023) के मुताबिक, एशिया-प्रशांत क्षेत्र दुनिया में सर्वाधिक आपदा संभावित क्षेत्र बना हुआ है, जहां 1970 के बाद से आपदाओं में 20 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 140 से ज्यादा आपदाएं आईं, जिनमें 7,500 से ज्यादा मौतें हुईं, 6.4 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए और अनुमानतः 57 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
एशिया-प्रशांत आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की यह रिपोर्ट हमें बताती है कि पिछले दशकों में आपदाओं के प्रभाव और भयावहता से संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक खतरों को और भी अधिक निरंतर एवं तीव्र बना रहा है, जिसमें बाढ़, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, लू, सूखा और भूकंप शामिल हैं, जिससे जनहानि, विस्थापन, स्वास्थ्य की क्षति होती है और लाखों लोग गरीबी में चले जाते हैं। इसके अलावा, खाद्य एवं ऊर्जा व्यवस्था बाधित होती है, अर्थव्यवस्थाएं अस्थिर हो रही हैं और समाज कमजोर हो रहे हैं। रिपोर्ट चेताती है कि आपदा के मौजूदा प्रमुख केंद्रों में जोखिम बढ़ने के अनुमान हैं और आपदा के नए केंद्र सामने आएंगे।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बहु-आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली आपदा से होने वाले नुकसान को 60 फीसदी तक कम कर सकती है। ऐसी प्रणाली जान-माल सुरक्षा का एक लागत प्रभावी तरीका है और निवेश पर दस गुना रिटर्न मिलता है।
हम जानते हैं कि भारत बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी चरम जलवायु घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 35 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 अब अत्यधिक जल-मौसमी आपदाओं एवं उनके मिश्रित प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं। भारत की 80 फीसदी आबादी इन्हीं संवेदनशील इलाकों में रहती है। भारत पूर्व चेतावनी प्रणाली में निवेश करके अपनी तैयारी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब भी काफी कमियां मौजूद हैं। चूंकि आपदाएं अकेले नहीं आतीं, इसलिए चुनौतियां बढ़ जाती हैं। अतः हमें नुकसान को कम करने के लिए जन-केंद्रित, बहु-आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता है। भारत में चक्रवातों के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली बाढ़ की तुलना में बेहतर काम करती है। एक प्रमुख समस्या ऐसी चेतावनी प्रणालियों के लिए आवंटित धन का कम उपयोग है। सीईईडब्ल्यू का कहना है कि केवल छह भारतीय राज्यों ने बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए आवंटित धन का मामूली उपयोग किया है।
पूर्व चेतावनी प्रणालियां पहले से कहीं अधिक लोगों की जान बचा रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि खतरनाक क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि और जल-मौसम संबंधी आपदाओं की बढ़ती तीव्रता और आवृत्ति के कारण अधिक लोग आपदाओं की चपेट में हैं। जलवायु परिवर्तन के समय में हमें बार-बार ऐसी आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए हमें तैयार रहना चाहिए। पूर्व चेतावनी प्रणालियों के साथ-साथ हमें जलवायु से अप्रभावित रहने वाले बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो जलवायु संबंधी चरम स्थितियों के कारण आपदा के जोखिम को कम कर सकते हैं। चूंकि इस वर्ष भारत जी-20 शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष है, इसलिए 1999 के बाद पहली बार आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए एक कार्य समूह का गठन किया गया है। यह एक अच्छा कदम है, लेकिन इस नेक इरादे को जमीनी स्तर पर भी अमल में लाना चाहिए।