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मुद्दा: क्या हम तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? कहीं परदे के पीछे तख्तापलट की पटकथा तो नहीं लिखी जा रही
डॉ. एसडी वैष्णव
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Tue, 24 Jun 2025 07:21 AM IST
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सार
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इस्राइल-ईरान तनाव
- फोटो :
PTI
विस्तार
पश्चिम एशिया में युद्ध की विभीषिका के बीच यह चर्चा आम है कि इस्राइल जैसा छोटा-सा देश, जो मुस्लिम देशों से घिरा होने के बावजूद, ईरान जैसे ताकतवर मुस्लिम राष्ट्र से युद्ध भूमि में दो-दो हाथ कैसे कर पा रहा है। ईरान के प्रॉक्सी संगठनों-हमास, हिजबुल्ला और हूती विद्रोहियों को बैकफुट पर धकेलकर अब सीधे ईरान में बारूदी कोहराम मचा रखा है। यह कैसे संभव हो पा रहा है?
वर्तमान परिदृश्य में इसके चार कारण सीधे-सीधे नजर आते हैं-पार्श्व में अमेरिका, खुफिया एजेंसी मोसाद, इस्राइल डिफेंस फोर्स और उनका मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम। लेकिन, इनके अतिरिक्त एक महत्त्वपूर्ण कारण और है। वह भले ही युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं है, लेकिन उसके दंश ने यहूदियों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए फौलाद के समान मजबूत और साहसी बना दिया और वह है-‘होलोकॉस्ट’।
1940 के दशक में यूरोपीय यहूदियों का नरसंहार हुआ, जिसे होलोकॉस्ट के रूप में जाना जाता है। जर्मनी में 1933-45 तक तानाशाह शासक एडोल्फ हिटलर का शासन रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी जर्मन और उसके सहयोगियों ने करीब 60 लाख यहूदियों का नरसंहार किया था। इतिहास में यह एक ऐसी त्रासदी थी, जिसमें यहूदियों का ही नहीं, सोवियत बंदी, पोलिश और सोवियत नागरिकों का भी कत्लेआम हुआ। उस वक्त हिटलर के खौफ के कारण पोलैंड से कई नागरिक समुद्री मार्ग से भागकर गुजरात के जामनगर तट पहुंचे, जहां उन्हें तत्कालीन महाराजा दिग्विजय सिंह ने, जिन्हें हम जाम साहिब के नाम से भी जानते हैं, वर्षों तक अपने यहां शरण दी। यही कारण है कि आज पोलैंड में जाम साहिब का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
हिटलर के शासनकाल में पूरे यूरोप में नाजी विचारधारा ने यहूदियों की आजीविका छीन ली, उनके घर और प्रार्थना स्थल नष्ट करके उन्हें यातना शिविरों में कैद कर दिया गया। सितंबर 1939 में जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण ने यहूदियों के उत्पीड़न के साथ एक नई चरमपंथी सोच को भी जन्म दिया। यूरोपीय यहूदियों पर हुए अत्याचारों का जीवंत और रूह कंपा देने वाला चित्रण ऐनी फ्रैंक की डायरी में देखने मिलता है; जिसमें उसने एमस्टर्डम में प्रिंसेंग्राच पर स्थित एक गुप्त एनेक्स यानी ‘छिपा हुआ कमरा’ का उल्लेख किया है, जहां होलोकॉस्ट की शिकार ऐनी अपने परिवार के साथ एक बंदी के रूप में यातना से गुजरते हुए नाजी अत्याचारों की पराकाष्ठा को अपनी डायरी में शब्दबद्ध करती हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध मानव इतिहास का सबसे विनाशकारी युद्ध है, तो यहूदियों के लिए काला अध्याय भी। लाखों यहूदी मार दिए गए और जो बचे, उन्हें विस्थापन का दंश झेलना पडा। होलोकॉस्ट के लिए हिब्रू भाषा में ‘शोआह’ शब्द का जिक्र होता है, जो समग्र विनाश या आपदा के प्रतीकात्मक रूप में प्रयुक्त होता है। होलोकॉस्ट रूपी दर्दनाक घटना के बाद यहूदी समुदाय ने अपनी पहचान एवं संस्कृति को जिंदा रखने की दिशा में काम किया। भयंकर उत्पीड़न के उस नाजी दंश को जेहन में ताजा रखते हुए, एकजुटता, आत्मविश्वास, जिजीविषा एवं पुनर्निर्माण के संकल्प को जिंदा रखा। होलोकॉस्ट की घटना यहूदियों के राष्ट्र प्रेम को और मजबूत करती है। 1948 में हुई आधुनिक इस्राइल की स्थापना भी इसी का परिणाम है। 1959 में इस्राइल की राष्ट्रीय विधायिका नेसेट ने प्रतिवर्ष ‘होलोकॉस्ट स्मरण दिवस’ मनाने की घोषणा की, ताकि नाजी अत्याचारों की वह दास्तां उन्हें हमेशा याद रहे।
आज पश्चिम एशिया सुलग रहा है। इस्राइल-ईरान में भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ है। चाहे तेल अवीव हो या तेहरान, दोनों ओर के आम नागरिक मारे जा रहे हैं या विस्थापन को मजबूर हैं। इस्राइल-ईरान जंग के बहाने अमेरिका ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रमों पर रोक लगाना चाहता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस युद्ध के बरक्स हो सकता है, पर्दे के पीछे ईरान में तख्तापलट की पटकथा भी लिखी जा रही हो।
डोनाल्ड ट्रंप और नेतन्याहू ईरानी नागरिकों से तेहरान छोड़ने को भी कह चुके हैं। वहां से लोगों ने पलायन भी शुरू कर दिया है। बहरहाल, मनुष्यता दांव पर लगी है। संवाद करने के बजाय, क्या पश्चिम के बहाने हम तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? इन विकट हालात के बीच कवि बिलाल पठान ‘वास्कोडिगामा’ की एक कविता जेहन में ध्वनित हो रही है-‘युद्धों के निर्णय हमेशा शून्य आते हैं/एक दिन आग से मुठभेड़ करते हुए, पानी मारा गया/और एक दिन पानी से मुठभेड़ करते हुए, आग मारी गई।’