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रणजी क्रिकेटर रहे पीयूष पांडे का गुरुमंत्र: 'वन बॉल एट ए टाइम' जैसे फलसफे.. युवाओं को बड़ी सीख दे गया ये कलंदर
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Mayank Tripathi
Updated Fri, 24 Oct 2025 03:36 PM IST
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सार
पीयूष पांडे इस देश की ऐसी विभूति हैं, जिनके जीवन में कई ऐसे पहलू आए जो युवाओं को बड़ी सीख देता है। 70 साल की आयु में दुनिया को अलविदा कह गए इस किरदार के जीवन में क्रिकेट की भूमिका भी दिलचस्प रही है। जानिए क्या है पीयूष का 'वन बॉल एट ए टाइम' वाला फलसफा...
पीयूष पांडे
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
राजस्थान की राजधानी और गुलाबी नगरी जयपुर में रहने वाले संयुक्त परिवार में पले-बढ़े पीयूष पांडे विज्ञापन की दुनिया के ऐसे कलंदर रहे हैं जिनके बारे में बातें इतनी दिलचस्प और प्रेरक हैं, जो आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि इतिहास में एमए की डिग्री लेने के बाद उन्हें कलकत्ते में चाय की क्वालिटी का परीक्षण करने वाले की नौकरी मिली थी।
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'मुझे क्रिकेटर बनना था'
एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि युवावस्था में पीयूष ने रणजी क्रिकेट भी खेला था। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, मुझे क्रिकेटर बनना था, लेकिन नहीं बन पाया तो अब हर बार फ्रेश गार्ड लेता हूं। उन्होंने बताया था कि अंडर 22 का सीके नायडू टूर्नामेंट पहली बार खेला जा रहा था। वे सेंट्रल जोन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। क्रिकेट के दिग्गजों का जिक्र करते हुए पीयूष बताते हैं कि पश्चिम जोन से वेंगसरकर, संदीप पाटिल, नॉर्थ के लिए कपिल देव, अरुण लाल, दक्षिण से रॉजर बिन्नी जैसे नाम थे। इससे पहले वे दिल्ली यूनिवर्सिटी और सेंट स्टीफेंस कॉलेज की टीमों की कमान संभाल चुके थे।
एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि युवावस्था में पीयूष ने रणजी क्रिकेट भी खेला था। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, मुझे क्रिकेटर बनना था, लेकिन नहीं बन पाया तो अब हर बार फ्रेश गार्ड लेता हूं। उन्होंने बताया था कि अंडर 22 का सीके नायडू टूर्नामेंट पहली बार खेला जा रहा था। वे सेंट्रल जोन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। क्रिकेट के दिग्गजों का जिक्र करते हुए पीयूष बताते हैं कि पश्चिम जोन से वेंगसरकर, संदीप पाटिल, नॉर्थ के लिए कपिल देव, अरुण लाल, दक्षिण से रॉजर बिन्नी जैसे नाम थे। इससे पहले वे दिल्ली यूनिवर्सिटी और सेंट स्टीफेंस कॉलेज की टीमों की कमान संभाल चुके थे।
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पीयूष पांडे
- फोटो : अमर उजाला
नाकामी को स्वीकारने का हौसला, पीयूष ने बताया- यहीं मैं मात खा गया
अपनी युवावस्था में बतौर कप्तान रोहिंगटन बारिया इंटर यूनिवर्सिटी क्रिकेट ट्रॉफी जीतकर कामयाबी का स्वाद चख चुके पीयूष काफी सहजता के साथ अपनी खामियों को भी स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि टीम में उनकी भूमिका एक बल्लेबाज की थी, जो विकेटकीपिंग भी करता था। रणजी में पहुंचने के बाद सबने इसे मौके की तरह देखा और खुद के प्रदर्शन को निखारने पर ध्यान देने लगे। खुद और समकालीन क्रिकेटरों जो बाद के दिनों में दिग्गज सितारे बने, दोनों का अंतर बताते हुए पीयूष पांडे ने बताया, सबने रणजी को प्रदर्शन की पहली सीढ़ी की तरह देखा। मेरे दिमाग में आया कि अब तो पहुंच गए रणजी। यहीं मैं मात खा गया। मैंने मेहनत नहीं की। ये बात हमेशा याद रहती है कि किसी चीज की शुरुआत का मतलब किसी मंजिल तक पहुंचना नहीं होता।
अपनी युवावस्था में बतौर कप्तान रोहिंगटन बारिया इंटर यूनिवर्सिटी क्रिकेट ट्रॉफी जीतकर कामयाबी का स्वाद चख चुके पीयूष काफी सहजता के साथ अपनी खामियों को भी स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि टीम में उनकी भूमिका एक बल्लेबाज की थी, जो विकेटकीपिंग भी करता था। रणजी में पहुंचने के बाद सबने इसे मौके की तरह देखा और खुद के प्रदर्शन को निखारने पर ध्यान देने लगे। खुद और समकालीन क्रिकेटरों जो बाद के दिनों में दिग्गज सितारे बने, दोनों का अंतर बताते हुए पीयूष पांडे ने बताया, सबने रणजी को प्रदर्शन की पहली सीढ़ी की तरह देखा। मेरे दिमाग में आया कि अब तो पहुंच गए रणजी। यहीं मैं मात खा गया। मैंने मेहनत नहीं की। ये बात हमेशा याद रहती है कि किसी चीज की शुरुआत का मतलब किसी मंजिल तक पहुंचना नहीं होता।
विज्ञापन गुरू पीयूष पांडे
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
हर बार शुरुआत जीरो से
युवाओं को अपनी जिंदगी से बड़ा संदेश देते हुए पीयूष ने समझाया था कि क्रिकेट में नई पारी की शुरुआत गार्ड लेने से होती है। इसलिए इसकी मिसाल देते हुए उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि मंजिल तक पहुंचने के लिए मेहनत करनी ही पड़ेगी। याद रखना चाहिए... अभी तुमने 100 नहीं बनाए हैं, जीरो से शुरुआत करनी है। खेलना शुरू करो। अपने एड असाइनमेंट के प्रति एप्रोच को लेकर पीयूष बताते हैं, 'आपको भूलना पड़ता है कि पहले मैच में 200 रन बनाए हैं, ये नया मैच है। इसमें 200 प्लस लेकर नहीं आए हैं... जब नया मौका मिलता है तो याद रखना है, जो पहले कर चुके उसकी खुशी में बहकना नहीं चाहिए। हर बार शुरुआत जीरो से ही करनी है।'
युवाओं को अपनी जिंदगी से बड़ा संदेश देते हुए पीयूष ने समझाया था कि क्रिकेट में नई पारी की शुरुआत गार्ड लेने से होती है। इसलिए इसकी मिसाल देते हुए उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि मंजिल तक पहुंचने के लिए मेहनत करनी ही पड़ेगी। याद रखना चाहिए... अभी तुमने 100 नहीं बनाए हैं, जीरो से शुरुआत करनी है। खेलना शुरू करो। अपने एड असाइनमेंट के प्रति एप्रोच को लेकर पीयूष बताते हैं, 'आपको भूलना पड़ता है कि पहले मैच में 200 रन बनाए हैं, ये नया मैच है। इसमें 200 प्लस लेकर नहीं आए हैं... जब नया मौका मिलता है तो याद रखना है, जो पहले कर चुके उसकी खुशी में बहकना नहीं चाहिए। हर बार शुरुआत जीरो से ही करनी है।'
पीयूष पांडे
- फोटो : amarujala.com
बतौर क्रिकेटर पीयूष पांडे के गुरुमंत्र
युवाओं को जीवन का बड़ा सबक सिखाते हुए पीयूष बताते हैं कि यूनिवर्सिटी के टॉप 10 विद्यार्थियों में शुमार होने के बाद भी उनका मानना है कि हमेशा अपने पैशन को जरूर फॉलो करना चाहिए। चिंता नहीं करनी चाहिए कि आज से 10 साल के बाद क्या होने वाला है। अगर लक्ष्य नहीं हासिल कर सके तो दुख होगा। इसलिए उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, 'वन बॉल एट ए टाइम।' पीयूष की इस बात के मायने हैं कि एक बार में एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना बेहतर होता है।
युवाओं को जीवन का बड़ा सबक सिखाते हुए पीयूष बताते हैं कि यूनिवर्सिटी के टॉप 10 विद्यार्थियों में शुमार होने के बाद भी उनका मानना है कि हमेशा अपने पैशन को जरूर फॉलो करना चाहिए। चिंता नहीं करनी चाहिए कि आज से 10 साल के बाद क्या होने वाला है। अगर लक्ष्य नहीं हासिल कर सके तो दुख होगा। इसलिए उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, 'वन बॉल एट ए टाइम।' पीयूष की इस बात के मायने हैं कि एक बार में एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना बेहतर होता है।