बढ़ती धूल पिघला रही हिमालय की बर्फ, दक्षिण-पूर्व एशिया के 70 करोड़ लोग इस पर निर्भर
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- ज्यादा उंचाई पर उड़ने वाली धूल हिमालय की बर्फ पिघला रही है
- सालाना पांच अरब टन रेगिस्तानी धूल वातावरण में उड़ती है
- एशिया और अफ्रीका के हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही
- दक्षिण-पूर्व एशिया के 70 करोड़ लोग हिमालय की बर्फ पर निर्भर
- बर्फ से पिघलकर मीठा पानी नदियों में होता है प्रवाहित
- नियमित बर्फ पिघलना प्राकृतिक लेकिन तेजी से पिघलना चिंताजनक
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विस्तार
पिछले कई सालों से वैज्ञानिक हमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर चेतावनी देते आ रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही वैज्ञानिकों ने चेताया था कि कैसे जलवायु परिवर्तन से फूल अपना असली रंग बदल रहे हैं लेकिन हाल ही की एक रिपोर्ट बताती है कि धूल उड़ने से कैसे संसार की छत कहलाने वाले हिमालय क्षेत्र की बर्फ पिघल रही है।
एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है कि एशिया और अफ्रीका क्षेत्रों में ज्यादा प्रदूषण और धूल की वजह से हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है। यह शोध प्रतिष्ठित अमेरिकी नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में छापी गया है। इस शोध से जुड़े कुछ दिलचस्प और चेतावनी देने वाले तथ्यों पर नजर डालते हैं।
क्या कहता है शोध?
- पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल तेजी से बर्फ को पिघलाने में मदद कर सकती है।
- धूल में सूरज की रोशनी अवशोषित करने की क्षमता होती है।
- यही धूल आसपास के क्षेत्र को गर्म करके वहां बर्फ को पिघला सकती है।
- एशिया और अफ्रीका में प्रदूषण ज्यादा बढ़ने से धूल, बर्फ को पिघला रही है।
- नियमित बर्फ पिघलना प्राकृतिक स्थिति लेकिन तेजी से बर्फ पिघलना चिंता का विषय।
- ग्लेशियर से पिघलकर मीठा पानी नीचे नदियों में प्रवाहित होता है।
- दक्षिण-पूर्व एशिया के 70 करोड़ लोग मीठे पानी की जरूरतों के लिए बर्फ पर निर्भर करते हैं।
- पांच अरब टन रेगिस्तानी धूल हर साल धरती के वातावरण में उड़कर अदृश्य हो जाती है।
इस शोध के पहले भी एक जानकारी या चेतावनी दी गई थी कि हिमालय के पिघलते हुए बर्फ और ग्लेशियर की वजह से अरब सागर में एक खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि हिमालय की पिघलती बर्फ से अरब सागर का फूड चेन बिगड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो अरब सागर के जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन और खाने की कमी हो जाएगी।
बर्फ में कब तक रह सकते हैं धूल के कण?
- धूल के कण ब्लैक कार्बन की तुलना में लंबे समय तक बर्फ में रह सकते हैं।
- धूल के कण आमतौर पर थोड़े बड़े होते हैं, आसानी से बर्फ से नहीं उड़ पाते हैं।
पिघलने की दर का विश्लेषण करना जरूरी
गंगा, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्जी और हुआंग भारत और चीन की प्रमुख नदियां हैं जो हिमालय से उत्पन्न होती हैं। ये अध्ययन करना बेहद जरूरी है कि इन क्षेत्रों में स्नोमेल्ट पहले जैसा है या नहीं। इसके अलावा यह जानना भी जरूरी है कि अगर कोई बदलाव हुआ है तो क्यों हुआ है।
तापमान में वायुमंडलीय प्रवाह बदला है। इससे वह हवा प्रभावित हुई जो हजारों मील तक धूल साथ ले जाती है। भूमि उपयोग में बदलाव होने की वजह से वनस्पति कम हुई है। इससे धूल का जमीन तक सीमित रह पाना मुश्किल हो गया है।