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Diwakar Bhatt: यूं ही नहीं मिली थी भट्ट को उत्तराखंड फील्ड मार्शल की उपाधि, इंद्रमणि बडोनी ने दिया था सम्मान

गंगादत्त थपलियाल, संवाद न्यूज एजेंसी, नई टिहरी Published by: रेनू सकलानी Updated Wed, 26 Nov 2025 01:14 PM IST
सार

इंद्रमणि बडोनी ने दिवाकर भट्ट को उत्तराखंड फील्ड मार्शतल की उपाधि दी थी। दिवाकर भट्ट 1965 में श्रीनगर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में पहली बार उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े थे। इसके बाद उनका जीवन लगातार राज्य निर्माण और पहाड़ की समस्याओं के समाधान को समर्पित रहा।

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Diwakar Bhatt Uttarakhand Indramani Badoni had given title of Uttarakhand Field Marshal to Diwakar Bhatt
दिवाकर भट्ट - फोटो : सोशल मीडिया हैंडल
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विस्तार
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संघर्षों से निकले दिवाकर भट्ट को उत्तराखंड फील्ड मार्शल की उपाधि यूं ही नहीं मिली थी। उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणि बडोनी ने 1993 में श्रीनगर में हुए उत्तराखंड क्रांति दल के अधिवेशन में उनके तेवर, विचार और आंदोलन के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें यह सम्मान दिया था। भट्ट के निधन के साथ उत्तराखंड राज्य आंदोलन ने अपना एक सबसे जुझारू सिपाही खो दिया।

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दिवाकर भट्ट का राजनीतिक और आंदोलनकारी सफर संघर्षों से भरा था। 1965 में श्रीनगर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में वह पहली बार उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े थे। इसके बाद उनका जीवन लगातार राज्य निर्माण और पहाड़ की समस्याओं के समाधान को समर्पित रहा।

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1976 में उन्होंने उत्तराखंड युवा मोर्चा का गठन किया। जिसने आगे चलकर पूरी राज्य आंदोलन की दिशा तय की। इसी वर्ष वह बदरीनाथ से दिल्ली तक विशनपाल सिंह परमार, मदन मोहन नौटियाल के नेतृत्व में पदयात्रा में भी शामिल हुए थे। इसके बाद 1980 से वह लगातार तीन बार कीर्तिनगर ब्लॉक प्रमुख बने। उसी वर्ष उन्होंने पहली बार देवप्रयाग विधानसभा से उत्तराखंड क्रांति दल के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था।

दिवाकर भट्ट की आंदोलनकारी तपस्या का एक बड़ा अध्याय श्रीयंत्र टापू
दिवाकर भट्ट की आंदोलनकारी तपस्या का एक बड़ा अध्याय श्रीयंत्र टापू आंदोलन (1995) और फिर खैट पर्वत उपवास रहा। 15 सितंबर 1995 को वह 80 वर्षीय सुंदर सिंह के साथ खैट पर्वत की 6 किलोमीटर लंबी खड़ी चढ़ाई तय कर उपवास पर बैठे। खैट पर्वत समुंद्रतल से लगभग 3200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। वहां स्थिति गंभीर होने लगी तो प्रशासन को वहां पहुंचना मुश्किल हो गया था। हालात को देखते हुए 15 दिसंबर 1995 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें दिल्ली वार्ता के लिए बुलाया। दिल्ली में आश्वासन तो मिला, लेकिन समाधान नहीं निकला। इसके बाद वह जंतर-मंतर पर कई दिनों तक उपवास पर बैठे और आंदोलन जारी रखा।

ये भी पढे़ं...दिवाकर भट्ट: जब आत्मघाती निर्णय से साबित की विश्वसनीयता, हमेशा याद रहेगा राज्य आंदोलन का सबसे आक्रामक चेहरा

वरिष्ठ पत्रकार विक्रम बिष्ट बताते हैं कि 1994 में जुलाई माह में भट्ट ने नैनीताल और पौड़ी में बड़े आंदोलन खड़े किए थे। जिसमें उत्तराखंड राज्य निर्माण, वन कानूनों में संशोधन, पंचायतों का परिसीमन क्षेत्रफल के आधार पर करने, केंद्रीय सेवाओं मेें पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को 2 प्रतिशत आरक्षण लागू करने, पर्वतीय क्षेत्र में जाति के बजाय क्षेत्रफल के आधार पर आरक्षण देने और हिल कैडर को सख्ती से लागू करने की पांच सूत्री मांग प्रमुख थी।

तब भट्ट का नारा ‘घेरा डालो-डेरा डालो’ राज्य आंदोलन का स्वर बन गया था। वह अक्सर यह नारा गुनगुनाते थे और युवाओं को संघर्ष के लिए प्रेरित करते थे। 2007 में वह देवप्रयाग विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए और राज्य सरकार में राजस्व एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री बने। मंत्री रहते हुए भी वह हमेशा गांव से पलायन होने को लेकर चिंतित रहते थे। 

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