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Uttarakhand: ग्लेशियरों के टूटने से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का अधिक खतरा, भू-वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

मनोज उनियाल, संवाद न्यूज एजेंसी, श्रीनगर गढ़वाल Published by: रेनू सकलानी Updated Sat, 13 Sep 2025 03:18 PM IST
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सार

ग्लेशियरों के टूटने से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का अधिक खतरा है। जलाशयों की क्षमता कम होने से विद्युत उत्पादन में कमी आएगी।

Glaciers breaking Risk of floods in lower areas due to the breaking of glaciers Uttarakhand News
धारी देवी मंदिर - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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प्रदेश की नदियों का बढ़ता जलस्तर चिंता का विषय है, जिसका एक मुख्य कारण ग्लेशियरों का बड़ी मात्रा में टूटना है। भारी बारिश और ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ रही है जिससे निचले इलाकों में गाद (सिल्ट) और बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।

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भू-वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्लेशियरों की स्थिति में सुधार नहीं होता है तो भविष्य में नदी किनारे बसे निचले क्षेत्रों में बाढ़ का जोखिम और भी बढ़ जाएगा। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एचसी नैनवाल के अनुसार उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ग्लेशियर हर साल 5 से 20 मीटर तक पीछे खिसक रहे हैं। इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि उनकी मोटाई लगातार कम हो रही है। उन्होंने बताया कि हैंगिंग ग्लेशियर (लटकते हुए ग्लेशियर) ज्यादा टूटते हैं जिससे हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ती हैं। प्रोफेसर नैनवाल ने ग्लेशियरों के तेजी से टूटने के पीछे पृथ्वी के तापमान में बदलाव और गैसों के उत्सर्जन को मुख्य कारण बताया है। जंगलों में लगने वाली आग से निकलने वाली गैसों का भी इन पर बुरा असर पड़ रहा है।

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पानी और बिजली उत्पादन पर असर
ग्लेशियरों के टूटने से नदियों में पानी और गाद की मात्रा बढ़ेगी। इससे न केवल निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ेगा बल्कि जल विद्युत परियोजनाओं के जलाशयों की क्षमता भी कम होगी। गाद जमा होने से जलाशयों की भंडारण क्षमता घट जाएगी जिससे बिजली उत्पादन में कमी आएगी। इसके अलावा समुद्र का जलस्तर भी बढ़ेगा। प्रोफेसर नैनवाल का मानना है कि ग्लेशियरों को बचाने के लिए गैसों के उत्सर्जन को कम करना बेहद जरूरी है। इसके लिए एक राष्ट्रव्यापी नीति बनाने की सख्त आवश्यकता है।

अलकनंदा नदी में बड़ी मात्रा में आ रही गाद, झील पर दिख रहा असर
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगोलवेत्ता प्रोफेसर मोहन पंवार के अनुसार श्रीनगर शहर अपनी बसावट के कारण जोखिम भरे क्षेत्र में स्थित है। यह खतरा इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि अलकनंदा नदी के ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में कई बड़े ग्लेशियर मौजूद हैं। इसके अलावा श्रीनगर तक आते-आते अलकनंदा में 30 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां मिल जाती हैं जिससे इसका जलस्तर काफी बढ़ जाता है।

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प्रोफेसर पंवार बताते हैं कि ग्लेशियरों के पिघलने और ऊपरी इलाकों से आने वाली बाढ़ का सीधा असर श्रीनगर परियोजना की झील पर देखा जा सकता है। इन कारणों से झील में बड़ी मात्रा में गाद (सिल्ट) जमा हो रही है जिससे जल स्तर लगातार ऊपर उठ रहा है। इस खतरे का आकलन धारी देवी मंदिर के पिलरों पर जमा हो रही गाद से भी किया जा सकता है। यह गाद इस बात का प्रमाण है कि नदी में सिल्ट की मात्रा कितनी ज्यादा बढ़ गई है जो पूरे क्षेत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है।

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