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आरआईएमसी के सौ साल बेमिसाल : धूमधाम से मनाया शताब्दी वर्ष, सौ वर्ष पुराने मिलिट्री कॉलेज में पहली बार पढ़ेंगी बेटियां

माई सिटी रिपोर्टर, देहरादून Published by: Vikas Kumar Updated Mon, 14 Mar 2022 04:01 AM IST
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सार

समारोह में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल ने कहा कि आरआईएमसी लगातार सौ साल से देश सेवा में योगदान दे रहा है। संस्थान में छात्रों का व्यक्तित्व विकास राष्ट्र निर्माण के लिहाज से उल्लेखनीय है।

iimc centenary year celebrated with pomp postage stamp issued
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया - फोटो : ANI

विस्तार
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राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (आरआइएमसी) ने अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर लिए हैं। इस मुकाम को खास बनाने के लिए संस्थान की ओर से तीन दिवसीय शताब्दी समारोह आयोजित किया जा रहा है। रविवार को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने शताब्दी वर्ष का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने आरआईएमसी के सौ साल पूरे होने पर डाक टिकट का प्रथम आवरण भी जारी किया। साथ ही आरआइएमसी के अनुभवों पर आधारित पुस्तक बाल-विवेक और पूर्व कैडेटों की लिखी पुस्तक वैलर एंड विजडम का भी विमोचन किया। अहम बात यह है कि सौ वर्ष पुराने मिलिट्री कॉलेज में पहली बार बेटियां भी पढ़ेंगी।

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कैडेटों से उन्होंने तकनीकी कुशलता, रचनात्मक सोच अपनाने का आह्वान किया। गढ़ी कैंट स्थित आरआइएमसी के पटियाला ग्राउंड में आयोजित स्थापना दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल ने कहा कि आरआईएमसी लगातार सौ साल से देश सेवा में योगदान दे रहा है। संस्थान में छात्रों का व्यक्तित्व विकास राष्ट्र निर्माण के लिहाज से उल्लेखनीय है। दूसरे विश्व युद्ध से लेकर बालाकोट एयर स्ट्राइक तक इनकी सैन्य क्षमता व नेतृत्व क्षमता को भुलाया नहीं जा सकता। आरआइएमसी के कैडेट, अधिकारी और टीम के साझे आत्मविश्वास, क्षमता और समर्पित भाव ने संस्थान को देश में सर्वोच्च शिक्षण संस्थान के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई है।
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आरआइएमसी अपने मूल मंत्र बल-विवेक पर अडिग है। कोविड 19 के चुनौतीपूर्ण समय में भी संस्थान निरंतर कार्यरत रहा। ऐसी विपरीत परिस्थिति में कैडेटों ने समय पर अपने कोर्स और प्रशिक्षण पूरा किया, जिसका श्रेय संस्थान के कुशल प्रबंधन और स्टाफ को जाता है। संस्थान के मेधावी और पूर्व छात्र अब इस संस्थान के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर और प्रेरणास्रोत हैं। आरआरआईएमसी केछात्रों को अटूट निष्ठा, दृढ़ निश्चय और महान प्रतिबद्धता का प्रतीक माना जाता है। तकनीक जिस तेजी से बदल रही है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन और डिजिटलाइजेशन हमारे आने वाले कल में विकास और तरक्की का रास्ता तय करेंगे। इसके लिए युवाओं को हमेशा तैयार रहना होगा।

पहली बार पढ़ेंगी बेटियां...
राज्यपाल ने संस्थान में इस सत्र से बालिकाओं को शामिल करने पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि यह एक बड़ी जिम्मेदारी और महत्वपूर्ण पड़ाव है। गर्ल्स कैडेट के जुड़ने से इसकी प्रतिष्ठा और भी अधिक बढ़ेगी। इससे पहले राज्यपाल को आरआइएमसी कैडेट ने गार्ड ऑफ आनर दिया। उन्होंने दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह की शुरुआत की। इस दौरान आरआइएमसी के कमांडेंट कर्नल अजय कुमार ने वार्षिक रिपोर्ट रखी। शिक्षकों, कैडेट की ओर से संयुक्त रूप से प्रस्तुत विविधता भरे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मेहमानों ने लुत्फ लिया। अंत में पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल(सेनि)बीएस धनोआ ने सभी का धन्यवाद दिया। इस दौरान मध्यम कमान के जीओसी-इन-सी ले जनरल योगेंद्र डिमरी, पश्चिमी कमान के जीओसी-इन-सी ले जनरल एनके खंडूडी, दक्षिणी कमान के जीओसी-इन-सी ले जनरल जेएस नैन सहित कई वरिष्ठ सेवारत व सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मौजूद थे।

कैडेटों का किया सम्मान
राज्यपाल ने कैडेटों को सम्मानित भी किया। शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए। इसके बाद उन्होंने सभी कैडेट व फैकल्टी के साथ सामूहिक फोटो भी खिंचवाई।

आरआईएमसी दे चुका है अब तक चार सैन्य व दो वायुसेना प्रमुख आरआइएमसी भारतीय उपमहाद्वीप का पहला सैन्य प्रशिक्षण संस्थान है, जिसकी स्थापना 13 मार्च 1922 को प्रिंस आफ वेल्स ने की थी। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और नौसेना अकादमी(एनएवीएई) के लिए प्रमुख फीडर संस्थान है, जो देश को तब से लेकर अब तक छह सेना प्रमुख, 41 सेना कमांडर और समकक्ष, 163 लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी दे चुका है। आरआइएमसी से पढ़े 159 कैडेट स्वतंत्रता से पहले आइएमए से पास आउट हो चुके थे, जबकि आजादी के बाद से अभी तक कुल 2067 कैडेट पास आउट हो चुके हैं। यहां से निकले जनरल आरएस थिमैया दूसरे विश्व युद्ध के ऐसे पहले और आखिरी भारतीय अफसर हैं, जिन्होंने एक ब्रिगेड को कमांड किया था। मेजर सोमनाथ शर्मा पहले परमवीर चक्र विजेता रहे।

लेफ्टिनेंट जनरल एएसदूसरे विश्व युद्ध के ऐसे पहले और आखिरी भारतीय अफसर हैं, जिन्होंने एक ब्रिगेड को कमांड किया था। मेजर सोमनाथ शर्मा पहले परमवीर चक्र विजेता रहे।

लेफ्टिनेंट जनरल एएस ढिल्लो आइएमए के पहले गोल्ड मेडेलिस्ट रहे। अभी तक यहां से एनडीए में 43 गोल्ड, 32 सिल्वर, 24 कांस्य पदक विजेता कैडेट निकले हैं। यहां के कैडेट ने आइएमए में 52 बार स्वार्ड आफ आनर, 36 स्वर्ण पदक व 19 रजत पदक जीते हैं। यहां के चार कैडेट थलसेना जबकि दो वायुसेना प्रमुख बने। चार कैडेट पाकिस्तानी सेना के चीफ भी बने।

इन्हें किया पुरस्कृत
प्रेसिडेंट्स गोल्ड मेडल- पसुपुला नवनीत सुकुमार, आदित्य राज सिंह कर्नल हाग्टन सिल्वर मेडल- शुभ्रादीप पाल, राजबीर बिश्नोई यूएन झा मेमोरियल गोल्ड मेडल- आदित्य राणा, ओंकार आशुतोष
मेजर गिरीश वर्मा मेमोरियल सिल्वर मेडल- नकुल सक्सेना, ओंकार आशुतोष।

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