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India Pakistan Tension: 84 वर्षीय उर्मिला का छलका दर्द, कहा- हम तो जमींदार थे, रातों-रात भागकर भारत आए
विजय लक्ष्मी भट्ट, अमर उजाला, देहरादून
Published by: अलका त्यागी
Updated Mon, 12 May 2025 04:03 PM IST
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सार
पुराने दिनों की याद करते हुए वह बताती हैं कि विभाजन से पूर्व उनका पूरा परिवार पाकिस्तान के कुली खान बन्नू में रहता था। भले ही वहां ज्यादा घूमने-फिरने की आजादी नहीं थी, लेकिन कई पीढि़यों से रह रहे थे तो वहां के माहौल में खुद को ढाल लिया था।

उर्मिला खेड़ा
- फोटो : अमर उजाला

विस्तार
भारत-पाक सीमा पर जब भी तनाव की खबरें आती हैं, तो 78 साल पूर्व भारत-पाक विभाजन की पीड़ा के घाव फिर हरे हो जाते हैं। फिर वही खानाबदोश जीवन याद आ जाता है। यह कहना है कि भारत-पाक विभाजन की गवाह 84 वर्षीय उर्मिला खेड़ा का। वह कहती हैं कि विभाजन के वक्त को सोच कर आज भी रूह कांप जाती है।
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पुराने दिनों की याद करते हुए वह बताती हैं कि विभाजन से पूर्व उनका पूरा परिवार पाकिस्तान के कुली खान बन्नू में रहता था। भले ही वहां ज्यादा घूमने-फिरने की आजादी नहीं थी, लेकिन कई पीढि़यों से रह रहे थे तो वहां के माहौल में खुद को ढाल लिया था। सब कुछ ठीक चल रहा था। मैं छह साल की थी, इसी बीच भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की आग सुलग गई।
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तनाव बढ़ने पर हिंसा भड़की और हमारी 17 दुकानें जला दी गईं। अपने ही घरों में हम दुबक कर रहने को मजबूर हो गए थे। हम मकान के दूसरे माले पर रहते थे, तो मुस्लिम रात को दूसरे माले को जाने वाली लकड़ियों की सीढ़ी हटा देते थे, ताकि हम लोग कहीं भाग न सकें।
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दिसंबर में फरमान जारी होता है कि जिनको भारत जाना है वे तत्काल पाकिस्तान छोड़ दें। फिर क्या था हमारा परिवार, चाचा-ताऊ सहित सभी संबंधी वहां से रातों-रात भारत के लिए निकल पड़े। कई किमी तो कड़ाके की ठंड में पैदल चलना पड़ा। सारे लोग रेल की तीन बोगियों में बैठकर जैसे-तैसे अमृतसर पहुंचे। वहां से राजस्थान के भरतपुर फिर फरीदाबाद गए। वहां पाकिस्तान से आने वाले लोगों को शिविर में ठहराया जा रहा था। उनके रहने-खाने की व्यवस्था भी की गई थी।
बुजुर्ग उर्मिला भावुक होकर बताती हैं कि पाकिस्तान में तो हम जमींदार थे। दुकानें, खेत-खलिहान थे, लेकिन सब छोड़कर भारत आए तो दो-तीन साल तक शरणार्थियों का जीवन जीना पड़ा, लेकिन शिविर में आखिर कब तक जिंदगी काटते। फिर पिताजी ने ठेली लगाकर रेवड़ी, मूंगफली बेचना शुरू किया। इसके बाद किसी के कहने पर मध्य प्रदेश के मुरैना चले गए वहां कपड़ों की फेरी लगाने लगे। तभी सरकार ने पाकिस्तान में जमीन, मकान छोड़कर आए लोगों को मुआवजे के साथ 250 गज जमीन देनी शुरू की, इससे जीवन फिर धीरे-धीरे पटरी पर आ गया।
कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकी घटना पर भावुक होकर वह कहती हैं कि यह नहीं होना चाहिए था। देश में सब कुछ तो ठीक हो रहा था। देश विकास के रास्ते पर तरक्की कर रहा है, लेकिन इस तरह की घटनाओं से तनाव बढ़ने के साथ ही विकास का पहिया थम जाता है। इससे सीमावर्ती इलाकों में रह रहे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
बुजुर्ग उर्मिला भावुक होकर बताती हैं कि पाकिस्तान में तो हम जमींदार थे। दुकानें, खेत-खलिहान थे, लेकिन सब छोड़कर भारत आए तो दो-तीन साल तक शरणार्थियों का जीवन जीना पड़ा, लेकिन शिविर में आखिर कब तक जिंदगी काटते। फिर पिताजी ने ठेली लगाकर रेवड़ी, मूंगफली बेचना शुरू किया। इसके बाद किसी के कहने पर मध्य प्रदेश के मुरैना चले गए वहां कपड़ों की फेरी लगाने लगे। तभी सरकार ने पाकिस्तान में जमीन, मकान छोड़कर आए लोगों को मुआवजे के साथ 250 गज जमीन देनी शुरू की, इससे जीवन फिर धीरे-धीरे पटरी पर आ गया।
कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकी घटना पर भावुक होकर वह कहती हैं कि यह नहीं होना चाहिए था। देश में सब कुछ तो ठीक हो रहा था। देश विकास के रास्ते पर तरक्की कर रहा है, लेकिन इस तरह की घटनाओं से तनाव बढ़ने के साथ ही विकास का पहिया थम जाता है। इससे सीमावर्ती इलाकों में रह रहे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।