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स्मृति शेष: ऐसे ही नहीं फील्ड मार्शल कहलाते थे दिवाकर भट्ट...तब देखते ही गोली मारने का था आदेश

बिशन सिंह बोरा, अमर उजाला ब्यूरो, देहरादून Published by: अलका त्यागी Updated Wed, 26 Nov 2025 04:00 AM IST
सार

राज्य आंदोलनकारी पौड़ी डीएम ऑफिस के पास आमरण अनशन पर थे। उस दौरान पुलिस व प्रशासन की और से दिवाकर भट्ट को देखते ही गोली मारने का मौखिक आदेश हुआ।

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Uttarakhand Diwakar Bhatt death was not called Field Marshal for nothing then the order was to shoot on sight
पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो
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विस्तार
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दिवाकर भट्ट को ऐसे ही फील्ड मार्शल नहीं कहा गया, वह अलग राज्य आंदोलन हो या फिर जन सरोकरों से जुड़े मुद्दे इन सबके लिए लड़ने भिड़ने वालों में से थे। पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत बताते हैं कि 1994 में दिवाकर भट्ट को देखते ही गोली मारने का आदेश हुआ, रावत के मुताबिक तब उन्होंने पुलिस से छिपाकर मोटरसाइकिल से उन्हें बुआखाल से आगे चौफिन के घर छोड़ा था।

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पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत बताते हैं कि राज्य आंदोलनकारी पौड़ी डीएम ऑफिस के पास आमरण अनशन पर थे। इंद्रमणि बडोनी के साथ ही दिवाकर भट्ट व काशी सिंह ऐरी सहित कई लोगों को अनशन स्थल से हटाने के लिए सात अगस्त 1994 की रात पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई। हंगामे के दौरान कुछ आंदोलनकारी छात्रों ने पुलिस अधीक्षक की जिप्पी फूंक दी।
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तब पुलिस व प्रशासन की और से दिवाकर भट्ट को देखते ही गोली मारने का मौखिक आदेश हुआ। रावत के मुताबिक तब वह पौड़ी से भाजपा के विधायक थे। उन्हें इसकी जानकारी मिलने पर उन्होंने डीएसपी को बुलाकर बताया कि पुलिस इस तरह का कोई गलत कदम न उठाए।

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राज्य आंदोलनकारी जानते हैं दिवाकर किस शख्सियत का नाम
भाजपा नेता व राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान बताते हैं कि राज्य आंदोलनकारी जानते हैं कि दिवाकर भट्ट किस शख्सियत का नाम है। जब भी राज्य आंदोलन के इतिहास के पन्ने खुलेंगे फील्ड मार्शल के संघर्ष की गाथाएं उसमें दर्ज मिलेंगी।

शहीदों के सपने पूरे न होने से थे आहत
उत्तराखंड के फील्ड मार्शल कहे जाने वाले दिवाकर भट्ट राज्य गठन के वर्षों बाद भी शहीदों और आंदोलनकारियों के सपने पूरे न होने से आहत थे। पूर्व में वह भाजपा का दामन थाम भगवा रंग में भी रंग गए थे। जो भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन बाद में उनकी उक्रांद में वापसी हो गई थी।

श्रीयंत्र टापू में पुलिस ने डाल दिया था घेरा
श्रीनगर गढ़वाल में श्रीयंत्र टापू पर 1995 में दिवाकर भट्ट के नेतृत्व में आमरण अनशन और क्रमिक अनशन चल रहा था। उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष सुरेंद्र कुकरेती बताते हैं कि पुलिस ने दिवाकर को पकड़ने के लिए घेरा डाल दिया था। तब यहां यशोधर बैंजवाल और राजेश रावत शहीद हुए थे। दिवाकर ने खैट पर्वत पर भी अनशन किया।

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