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चमोली आपदाः ऋषिगंगा व धौलीगंगा के सैलाब ने बिगाड़ा अलकनंदा का पारिस्थितिकी तंत्र, लाखों मछलियां मरीं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रुद्रप्रयाग/कर्णप्रयाग
Published by: Nirmala Suyal Nirmala Suyal
Updated Wed, 10 Feb 2021 03:26 PM IST
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अलकनंदा नदी का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी बिगड़ा
- फोटो : अमर उजाला
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जनपद चमोली के ऋषिगंगा व धौलीगंगा में आई जलप्रलय ने अलकनंदा नदी के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी बिगाड़ दिया है। पानी के तेज बहाव व मलबे से यहां मिलने वाली मत्स्य प्रजातियों की लाखों मछलियां मर गई हैं।
नदी किनारे कई जगहों पर मरी हुई मछलियों के ढेर लगे हुए हैं। वन्य जीव वैज्ञानिकों ने भी इस पर चिंता जताते हुए कहा कि नदी के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को अपने मूल स्वरूप में आने में लगभग दो वर्ष लग सकते हैं।
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कई मत्स्य प्रजातियों की लाखों मछलियों मर गईं
- फोटो : अमर उजाला
बीते 7 फरवरी को ऋषिगंगा के ऊपरी तरफ ग्लेशियर टूटने से बर्फ, मिट्टी व पानी का सैलाब धौलीगंगा से होते हुए तेज गति से अलकनंदा नदी में पहुंचा। इस नदी का पानी ठंडा व साफ है, लेकिन सैलाब के कारण पानी का तापमान बढ़ने के साथ ही वह गादयुक्त भी हो गया था। इससे यहां मिलने वाली स्नो ट्राउट, महाशीर, पत्थरचट्टा, गारा समेत कई मत्स्य प्रजातियों की लाखों मछलियों मर गई हैं।
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चमोली में आपदा के बाद का नजारा
- फोटो : अमर उजाला
विष्णुप्रयाग, पीपलकोटी, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग व रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी किनारे मरी मछलियों के ढेर से तबाही का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून की शोधार्थी भावना धवन का कहना है कि अलकनंदा का पानी ठंडा व साफ है, जिस कारण यहां स्नो ट्राउट व महाशीर की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन जैसे ही नदी में अधिक वेग से मलबा व पानी पहुंचा तो मछिलयों का दम घुटने लगा और उनकी मौत हो गई। कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग में कई लोगों ने मछलियों को पकड़ा।
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चमोली में आपदा के बाद का नजारा
- फोटो : अमर उजाला
इस घटना से अलकनंदा नदी में 20 से अधिक मत्स्य प्रजातियां व्यापक रूप से प्रभावित हुई हैं। साथ ही नदी का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र भी बिगड़ गया है, जिसे अपने मूल रूप में आने में लगभग दो वर्ष का समय लग सकता है। इधर, रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के डीएफओ वैभव कुमार सिंह ने बताया कि मरी मछलियों के फोटो भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों को भेज दिए गए हैं।
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आपदा के बाद क्षेत्र में पहुंचे लोग
- फोटो : अमर उजाला
धौलीगंगा में मछली नहीं पाई जाती है। जबकि अलकनंदा नदी में विष्णुप्रयाग से पीपलकोटी के मध्य ही मछली की 15 से 20 प्रजातियां पाई जाती हैं। तीन दिन पूर्व हुई तबाही से ये सभी प्रजातियां मलबे व पानी के तेज बहाव से व्यापक संख्या में मर चुकी हैं। उम्मीद है कि एक से डेढ़ वर्ष में यहां पहले जैसे हालात हो जाएंगे, लेकिन इसके लिए मत्स्य आखेट पर रोक लगानी होगी।
- डा. शिवा कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून
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