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Gurugram News: रेगिस्तान में बने गड्ढों में छिपकर बचाई थी जान
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वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जिले के कई वीर जवानों ने देश की रक्षा के लिए अदम्य साहस का परिचय दिया। भारतीय सेना के इन बहादुर सपूतों ने न केवल दुश्मन के दांत खट्टे किए, बल्कि जम्मू से लेकर राजस्थान बार्डर पर घुसपैठ कर आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराकर देश की सीमाएं सुरक्षित रखीं। उस दौरान दुश्मनों से बचने के लिए राजस्थान में रेगिस्तान में बने गड्ढों में छिपकर जान बचाई।
युद्ध हुए 50 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन उस समय की यादें ताजा बनी हुई हैं। मेरी पोस्टिंग राजस्थान के लोगोंवाल इलाके में थी। दुश्मनों से छिपने के लिए रेतीले मिट्टी के गड्ढे में छिपते थे। कई बार सामने से हो रहे विस्फोट थोड़ी-सी दूरी पर हो रहे थे ऐसे में ज्यादा दूर जान बचाने के लिए मुश्किल हो जाता था। - लेफ्टिनेंट कर्नल चंदू लाल (सेवानिवृत्त)
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मुझे आज भी याद है 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारत ने सरेंडर किया था। उस दौरान इसके लिए दुनियाभर में चर्चा की गई थी। हमें हमेशा देश सेवा के लिए तैयार रहना चाहिए, युद्ध के दौरान हम लोग हमेशा से ही तत्पर रहते थे। - कर्नल प्रताप सिंह, (सेवानिवृत्त)
युद्ध के दौरान मैं प्लानिंग विभाग में था। उस समय पहाड़ों पर नजर रखना सबसे कड़ी चुनौती रहती थी। आज के समय दुनिया काफी आगे बढ़ गई है, 1971 के समय में एक संदेश पहुंचाने के लिए चार से पांच दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। - कर्नल यशपाल यादव, (सेवानिवृत्त)
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युद्ध हुए 50 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन उस समय की यादें ताजा बनी हुई हैं। मेरी पोस्टिंग राजस्थान के लोगोंवाल इलाके में थी। दुश्मनों से छिपने के लिए रेतीले मिट्टी के गड्ढे में छिपते थे। कई बार सामने से हो रहे विस्फोट थोड़ी-सी दूरी पर हो रहे थे ऐसे में ज्यादा दूर जान बचाने के लिए मुश्किल हो जाता था। - लेफ्टिनेंट कर्नल चंदू लाल (सेवानिवृत्त)
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मुझे आज भी याद है 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारत ने सरेंडर किया था। उस दौरान इसके लिए दुनियाभर में चर्चा की गई थी। हमें हमेशा देश सेवा के लिए तैयार रहना चाहिए, युद्ध के दौरान हम लोग हमेशा से ही तत्पर रहते थे। - कर्नल प्रताप सिंह, (सेवानिवृत्त)
युद्ध के दौरान मैं प्लानिंग विभाग में था। उस समय पहाड़ों पर नजर रखना सबसे कड़ी चुनौती रहती थी। आज के समय दुनिया काफी आगे बढ़ गई है, 1971 के समय में एक संदेश पहुंचाने के लिए चार से पांच दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। - कर्नल यशपाल यादव, (सेवानिवृत्त)