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भारत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है जामा मस्जिद
अमर उजाला, दिल्ली
Updated Tue, 31 Dec 2013 11:12 AM IST
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जामा मस्जिद पुरानी दिल्ली की शान है। यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक हैं। इसके प्रांगण में 25 हजार से अधिक अकीदतमंद बैठ सकते हैं। इसे शाहजहां ने नमाज अदा करने के लिए बनवाया था।
लाल किले से महज 500 मीटर दूर इस मस्जिद में तीन गेट और चार प्रमुख मीनारें हैं। बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश होता है।
पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इसके बारे में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे। इसका प्रे हॉल बहुत ही सुंदर है। इसमें 11 मेहराब हैं। इसमें बीच वाला मेहराब अन्य से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबदों को सफेद और काले संगमरमर से सजाया गया है। ये निजामुद्दीन दरगाह की याद दिलाते हैं।
इसे मस्जिद-ए-जहानुमा भी कहते हैं। इसका मतलब जहान पर फतह महसूस कराने वाली मस्जिद होता है। इसे मुगल बादशाह शाहजहां ने एक प्रधान मस्जिद के रूप में बनवाया था। इसकी एक सुंदर झरोखेनुमा दीवार इसे मुख्य सड़क से अलग करती है।
किवदंतियों के मुताबिक पुरानी दिल्ली के प्राचीन कस्बे में स्थित इस मस्जिद को 5000 शिल्पकारों ने मिलकर बनाया था। इसके चार स्तंभ और दो मीनारों का निर्माण रेड सेंड स्टोन और सफेद संगमरमर की समानांतर खड़ी पट्टियों से किया गया है। सफेद संगमरमर के बने तीन गुम्बदों में काले रंग की पट्टियों के साथ शिल्पकारी की गई है।
यह पूरी संरचना एक ऊंचे स्थान पर है ताकि इसका भव्य प्रवेश द्वार आस पास के सभी इलाकों से दिखाई दे सके। सीढ़ियों की चौड़ाई उत्तर और दक्षिण में काफी अधिक है। यहीं इस लोकप्रिय मस्जिद की विशेषताएं भी हैं।
इस पुराने ऐतिहासिक स्मारक की छाया, इसकी सीढ़िय भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहती हैं।
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लाल किले से महज 500 मीटर दूर इस मस्जिद में तीन गेट और चार प्रमुख मीनारें हैं। बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश होता है।
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पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इसके बारे में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे। इसका प्रे हॉल बहुत ही सुंदर है। इसमें 11 मेहराब हैं। इसमें बीच वाला मेहराब अन्य से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबदों को सफेद और काले संगमरमर से सजाया गया है। ये निजामुद्दीन दरगाह की याद दिलाते हैं।
इसे मस्जिद-ए-जहानुमा भी कहते हैं। इसका मतलब जहान पर फतह महसूस कराने वाली मस्जिद होता है। इसे मुगल बादशाह शाहजहां ने एक प्रधान मस्जिद के रूप में बनवाया था। इसकी एक सुंदर झरोखेनुमा दीवार इसे मुख्य सड़क से अलग करती है।
किवदंतियों के मुताबिक पुरानी दिल्ली के प्राचीन कस्बे में स्थित इस मस्जिद को 5000 शिल्पकारों ने मिलकर बनाया था। इसके चार स्तंभ और दो मीनारों का निर्माण रेड सेंड स्टोन और सफेद संगमरमर की समानांतर खड़ी पट्टियों से किया गया है। सफेद संगमरमर के बने तीन गुम्बदों में काले रंग की पट्टियों के साथ शिल्पकारी की गई है।
यह पूरी संरचना एक ऊंचे स्थान पर है ताकि इसका भव्य प्रवेश द्वार आस पास के सभी इलाकों से दिखाई दे सके। सीढ़ियों की चौड़ाई उत्तर और दक्षिण में काफी अधिक है। यहीं इस लोकप्रिय मस्जिद की विशेषताएं भी हैं।
इस पुराने ऐतिहासिक स्मारक की छाया, इसकी सीढ़िय भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहती हैं।