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अब उड़ती धूल की निगरानी: दिल्ली के औद्योगिक इलाकों में मिस्टिंग नेटवर्क से लगाम लगेगी, प्रदूषण पर होगा प्रहार

आदित्य पाण्डेय, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अनुज कुमार Updated Tue, 11 Nov 2025 09:13 AM IST
सार

डीएसआईआईडीसी बवाना और नरेला औद्योगिक क्षेत्रों में 2.61 करोड़ की लागत से ऑटोमेटिक मिस्टिंग सिस्टम लगाएगा। यह सिस्टम धूल कणों को पानी की फुहार से नीचे बैठाकर वायु गुणवत्ता सुधारता है।

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Misting system network in industrial areas will attack pollution
वायु प्रदूषण - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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औद्योगिक इलाकों में उड़ती धूल पर अब मिस्टिंग नेटवर्क से लगाम लगेगी। दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (डीएसआईआईडीसी) ने बवाना और नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में ऑटोमेटिक मिस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए दो टेंडर जारी किए हैं। करीब 2.61 करोड़ रुपये की लागत से इन दोनों इलाकों की सड़कों पर यह सिस्टम लगाया जाएगा।
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पहला प्रोजेक्ट बवाना इंडस्ट्रियल एरिया की एमपी-4 और एमपी-7 सड़कों पर लागू होगा, जिसकी अनुमानित लागत 1.7 करोड़ रुपये से अधिक है। वहीं नरेला इंडस्ट्रियल एरिया की रोड नंबर 19 और 55 पर लगभग 1.54 करोड़ रुपये की लागत से सिस्टम स्थापित किया जाएगा। दोनों प्रोजेक्ट्स के लिए दो महीने में निर्माण और इंस्टालेशन का काम पूरा करना होगा, जबकि एक साल तक संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी ठेकेदार के पास रहेगी। डीएसआईआईडीसी अधिकारियों के मुताबिक, मिस्टिंग सिस्टम से सड़कों पर उड़ने वाली धूल को नियंत्रण में लाने में मदद मिलेगी। यह सिस्टम लगातार महीन पानी की फुहारें छोड़कर प्रदूषण घटाएगा और वायु गुणवत्ता में सुधार करेगा।
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औद्योगिक क्षेत्रों में एक्यूआई बेहद कमजोर : दिल्ली में बवाना, नरेला जैसे औद्योगिक क्षेत्रों की सड़कों पर भारी वाहनों के नियमित आवागमन, खुले में होते निर्माण, चारों तरफ उड़ती धूल और सफाई प्रबंधन बेहद कमजोर होने के कारण पीएम2.5 एवं पीएम10 स्तर काफी ऊंचे हैं, जिससे यहां की वायु गुणवत्ता बेहद खराब बनी हुई है। बवाना और नरेला दोनों औद्योगिक क्षेत्रों में एक्यूआई बेहद कमजोर श्रेणी में दर्ज हुआ है। दिल्ली के कई हिस्सों में एक्यूआई 400 से ऊपर तक गया है।

मिस्टिंग सिस्टम क्या है और कैसे काम करता है
मिस्टिंग सिस्टम एक स्वचालित स्प्रे मैकेनिज्म है, जो हवा में मौजूद धूल कणों को नीचे बैठाने के लिए बारीक पानी की फुहारें छोड़ता है। पीएम10 और पीएम2.5 जैसे सूक्ष्म धूल कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के साथ नाक या गले तक पहुंच सकते हैं। मिस्टिंग सिस्टम में पाइपलाइन के जरिए सड़कों के किनारे नोजल लगाए जाते हैं, जो समय-समय पर फुहार छोड़ते हैं। यह प्रक्रिया कंप्यूटर या टाइमर से नियंत्रित होती है, जिससे लगातार धूल नियंत्रण किया जा सके। औद्योगिक इलाकों, निर्माण स्थलों और भीड़भाड़ वाले मार्गों पर इसका उपयोग वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए किया जाता है। यह सिस्टम न सिर्फ धूल कम करता है, बल्कि तापमान में हल्की कमी भी लाता है, जिससे परिवेश अधिक स्वच्छ और अनुकूल बनता है।
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