Akhlaq Lynching Case: अपील खारिज होने पर अखलाक के भाई बोले- हमने सपने में भी नहीं सोचा...लड़ी थी लंबी लड़ाई
मोहम्मद अखलाक के भाई, जान मोहम्मद ने कहा कि जब यह एप्लीकेशन दी गई तो हम चौंक गए, क्योंकि हमने इतनी लंबी लड़ाई लड़ी थी, और हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि केस इस तरह खत्म हो सकता है।
विस्तार
नोएडा कोर्ट द्वारा अखलाक लिंचिंग केस के आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने की यूपी सरकार की अपील खारिज करने पर, मोहम्मद अखलाक के भाई जान मोहम्मद ने कहा कि जब यह एप्लीकेशन दी गई तो हम चौंक गए, क्योंकि हमने इतनी लंबी लड़ाई लड़ी थी, और हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि केस इस तरह खत्म हो सकता है। एएनआई से बातचीत में मोहम्मद अखलाक के भाई ने कहा कि घटना वाले दिन सामाजिक सद्भाव खराब नहीं हुआ था। क्या कोई मुझे एक भी उदाहरण दिखा सकता है जहां अखलाक की लाश सड़क पर रखी गई हो और हमने जाम लगाया हो, या जहां कोई चिल्लाया हो या हंगामा हुआ हो, या जहां किसी के खिलाफ कोई अपमानजनक टिप्पणी की गई हो? इतने साल बाद अब किस तरह का सांप्रदायिक सद्भाव खराब होगा?
#WATCH | Greater Noida | On Noida court rejecting UP government's appeal to withdraw the case against the Akhlaq lynching case accused, Mohammed Akhlaq's brother Jaan Mohammad says, "... When this application was moved, we were shocked because we had fought such a long battle,… pic.twitter.com/42dhkoqgmk
विज्ञापन— ANI (@ANI) December 24, 2025विज्ञापन
दरअसल ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव के बहुचर्चित मो. अखलाक मॉब लिंचिंग मामले में कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ आरोप वापस लेने की यूपी सरकार की अर्जी खारिज कर दी। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने दादरी में वर्ष 2015 की इस भीड़ हिंसा को समाज के खिलाफ गंभीर अपराध बताया।
समाचार एजेंसी एएनआई से मोहम्मद अखलाख के भाई जान मोहम्मद ने बातचीत की पढ़िए
सवाल- लंबे वक्त से न्याय की मांग थी और अब कोर्ट सुनवाई कर रही है छह जनवरी से ही, आप इस फैसले को कैसे देखते हैं?
जवाब- देखिए सर, न्याय की उम्मीद में तो पहले से ही कोर्ट पर हमारा अटूट विश्वास है कि न्याय हमें मिलेगा। जज साहब ने जिस तरह से इसे लिया इसके लिए हम उनके बहुत बहुत शुक्रगुजार हैं। लेकिन जिस तरह से ये एप्लीकेशन मूव हुई थी उससे झटका तो हमें लगा था कि इतनी लंबी लड़ाई है जो भी हो सका किया है। हम मेहनत मजदूरी करने वाले लोग है, उसके बाद अगर इस तरह से केस का समापन होगा तो ये कभी हमने सपने में भी नहीं सोचा था। क्योंकि ये तो सरकार का नारा है सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास तो सबके विश्वास वाली बात को लेकर मुझको झटका लगा।
सवाल- सरकार ने जो अपना ग्राउंड रखा था उसमें सामाजिक सौहार्द की बात की गई?
जवाब- सर, सामाजिक सौहार्द तो तब नहीं बिगड़ा जिस दिन यह घटना हुई थी। कोई भी ये बता दे कि हमारे परिवार ने कोई आपत्तिजनक हरकत की है, या अखलाख की बॉडी को रखकर सड़क पर जाम लगाया हो। किसी भी तरह का कोई शोर नहीं किया यहां तक कि हमने किसी व्यक्ति के लिए अपशब्द या गलत भी नहीं कहा। आप हमें कहीं भी दिखा दीजिए किसी पेपर में या किसी मीडिया क्लिप में कि हमने कुछ कहा। मैं इस बात को लेकर चैलेंज करता हूं। सांप्रदायिक सौहार्द तो तब नहीं बिगड़ा अब दस साल बाद क्या बिगड़ेगा। अब तो लोग हमारे घर आते जाते हैं और मैं अगर कह दूं तो गलत नहीं होगा कि दो अपराधी मुझसे मेरे घर मिलने के लिए आए हुए हैं। मैंने वकील साहब को भी नहीं बताया वर्ना उनकी जमानत रद्द हो सकती थी। क्योंकि आ रहे है तो बहुत अच्छा है। सामप्रदायिक सौहार्द बहुत अच्छा है, एक ही कस्बा है अगर वो हमें कहीं बाजार बगैरह में मिल जाते हैं तो उनकी हमारी मुलाकात होती है और हम बात करते हैं अच्छी तरह से। एप्लीकेशन में था कि गवाहों में बयानों में कुछ बदलाव किया। लेकिन हमने ऐसा कुछ भी नहीं किया। देखिए हमारी मुस्लिम फैमली और हमारे परिवार में हमारी मां के पहले से ये रूल हैं कि घर की महिलाएं बाहर नहीं जातीं। तो वो बच्चे जो हमारे आस-पास के रहने वाले थे छोटेपन से उन्होंने उन्हें देखा है। उनमें से जिन्हें उन्होंने पहचाना वो दिखने के बाद उन्होंने अपने कमरे में खुद को बंद कर लिया था कि कहीं उनकी इज्जत पर कोई हमला न कर दे। उन्होंने उनमें से जिन्हें पहचाना वो दस लोग थे जिसका उन्होंने एफआईआर में नाम दिया। अब चूंकि बेटी कॉलेज में पढ़ने भी जाती थी और दानिश भी पढ़ता था तो बच्चे ज्यादा लोगों को पहचान सकते थे। तो बेटी ने अपने बयान में तीन और नाम बढ़ा दिए। इसमें बयान में बदलाव कहां हुआ, हां अगर हम पहले वाले नामों को खारिज कर दूसरे नाम देते तो आप इस बात को कह सकते थे। ये बदलाव नहीं है नाम बढ़े हैं क्योंकि वो ज्यादा लोगों को पहचान सकती थी। यही दानिश ने भी किया है। तो इसमें बदलाव कहां पर हो गया।
सवाल- जो गोवंश बताया गया उसको लेकर भी संदेह है इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब- देखिए सर, हमें नहीं पता जो रोड से उठाया गया मीट था वो क्या था, ये बात मैं पहले ही साफ कर चुका हूं कि इखलाक के घर से कुछ भी नहीं मिला है। पहली बात तो जिस भगोने में उन्होंने वो मीट दिखाया है वो फ्रिज में आ ही नहीं सकता है। जो अखलाख का फ्रिज है। जो मीट पुलिस जांच के लिए लेकर गई, जो केस ऑफ प्रॉपर्टी है उसको नष्ट कैसे कर सकते हैं आप। उसको पुलिस ने फेक क्यों दिया। आपने कौन सा मीट मथुरा भेजा है इस बारे में हमें क्या पता। हमें दिखाकर थोड़े न भेजा है। वहां 200 ग्राम मीट सीसे के जार में रखकर भेजा है। हम इतने दिनों बाद कैसे कह सकते हैं कि कौन सा मीट गया था। इस पर राजनीति हो रही है, क्या हो रहा है हमें नहीं पता है।
भीड़ ने कर दी थी अखलाक की हत्या
मामला 28 सितंबर, 2015 का है। दादरी थाना क्षेत्र के बिसाहड़ा गांव में भीड़ ने घर में घुसकर अखलाक की बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। अफवाह थी कि उसके घर में गोमांस रखा हुआ था। इस घटना ने भीड़ हिंसा पर देशव्यापी बहस को जन्म दिया था। इस हमले में अखलाक का बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हो गया था।