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अरावली मामला: 'नए सुप्रीम कोर्ट आदेश से मेवात के करीब 100 गांवों पर मंडराया खतरा', आरटीआई मंच ने दिया ज्ञापन

संवाद न्यूज एजेंसी, नगीना/तावडू/फिरोजपुर झिरका Published by: राहुल तिवारी Updated Sun, 21 Dec 2025 08:17 PM IST
सार

अरावली पहाड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मेवात और राजस्थान के करीब 100 गांवों पर संकट गहरा गया है। 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन की अनुमति से पर्यावरण, गांवों और ऐतिहासिक धरोहरों को नुकसान की आशंका जताई जा रही है। पढ़ें पूरी खबर।
 

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Mewat RTI Forum gave memorandum to name of President and Prime Minister in Aravalli Mountain issue
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : AI
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विस्तार
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नीति आयोग के सबसे पिछड़े जिले नूंह के 40 और राजस्थान के करीब 60 से अधिक गांवों का भविष्य अरावली पहाड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संकट में है। नूंह सीमा से सटे तिजारा, खैरथल, किशनगढ़बास, अलवर, जुरहेड़ा, नगर, पहाड़ी, गोपालगढ़ और कामां क्षेत्र के लगभग 60 गांव भी फैसले से प्रभावित होंगे। राजस्थान और हरियाणा के मेवात क्षेत्र में छह जिलों के करीब 100 गांवों पर संकट दिखाई दे रहा है।

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली अरावली पहाड़ियों को खनन के लिए खोलने की अनुमति दिए जाने से पूरे मेवात क्षेत्र में गहरी चिंता और असंतोष का माहौल है। हरियाणा में सिर्फ दो चोटियां ही 100 मीटर से ऊपर हैं। एक तोसाम भिवानी जिला और दूसरी मधोपुरा महेंद्रगढ़ जिला। बाकी क्षेत्र अब संरक्षण से बाहर हो सकता है। इस मुद्दे को लेकर मेवात आरटीआई मंच ने सख्त रुख अपनाते हुए नायब तहसीलदार नगीना के माध्यम से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राज्यपाल, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को ज्ञापन भेजे हैं। ज्ञापन में फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए अरावली के पर्यावरणीय, सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया गया है।
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मेवात आरटीआई मंच के अध्यक्ष सुबोध कुमार जैन ने बताया कि नगीना उप तहसील के गांव सांठावाड़ी, नांगल मुबारिकपुर, झिमरावट, बारा, बाजीदपुर, ढाडोली कलां, ढाडोली खुर्द, खानपुर घाटी सहित 13 गांव ऐसे हैं, जहां अरावली पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर से कम है। इसी प्रकार फिरोजपुर झिरका तहसील के गांव घाटा शमशाबाद, बसई मेव, बडेड तथा पुन्हाना, नूंह, तावडू और उप तहसील इंडरी के कई गांव भी इस फैसले की जद में आते हैं। उन्होंने चिंता जताई कि संरक्षण से बाहर होने पर यदि इन क्षेत्रों में खनन शुरू हुआ तो न केवल गांवों का अस्तित्व, बल्कि ऐतिहासिक मंदिर, मस्जिदें, दरगाहें और किले भी मिटने के कगार पर पहुंच जाएंगे।

समाजसेवी सबीला जंग ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील करते हुए कहा कि अरावली केवल पहाड़ियों की श्रृंखला नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत का प्राकृतिक सुरक्षा कवच है। इसे कमजोर करना आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा। उन्होंने बताया कि अरावली पर्वतमाला गुजरात से राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर में फैली हुई है। यह थार रेगिस्तान की धूल को दिल्ली एनसीआर तक पहुंचने से रोकती है और भूजल रिचार्ज तथा तापमान संतुलन में अहम भूमिका निभाती है। फैसले के बाद राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को भूमि की प्रकृति तय करने का अधिक अधिकार मिल गया है, जिससे दुरुपयोग की आशंका बढ़ गई है।

वहीं मेवात आरटीआई मंच के उपाध्यक्ष नसीम, सरपंच सांठावाड़ी, ने कहा कि यह फैसला अरावली संरक्षण को कमजोर करेगा और इसके दुष्परिणाम दूरगामी होंगे। अरावली के कमजोर होने से भूजल स्तर और गिरेगा, गर्मी बढ़ेगी और प्रदूषण और गंभीर होगा। यही वजह है कि मेवात के लोग इस फैसले को केवल कानूनी नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व से जुड़ा सवाल मान रहे हैं। अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ प्रदेशभर में पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों में नाराजगी देखने को मिल रही है। 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को लेकर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एमओईएफसीसी के नेतृत्व वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया है। नई परिभाषा के अनुसार स्थानीय भू आकृति से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि को ही अरावली पहाड़ियां माना जाएगा।

इस निर्णय को अरावली संरक्षण के लिए घातक बताते हुए सामाजिक संगठन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय मिशन सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट ने केंद्र सरकार से गंभीरता से पुनर्विचार की मांग की है। इसी क्रम में ट्रस्ट की ओर से 22 दिसंबर 2025 को दोपहर के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक ज्ञापन एसडीएम के माध्यम से सौंपा जाएगा। मिशन सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष अख्तर अलवी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत नई परिभाषा अरावली संरक्षण के मूल उद्देश्य के विपरीत है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के चलते अरावली क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो गया है, जो अत्यंत चिंताजनक है। यह निर्णय वर्ष 1992 की अरावली अधिसूचना तथा एनसीआर प्लान 2021 द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण को भी कमजोर करता है।

सोहना तावडू विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय कांग्रेस नेता शाहीन शम्स ने अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए जवाब पर कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल कानूनी या तकनीकी नहीं है, बल्कि उत्तर भारत की आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा एक गंभीर पर्यावरणीय संकट है। शाहीन शम्स ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला सिर्फ पत्थरों और पहाड़ियों का समूह नहीं, बल्कि उत्तर भारत की जीवनरेखा है। यही पर्वतमाला थार मरुस्थल से उठने वाली रेत, लू और धूल भरी आंधियों को दिल्ली, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के उपजाऊ क्षेत्रों तक पहुंचने से रोकती है।

साथ ही अरावली भूजल रिचार्ज, वन्यजीवों के संरक्षण और स्वच्छ हवा के लिए बेहद अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार अरावली को बचाने के बजाय उसे कमजोर करने की नीति पर काम कर रही है। सरकार द्वारा अरावली की परिभाषा को केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों तक सीमित करना खतरनाक कदम है। इससे अरावली की 80 से 90 प्रतिशत पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी और वहां खनन व निर्माण गतिविधियों को खुली छूट मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसके सभी संगठन अरावली की रक्षा के लिए सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करेंगे। उन्होंने बीजेपी सरकार से मांग की कि वह तुरंत इस जनविरोधी और पर्यावरण विरोधी नीति को वापस ले और अरावली को उसके वास्तविक पर्यावरणीय महत्व के आधार पर पूर्ण संरक्षण प्रदान करे।
संरक्षण प्रदान करे।

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