Delhi: जंतर-मंतर में दिखेगा जापान, इंग्लैंड, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड का समय, मिश्र यंत्र से देख सकेंगे टाइम
जंतर मंतर नाम का संस्कृत में अर्थ यंत्र, गणना और सूत्र है। इसे दिल्ली की वेधशाला के नाम से भी जाना जाता है। चिनाई से निर्मित जंतर मंतर में स्थित वृहद खगोलीय यंत्र विश्व की असाधारण कृतियों में से एक है।
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जंतर मंतर में मिश्र यंत्र वेधशाला की सबसे पहले मार्किंग की जाएगी। इससे जापान, इंग्लैंड, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड का समय देखा जा सकता है। इस यंत्र के सुचारू होने से दर्शक अंतरराष्ट्रीय समय देख सकते हैं। मार्किंग के बाद यंत्र अपने वास्तविक रूप में आ सकेंगे।
यही नहीं, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सम्राट यंत्र में वर्षों से क्षतिग्रस्त सन डायल का भी पुर्ननिर्माण किया है। विशेषज्ञों द्वारा दिए गए आंकलन के अनुसार, यहां संगमरमर से निर्मित व लोहे का सन डायल स्थापित किया है। इससे ध्रुव तारे की जानकारी ली जा सकती है।
1724 से 1734 ईसवी के मध्य बना जंतर मंतर
जंतर मंतर नाम का संस्कृत में अर्थ यंत्र, गणना और सूत्र है। इसे दिल्ली की वेधशाला के नाम से भी जाना जाता है। चिनाई से निर्मित जंतर मंतर में स्थित वृहद खगोलीय यंत्र विश्व की असाधारण कृतियों में से एक है। इनसे प्राचीन खगोलीय संस्थाओं के अंतिम स्वरूप के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इसका निर्माण आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय (1724 से 1734) ईसवी के मध्य कराया था। मिश्र यंत्र की मान्यता है कि इसका निर्माण जयसिंह के पुत्र महाराजा माधोसिंह द्वारा कराया गया था।
जयपुर के बाद दूसरा जंतर मंतर होगा सुचारू
मिश्र यंत्र को संरक्षित करने में आने वाली अनुमानित लागत रिपोर्ट बनाई गई है। सबसे पहले मिश्र यंत्र की मार्किंग की जाएगी। इसमें कर्क राशि वलय, दक्षिणोत्तर भित्ति व सम्राट यंत्र शामिल हैं। कर्क राशि वलय इस यंत्र के उत्तरी दीवार पर विस्तृत क्रमिक के रूप में उत्कीर्ण है। सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिनों में पर्यटक इसे देख सकते हैं। वहीं, सभी यंत्र सुचारू होते हैं, तो यह जयपुर के बाद देश का दूसरा जंतर मंतर होगा जो सुचारू अवस्था में कार्य करेगा।
68 फीट ऊंची एशिया की सबसे बड़ी धूप घड़ी है सम्राट यंत्र
सम्राट यंत्र एशिया की सबसे बड़ी धूप घड़ी है। इससे राजा-महाराजा ध्रुव तारा देखा करते थे। वहीं, यह भारतीय समय भी बताता है। इसके द्वारा दिन के सही समय की माप सूर्य के झुकाव से की जाती थी। जिसकी छाया संरचना के ऊपर पड़ती थी। यह 68 फीट ऊंचा, जिसका लगभग 60 फीट भाग धरातल की सतह से ऊपर है। इसके प्रत्येक किनारों पर घंटा, डिग्री व मिनट के चिन्ह क्रमिक रूप से अंकित हैं।
खगोलीय घटना के बारे में मिलती है जानकारी
यहां मुख्य रूप से मिश्र यंत्र, सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र व राम यंत्र हैं। यह सभी यंत्र मौसम के साथ ग्रह-नक्षत्र की सूक्ष्मतम गणना, सूर्य व चंद्र ग्रहण समेत कई तरह की खगोलीय घटना के बारे में बताते हैं। इन यंत्रों में जयप्रकाश यंत्र का व्यास लगभग 6.33 मीटर है। इसका उपयोग खगोलीय पिंडों, स्थानीय समय व राशिवलयों का समन्वयात्मकता मापने के लिए किया जाता था। इसी तरह राम यंत्र ग्रह व उपग्रह के बारे में जानकारी देता था।
विशेषज्ञ इन यंत्रों पर कार्य कर रहे हैं। यह प्रयास सफल रहा तो जल्द यह वेधशालाएं सुचारू रूप से कार्य करेंगी। ऐतिहासिक दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है। जयपुर के जंतर मंतर की तर्ज पर संरक्षित करने की योजना है। जंतर-मंतर को अपने पुराने रूप में लाना है। -प्रवीण सिंह, दिल्ली सर्कल चीफ व सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट, एएसआई