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कुली कैंप अग्निकांड: मरने वाला युवक निकला जिंदा, रैन बसेरों में आग बुझाने के लिए बालू नहीं; बेघर अब भी बेसहारा

राजीव कुमार/नितिन राजपूत, अमर उजाला, दिल्ली Published by: अनुज कुमार Updated Wed, 03 Dec 2025 08:28 AM IST
सार

वसंत विहार के कुली कैंप स्थित रैन बसेरा में सोमवार तड़के लगी भीषण आग ने दो लोगों की जान ले ली, लेकिन अब तक मृतकों की पहचान को लेकर पेंच फंसा हुआ है। पुलिस दोहरे डीएनए सैंपल लेकर मामले की तह तक पहुंचने का प्रयास कर रही है, वहीं इस घटना ने दिल्ली के रैन बसेरों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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young man who died in night shelter during Coolie Camp accident was found alive
कुली कैंप स्थित रैन बसेरा में लगी आग - फोटो : अमर उजाला
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वसंत विहार के कुली कैंप स्थित रैन बसेरा में सोमवार तड़के लगी आग में दो लोगों की जान चली गई थी। इसमें एक के शव की अशोक ने अपने बेटे अर्जुन के रूप में शिनाख्त की जबकि स्थानीय लोगों ने दूसरा शव विकास नाम के युवक का बताया। पुलिस जांच में विकास के जीवित होने का पता चलने पर अब महेंद्र नाम के शख्स ने मृत युवक के शव को अपने भाई संतोष का बताया है। पुलिस ने मामला सुलझाने के लिए उसका डीएनए सैंपल लिए है। इससे शव की पहचान हो सकेगी। 

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पुलिस ने अर्जुन के पिता का सैंपल भी लिया है। मूलत: यूपी के महोबा के रहने वाले महेन्द्र ने बताया कि वह परिवार के साथ मुनिरका में किराये के मकान में रहता है और मजदूरी करता है। उनका भाई संतोष भी मजदूरी करता था और रोजाना सुबह मिलते थे लेकिन दो दिनों से उनकी मुलाकात नहीं हुई है। संतोष एक महीने से इसी रैन बसेरा में सो रहा था। उन्होंने बताया कि कल देर रात उन्हें कुली कैंप वालों से ही पता चला कि रैन बसेरा में आग लग गई है। संतोष अपने पास फोन भी नहीं रखते थे, लेकिन सुबह या शाम मिलते जरूर थे। 
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काफी तलाशने के बाद भाई के नहीं मिलने पर उसे आशंका है कि मरने वाला उसका भाई संतोष है। पुलिस ने मंगलवार को अर्जुन के शव का दावा करने वाले उनके पिता अशोक और संतोष के भाई महेन्द्र का डीएनए सैंपल लिया है। पुलिस अधिकारी का कहना है कि दोनों शवों को अज्ञात मानकर पुलिस दोनों की पहचान करने में जुटी है।

रैन बसेरों में आग बुझाने के लिए बालू नहीं... जमीनी हकीकत में बेघर अब भी बेसहारा
दक्षिण-पश्चिम जिला के वसंत विहार इलाके में बीते रविवार देर रात एक रैन बसेरे (शेल्टर होम) में लगी भीषण आग ने दो लोगों की जान ले ली थी। इस घटना ने रैन बसेरों की सुरक्षा को सवाल के घेरे में ला खड़ा कर दिया है। मंगलवार को इन रैन बसेरों की जमीनी हकीकत जानने के लिए की गई पड़ताल में हालात कागजों से बिल्कुल अलग दिखे। 

कागजों में बेहतर व्यवस्था और सुरक्षा उपकरणों का दावा होने के बावजूद हकीकत यह है कि रैन बसेरों पर निगरानी ढीली और देखभाल की कमी है। साथ ही, बेघर लोग अब भी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। जहां दिल्ली सरकार की ओर से बनाए गए रैन बसेरों में अग्निशामक यंत्र की व्यवस्था तो नजर आई, लेकिन कई रैन बसेरों को संभालने वाले केयरटेकर नदारद दिखे।

यही नहीं, जिन छतों के नीचे यहां लोग चैन की नींद लेना चाहते हैं। वह भी जर्जर स्थिति में नजर आए। इसके अलावा, एक-एक कमरों में 25 से 30 लोग रह रहे हैं, जिनके आने-जाने का एक ही रास्ता है। पूरे कमरों में गद्दे, कंबल और कपड़े हैं। ऐसे में आग लगने की घटनाओं में यहां स्थिति भयावह हो सकती है। इसके अलावा, आपात स्थिति में आग बुझाने के लिए बालू तक नहीं रखे गए हैं। 
वहीं, सड़कों पर रात गुजारने वाले लोगों का दावा है कि उन्हें इन रैन बसेरों में रुकने नहीं दिया जाता। केवल स्थायी गिने चुने लोगों को वहां प्रवेश दिया जाता है। उन्होंने बताया कि वहां के केयरटेकर कहते हैं कि रैन बसेरे में जगह खाली नहीं है। दिल्ली में फिलहाल 200 रैन बसेरे से अधिक हैं, जहां करीब 19,000 लोगों के रहने की व्यवस्था है।

विभाग कहता कि इन रैन बसेरों में नौ हजार बेड उपलब्ध हैं, लेकिन हकीकत में केवल 4 से 5 हजार बेड ही उपलब्ध हैं। कई रैन बसेरों में लोग जमीन पर सोने को मजबूर हैं। कई रैन बसेरों में छतें जर्जर हैं, प्लास्टर झड़ रहा है और सीलन से दीवारें कमजोर हो चुकी हैं।  पोर्टा केबिन की छतों की हालात भी बेहद दयनीय है। अजमेरी गेट स्थित गली बोरियान के रैन बसेरा कोड नंबर 2, रामलीला मैदान स्थित रैन बसेरा कोड 221, गुरू तेग बहादुर अस्पताल के पास स्थित कोड नंबर 80 व 207, दंगल मैदान के रैन बसेरे कोड 252 और 253 और फतेहपुरी स्थित आरसीसी बिल्डिंग (कोड 11 व 66) समेत कई रैन बसेरों की यही स्थिति है। कोडिया पुल के आसपास बने रैन बसेरों की पड़ताल कुछ और ही तस्वीर सामने लाती है। 

रामलीला मैदान स्थित रैन बसेरा कोड 221 : यहां दीवारों पर सुरक्षा निर्देश टंगे दिखे और दो अग्निशमन यंत्र भी लगे थे। वहीं अंदर केयरटेकर सो रहा थे, कई बार उठाने के बाद वह नींद से जागे। ऐसे में बिना रोक-टोक के यहां कोई भी आ जा रहा था। 

रैन बसेरा तो है, पर हमें अंदर आने नहीं देते। कहते हैं कि जगह भरी हुई है। ठंड में बाहर सड़क पर बैठना दर्द भरा है। -उमेश
केयरटेकर होते ही नहीं हैं। अंदर कौन रहता है, कौन नहीं कोई देखने वाला नहीं होता। कई बार हमें खुद ही बाहर कर दिया जाता है। -नितिन
मेरे जैसे कई लोग मरीजों के साथ आते हैं और रैन बसेरे का सहारा लेते हैं, लेकिन हमें कई बार मना कर दिया जाता है। डर भी लगता है, क्योंकि निगरानी नहीं होती। -काजल
यहां तो अंदर कुछ लोग ऐसे बैठे हैं जो कोई नए आदमी को घुसने ही नहीं देते। रैन बसेरा होने के बावजूद हम सड़क पर ही रात काटते हैं। अगर ये जगह सबके लिए बनी है तो फिर हमें क्यों रोका जाता है। -नन्हे लाल

मंत्री  ने कुली कैंप नाइट शेल्टर का निरीक्षण किया
गृह एवं शहरी विकास मंत्री आशीष सूद ने मंगलवार को वसंत विहार स्थित कुली कैंप नाइट शेल्टर का दौरा कर आग से हुए नुकसान का जायजा लिया। उन्होंने प्रभावित लोगों से मुलाकात कर राहत कार्यों की समीक्षा की। दौरे में आरकेपुरम के विधायक अनिल शर्मा भी मौजूद थे। सूद ने बताया कि स्थिति अब नियंत्रण में है और संबंधित विभाग राहत व पुनर्वास में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार सभी रैन बसेरों में सुविधाएं बेहतर बनाने और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए व्यापक सुधार कर रही है। नए टेंडर भी इसी उद्देश्य से आगे बढ़ रहे हैं।

मंत्री ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर वे मौके का निरीक्षण करने पहुंचे हैं। प्रभावित परिवारों को उचित आर्थिक सहायता देने पर सरकार विचार कर रही है। सूद ने कहा कि सर्दियों में आग की घटनाओं को रोकने के लिए टेंट आधारित रैन बसेरों में अंगीठी का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा और सुरक्षित हीटर उपलब्ध कराए जाएंगे। सभी रैन बसेरों का फोरेंसिक व फिजिकल ऑडिट कराने के भी निर्देश दिए गए हैं।

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