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Success Story: इंजीनियर से ऑस्कर 2026 तक का तय किया सफर, फिल्म होमबाउंड ने नीरज घेवाण को दिलाई वैश्विक पहचान

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवम गर्ग Updated Sat, 20 Dec 2025 08:45 AM IST
सार

इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री है, लेकिन खर्च चलाने के लिए फिल्मी ब्लॉग लिखते थे। गुलजार साहब के अंदाज के दीवाने नीरज घेवाण 35 साल तक अपनी जिस जातिगत पहचान को छिपाए रहे, आज वंचित वर्गों के उन्हीं लोगों की कहानियों को परदे पर उतारकर भारतीय सिनेमा में अपनी एक सार्थक छाप छोड़ रहे हैं।

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Neeraj Ghaywan Success Story: From Engineer to Oscars 2026, Homebound Brings Global Recognition
नीरज घेवाण - फोटो : Amar Ujala Graphics
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बात नब्बे के दशक की है। शाम ढल चुकी थी और एक साधारण-सा मध्यमवर्गीय परिवार दूरदर्शन पर चल रही फिल्म में डूबा हुआ था। रिमोट सबसे बड़ी बहन के हाथ में था, जिसे कलात्मक फिल्में पसंद आती थीं। कलात्मक फिल्में यानी हकीकत पर आधारित छोटी बजट की फिल्में। कमरे के एक कोने में, चुपचाप बैठा एक छोटा-सा लड़का भी परदे से नजरें हटाए बिना सब कुछ देख रहा था। पर शायद वह यह नहीं जानता कि कहानी क्या कह रही है, पर उसने इतना जरूर महसूस किया कि इन दृश्यों में कुछ तो ऐसा है, जो दिल के किसी अनछुए कोने को झकझोर रहा है। वक्त बीतता गया और वह लड़का भी बाकी लोगों की तरह घर-परिवार तथा समाज की धारा में बहता चला गया। उसने एक ऐसी नौकरी पा ली, जहां हर सुख-सुविधा थी। लेकिन उसके भीतर कहीं एक खाली जगह भी थी, मानो जैसे बचपन में कोने में बैठा वह बच्चा, रास्ते में कहीं छूट गया हो। उसी खालीपन को साथ लेकर वह सपनों की नगरी मुंबई पहुंचता है। वहां भी बेचैनी कम नहीं होती। फिर अचानक एक दिन फोन की घंटी बजती है और उसे अनुराग कश्यप का सहायक बनने का ऑफर मिलता है। उस एक कॉल ने उसके भीतर चल रही उथल-पुथल को दिशा दे दी। ठीक उसी शाम उसके पिता का भी फोन आता है, जो बताते हैं कि उसे देखने लड़की वाले आने वाले हैं। पर उसने यह बताते हुए मना कर दिया कि मैंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया है और अब मैं सहायक निर्देशक बनने जा रहा हूं। उसी क्षण उसका वर्षों का खालीपन जिद और जुनून में बदल जाता है। यही जुनून आगे चलकर 2015 में मसान फिल्म के रूप में परदे पर उतरता है, जिसने भारतीय सिनेमा की संवेदनशीलता की भाषा ही बदल दी। वह लड़का कोई और नहीं, बल्कि भारत की आधिकारिक एंट्री के रूप में ऑस्कर 2026 में बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म श्रेणी के लिए शॉर्टलिस्ट की गई फिल्म होमबाउंड के निर्देशक नीरज घेवाण हैं।

शुरुआत
नीरज घेवाण का जन्म 1980 में हैदराबाद के एक महाराष्ट्रीयन माता-पिता के घर हुआ था। उनके पिता एक शोध वैज्ञानिक थे और मां एक गारमेंट स्टोर चलाती थीं। तीन बहनों के बाद जन्मे इकलौते बेटे के रूप में उन्हें मां-दादी का खास प्यार मिला। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय, शिवरामपल्ली, हैदराबाद से पूरी की। इसके बाद उन्होंने चैतन्य भारती इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और फिर सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट, पुणे से एमबीए (मार्केटिंग) किया। उन्होंने अपने कॅरिअर की शुरुआत यूटीवी न्यू मीडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और टेक महिंद्रा जैसी कंपनियों में इंजीनियरिंग जॉब्स से की। लेकिन बाद में पैशन फॉर सिनेमा डॉट कॉम जैसे ब्लॉग के लिए फिल्म समीक्षा लिखना शुरू कर दिया।

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फिल्मों का सफर
नीरज घेवाण ने 2010 में शॉर्ट फिल्म 'इंडिपेंडेंस' बनाई। अनुराग कश्यप के निर्देशन में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'अग्ली' में सहायक निर्देशक बने। 2015 में उनकी पहली निर्देशित फिल्म 'मसान' ने कान्स में दो अवॉर्ड जीते, फिर 2017 की 'जूस' ने फिल्मफेयर बेस्ट शॉर्ट फिल्म का खिताब जीता। इसके अलावा, उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स की लोकप्रिय सीरीज 'सेक्रेड गेम्स' और अमेजन प्राइम वीडियो के लिए 'मेड इन हेवन' के कई एपिसोड्स का निर्देशन किया। होमबाउंड फिल्म की प्रेरणा नीरज को पत्रकार बशारत पीर की 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' में छपे एक लेख 'टेकिंग अमृत होम' से मिली। कान्स फिल्म फेस्टिवल में होमबाउंड की स्क्रीनिंग के बाद दर्शक अपनी सीटों से खड़े होकर करीब नौ मिनट तक लगातार तालियां बजाते रहे।

अरहर की दाल व गुजराती संगीत
नीरज घेवाण का पसंदीदा खाना अरहर की दाल व चावल है। उन्हें बिरयानी खाने का भी शौक है। उन्हें गुजराती लोकगायकी पसंद है और वह अपने आप को बाथरूम सिंगर बताते हैं। नीरज अखबार तथा खबरों से जुड़े रहना पसंद करते हैं। उन्हें दो बीघा जमीन, प्यासा, बैंडिट क्वीन और ब्लैक फ्राइडे जैसी फिल्में बेहद पसंद हैं। खाली वक्त में वह बीयर पीते हुए फिल्में देखना पसंद करते हैं। उनकी ज्यादातर फिल्में सामाजिक कलंक, बहिष्कार, भेदभाव जैसे विषयों पर आधारित होती हैं।

35 साल तक छिपाई पहचान
नीरज घेवाण ने 35 साल तक अपनी दलित पहचान को छिपाए रखा, क्योंकि बचपन से ही उन्हें जातिगत भेदभाव का डर सताता था। कॉलेज व नौकरी के दौरान दोस्त और बाकी लोग उन्हें नीरज कुमार के नाम से जानते थे न कि नीरज घेवाण के। मसान की सफलता के बाद 2016 में उन्होंने एक साक्षात्कार में अपनी दलित पहचान को उजागर किया। आज वह हिंदी सिनेमा के चुनिंदा दलित फिल्मकारों में से एक हैं, जो नागराज मंजुले जैसे निर्देशकों से प्रेरणा लेकर समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की कहानियों को परदे पर लाते हैं।

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