Year Ender 2025: एआई का इस्तेमाल बढ़ा, छात्रों की मानसिक सेहत पर बहस तेज; शिक्षा में सुधारों का साल रहा 2025
Year Ender 2025: साल 2025 में शिक्षा क्षेत्र में एनईपी के तहत बड़े सुधार, हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया बिल, एआई आधारित पढ़ाई, परीक्षा बदलाव और छात्रों की मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दे चर्चा में रहे। कोचिंग दबाव, सुसाइड मामले और एआई के बढ़ते इस्तेमाल ने नीतिगत बहस को और तेज किया।
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Education in Transition: पिछले एक साल में शिक्षा क्षेत्र में कई बड़े बदलाव देखने को मिले। सरकार की नई नीतियां, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते इस्तेमाल और छात्रों की मानसिक सेहत से जुड़े गंभीर मुद्दे इस दौरान चर्चा के केंद्र में रहे। खास तौर पर छात्रों में आत्महत्या की घटनाओं ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े किए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को लागू हुए पांच साल पूरे होने के बाद केंद्र सरकार ने इसके लंबे समय से प्रस्तावित सुधारों को कानून का रूप देने की दिशा में कदम बढ़ाया। सरकार ने पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एआई को एक अहम साधन के रूप में अपनाया, वहीं परीक्षा व्यवस्था और छात्रों पर बढ़ते दबाव जैसी पुरानी चुनौतियां भी बनी रहीं।
HECI बिल को मंजूरी
इस साल का सबसे बड़ा घटनाक्रम हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) बिल से जुड़ा रहा। इस बिल का मकसद उच्च शिक्षा की व्यवस्था में बड़ा बदलाव करना है। लंबे विचार-विमर्श के बाद केंद्रीय कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दी, जिसे अब विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण (VBSA) बिल, 2025 नाम दिया गया है। इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की तैयारी है।
इस कानून के तहत यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई जैसे अलग-अलग नियामक संस्थानों को मिलाकर एक ही संस्था बनाने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि इससे नियमों की दोहराव खत्म होगी, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर अनुपालन का बोझ कम होगा और एनईपी 2020 के लक्ष्यों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा।
हालांकि आलोचकों का मानना है कि एक केंद्रीय नियामक से राज्यों की भूमिका कमजोर हो सकती है और स्थानीय जरूरतों को नजरअंदाज किया जा सकता है।
परीक्षा सुधारों पर भी रहा जोर
इस साल परीक्षा सुधारों पर भी खास जोर रहा। स्कूल बोर्ड से लेकर उच्च शिक्षा तक, निरंतर मूल्यांकन, प्रोजेक्ट आधारित परीक्षा और मॉड्यूलर टेस्टिंग जैसे विकल्पों को अपनाया जाने लगा। कई विश्वविद्यालयों ने साल के अंत में होने वाली पारंपरिक परीक्षाओं के बजाय नए प्रयोग शुरू किए।
सीबीएसई ने 10वीं में दो परीक्षाओं की शुरुआत की
सीबीएसई ने कक्षा 10वीं से साल में दो बार बोर्ड परीक्षा की शुरुआत की। वहीं नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) की प्रवेश परीक्षाओं में पिछले साल हुए पेपर लीक के बाद राधाकृष्णन समिति की सिफारिशों के आधार पर बड़े बदलाव किए गए। इसके बावजूद परीक्षा का तनाव एक बड़ी समस्या बना रहा।
छात्रों पर बढ़ते दबाव को कम करने की पहल
एक संसदीय समिति ने प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं से जुड़ी कोचिंग संस्कृति और बढ़ते दबाव की समीक्षा करने की घोषणा की। सीबीएसई ने भी तथाकथित "डमी स्कूलों" के खिलाफ सख्ती बढ़ाते हुए अचानक निरीक्षण शुरू किए।
छात्र आत्महत्या कम करने दिशा में सुप्रीम कोर्ट की पहल
इसी दौरान कोटा समेत कई जगह छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य किया और छात्रों की मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दों पर काम करने के लिए राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया।
इस टीम ने एक विशेष पोर्टल लॉन्च किया, देशभर में सर्वे शुरू किए और कैंपस में एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति व प्रशिक्षित काउंसलर की जरूरत पर जोर दिया।
शिक्षा में एआई की एंट्री
साल का एक बड़ा बदलाव शिक्षा में एआई का व्यापक इस्तेमाल रहा। देश के बड़े संस्थानों से लेकर राज्य सरकारों के कॉलेजों तक, एआई को पढ़ाई और प्रशासन का हिस्सा बनाया गया। पर्सनलाइज्ड ट्यूटरिंग, ऑटोमैटिक ग्रेडिंग और पाठ्यक्रम डिजाइन तक में एआई का उपयोग बढ़ा।
शिक्षा मंत्रालय ने 2025-26 के बजट में एआई फॉर एजुकेशन के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की घोषणा की। इसका उद्देश्य शिक्षकों को ट्रेनिंग देना, कॉलेजों में एआई लैब बनाना और इंडस्ट्री के साथ मिलकर रिसर्च और स्किल डेवलपमेंट को बढ़ावा देना है।
इंडस्ट्री रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्यादातर उच्च शिक्षा संस्थानों ने एआई से जुड़ी नीतियां अपना ली हैं और जनरेटिव एआई का इस्तेमाल पढ़ाई, एडैप्टिव लर्निंग और प्रशासनिक कामों में तेजी से बढ़ रहा है।
स्कूल स्तर पर भी स्कूल शिक्षा विभाग और एनसीईआरटी ने शुरुआती कक्षाओं से ही एआई साक्षरता और कंप्यूटेशनल थिंकिंग को पाठ्यक्रम में शामिल करने की दिशा में काम शुरू किया है। माध्यमिक कक्षाओं के लिए अलग पाठ्यपुस्तकें और फ्रेमवर्क तैयार किए जा रहे हैं।
हालांकि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि डेटा प्राइवेसी, समान अवसर और पाठ्यक्रम की गुणवत्ता जैसे नैतिक मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी है, ताकि एआई शिक्षा को कमजोर करने के बजाय मजबूत बना सके।