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मुख्यमंत्री बिहार के: सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे अब तक 23 चेहरे, सबसे युवा, सबसे कम और कौन रहा सबसे ज्यादा दिन?

इलेक्शन डेस्क, अमर उजाला Published by: संध्या Updated Fri, 07 Nov 2025 09:14 AM IST
सार

विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा साफ हो जाएगा। देश की आजादी के बाद से बिहार ने कई मुख्यमंत्रियों को देखा है। इसमें से कुछ सीएम ऐसे है जिसने केवल चार दिन सत्ता संभाली तो किसी ने 20 साल तक तोड़ जोड़ के साथ सत्ता पर कब्जा रखा। 

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Chief Ministers of Bihar 23 faces have reached the top of power so far who was the youngest, who served the sh
बिहार के मुख्यमंत्री - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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बिहार में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। 14 नवंबर को नतीजे आने के साथ यह तय हो जाएगा कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी और कौन इसका सारथी होगा। यानी, बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? मुख्यमंत्री पद की बात हो ही रही है तो आइये जानते है कि अब तक बिहार में कितने मुख्यमंत्री रहे हैं। कौन बिहार का सबसे युवा मुख्यमंत्री रहा है? मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाला सबसे उम्रदराज चेहरा कौन सा है? किस मुख्यमंत्री का कार्यकाल सबसे लंबा रहा है तो कौन सबसे कम वक्त तक इस पद पर रह पाया? कितनी महिलाएं इस पद पर रहीं? 

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सबसे पहले जानें बिहार में अब तक कितने मुख्यमंत्री हुए

बिहार में 17 बार गठित हुई विधानसभा में अब तक कुल 23 चेहरे मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। 1952 में बिहार में पहली बार चुनाव हुए थे। पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने अपना कार्यकाल पूरा किया। दूसरी बार भी मुख्यमंत्री बने पर कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके बाद 1990 तक यहां एक भी मुख्यमंत्री अपना पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। लालू प्रसाद यादव 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और अपना पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद 2005 में मुख्यमंत्री बने नीतीश ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। नीतीश के नौ कार्यकाल में सिर्फ यही इकलौता कार्यकाल है जो निर्बाध रूप से चला। 

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सबसे कम वक्त के मुख्यमंत्री कौन?

बिहार में सत्ता परिवर्तन शुरू से होता रहा है। 1960 के दशक में तो कई मुख्यमंत्री ऐसे रहे जो कुछ दिन, कुछ हफ्ते या कुछ महीने महीने ही पद पर रह सके। पहली, 10वीं और 14वी विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो ऐसी कोई विधानसभा नहीं हुई जिसमें एक से ज्यादा मुख्यमंत्री न रहे हों। 16वीं और 17वीं विधानसभा में मुख्यमंत्री का चेहरा तो एक ही रहा पर उसी चेहरे ने एक से ज्यादा बार शपथ ली। 17 बार हुए विधानसभा चुनाव में बिहार में अब तक 23 चेहरे कुल मिलाकर 39 बार मुख्यमंत्री शपथ ले चुके हैं। इसके बीच में कुल सात बार प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लगा। इसमें से सबसे कब समय तक पद पर रहने वाले मुख्यमंत्रियों का बात करें तो इसमें तीन नाम है। ये सभी 20 दिन से भी कम समय के लिए पद पर रहे। 

सतीश प्रसाद सिंह- बिहार के छठे मुख्यमंत्री बने सतीश प्रसाद सिंह केवल चार दिन के लिए बिहार के सीएम रहे। वह परबत्ता सीट से जीतकर 28 जनवरी 1968 से 1 फरवरी 1968 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे।  1962 में उन्होंने परबत्ता विधानसभा सीट से स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर अपनी जमीन बेचकर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 1967 में संसोपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे। चुनाव के बाद कई दलों ने मिलकर सरकार बनाई।  जन क्रांति दल के महामाया प्रसाद सिन्हा बिहार के पांचवें मुख्यमंत्री बने। बीपी मंडल सरकार में मंत्री पद चाहते थे, लेकिन लोहिया इसके सख्त खिलाफ रहे। आखिरकार बीपी मंडल संसोपा से अलग हुए और अपना अलग शोषित दल बना लिया। सतीश प्रसाद सिंह ने भी विरोध शुरू किया। इसका फायदा बीपी मंडल को हुआ। सतीश प्रसाद सिंह और बीपी मंडल ने जोड़तोड़ के जरिए संयुक्त विधायक दल सरकार से करीब 20-30 नेताओं को तोड़ भी लिया। आखिरकार 1968 में विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ। सीएम महामाया गठबंधन को अपने साथ नहीं रख पाए और सरकार गिर गई। 

 शोषित दल के बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने अपने करीबी सतीश प्रसाद सिंह का नाम अंतरिम तौर पर आगे कर दिया, ताकि जब बीपी मंडल कहें तब एसपी सिंह इस्तीफा दे दें और मंडल बिहार के सीएम बन सकें।  सांसद बीपी मंडल को 29 जनवरी को विधान परिषद भेजा गया और 1 फरवरी 1968 को बिहार में बीपी मंडल के नेतृत्व में सरकार बन गई। सतीश प्रसाद सिंह इस सरकार में मंत्री बने। इस तरह बिहार में चार दिन के मुख्यमंत्री की कहानी का अंत हुआ।

नीतीश कुमार- बिहार के सबसे लंबे और सबसे ज्यादा बार सीएम रहने वाले नीतीश कुमार भी सबसे कम दिनों तक सीएम रहने वालों की कतार में भी शामिल हैं। साल 2000 में पहली बार नीतीश कुमार केवल सात दिन के लिए मुख्यमंत्री पद पर रहे। फरवरी 2000 में बिहार में चुनाव हुए तब बिहार और झारखंड एक ही थे। नतीजों में राजद को 124 सीटें मिली, लेकिन यह बहुमत से कम थी। भजपा को 67 समता पार्टी को 34 सीटें मिली और कांग्रेस को 23 सीटें मिली। इसके बाद भाजपा और समता पार्टी ने एक साथ आकर सरकार बनाने का दावा किया। नीतीश कुमार एनडीए सरकार में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार बहुमत नहीं जुटा पाई और नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। 

भोला पासवान शास्त्री- भोला पासवान ने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनके इस तीनों कार्यकाल को मिला भी दें तो भी वे एक वर्ष पूरा नहीं कर पाए। उनका दूसरा काल केवल  22 जून 1969 से 4 जुलाई 1969 तक यानी 12 दिनों का ही था। जो की उनके दो और कार्यकालों में सबसे छोटा था। 

1968 में मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री 99 दिन पद पर रहे थे। उनके इस्तीफे के बाद बिहार में अगले आठ महीने राष्ट्रपति शासन लगा रहा। इसके बाद चुनाव हुए तो फिर से किसी दल को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस के हरिहर सिंह ने 116 दिन सरकार चलाई। उनसे हटने के बाद राज्यपाल ने विपक्ष के तत्कालीन नेता लोकतांत्रिक कांग्रेस के भोला पासवान शास्त्री को सरकार गठन के लिए आमंत्रित किया। शास्त्री ने बिना मौका गंवाए सभी कांग्रेस विरोधी दलों को एकजुट किया। लोकतांत्रिक कांग्रेस दल की अगली सरकार के लिए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा), प्रजातंत्र सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा), भाकपा, जनसंघ, शोषित दल के समर्थन से भोला पासवान को फिर मुख्यमंत्री चुना गया। सरकार के अंदर आपसी असहमती के कारण 12 दिन में ही 1 जुलाई 1969 को भोला पासवान मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया। 

किस मुख्यमंत्री का कार्यकाल सबसे सबसे लंबा रहा? 

नीतीश कुमार- अब तक नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके नीतीश कुमार अब तक के सबसे लंबे समय तक सीएम रहे हैं। 2005 में नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। उनके मुख्यमंत्री बने रहने का यह सिलसिला 2014 तक बरकरार रहा। इस समय पर आठ वर्षों से भी ज्यादा समय तक के लिए मुख्यमंत्री रहे। 2014 के आम चुनावों के पहले नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। वह राजद और कांग्रेस के साथ चले गए। 

2014 के आम चुनावों में पार्टी को हार मिली, इसके बाद नीतीश कुमार ने पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2015 विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की। 2015 से अब तक पिछले नौ वर्षों में नीतीश कुमार छह बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। 2015 2015 में मांझी को हटाकर नीतीश मुख्यंत्री बने। नवंबर में विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने फिर से इस पद की शपथ ली। 2017 में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद नीतीश ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया और एनडीए में वापस आ गए। 

2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को जीत मिली। एक बार फिर नीतीश कुमार सीएम बने। अगस्त 2022 में, कुमार ने एनडीए छोड़ दिया और महागठबंधन में फिर से शामिल हो गए। जनवरी 2024 में, नीतीश कुमार ने एक बार फिर महागठबंधन छोड़ दिया और एनडीए में शामिल हो गए। कुल मिलाकर नीतीश इस पद पर 19 साल से ज्यादा वक्त तक रह चुके हैं। 

श्री कृष्ण सिंह- बिहार के सबसे लंबे समय तक सीएम बनने वालों में नीतीश कुमार के बाद श्री कृष्ण सिंह का नाम आता है। वह एक ऐसे राजनेता थे जो आजादी के पहले से बिहार के प्रीमियर रहे। 1937 में, जब अंग्रेजों ने धीरे-धीरे राज्यों की सत्ता में भारतीयों को जगह देना शुरू किया तो बिहार में कांग्रेस सत्ता में आई। श्रीकृष्ण सिन्हा इस प्रांत के प्रीमियर बने। उन्होंने 20 जुलाई 1937 को पटना में, भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत, अपने कैबिनेट का गठन किया। कृष्ण सिन्हा ने 1937 से 1952 तक राज्य के प्रीमियर रहे। 1952 से 1961 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। वह 1961 तक यानी वह नौ वर्ष बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।  

बिहार के अब तक के सबसे युवा सीएम कौन हैं?

सतीश प्रसाद सिंह- सबसे कम समय तक के लिए सीएम रहने के साथ-साथ, सतीश प्रसाद का नाम बिहार सबसे युवा मुख्यमंत्री के तौर पर लिया जाता है। वह मात्र 32 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री बने थे। खगड़िया जिले के परबत्ता प्रखंड में स्थित कोरचक्का गांव में 1 जनवरी 1936 को जमीनदार परिवार में इनका जन्म हुआ था। मात्र 26 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1962 में अपने जिले में आने वाली परबत्ता विधानसभा सीट से विधायकी का चुनाव लड़ने की ठानी। पहली बार उन्हें चुनाव में कांग्रेस की लक्ष्मी देवी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस सीट पर 1964 में लक्ष्मी देवी के निधन के बाद फिर उपचुनाव भी हुए। सतीश प्रसाद सिंह ने फिर जमीन का एक टुकड़ा बेचकर चुनाव लड़ा। इस बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर और फिर हारे। दो हार ने उनके हौसले को नहीं तोड़ा। बताया जाता है कि वे अगले चुनाव तक परबत्ता में ही टिके रहे। 1967 में जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुए तो सतीश प्रसाद सिंह को परबत्ता सीट से संसोपा ने टिकट पर जीते। इसके बाद वह 1968 में चार दिनों के मुख्यमंत्री भी बने। उस वक्त उनकी उम्र 32 साल थी।  

कर्पुरी ठाकुर- सबसे युवा मुख्यमंत्रियों  में सूची दूसरे स्थान पर कर्पूरी ठाकुर हैं। वह 46 वर्ष की उम्र में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। जनहित के कार्यों के कारण जनमानस उन्हें 'जननायक' कह कर पुकारता है। वह 22 दिसंबर 1970 को बिहार के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने हिंदी को राजभाषा बनाया और वृद्धावस्था पेंशन शुरू की।

बिहार के सबसे  उम्रदराज मुख्यमंत्री कौन रहे हैं?

नीतीश कुमार-  2024 में जब नीतीश ने नौवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस वक्त  उनकी उम्र 72 वर्ष थी।  

सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री रहने वाले चेहरे भी नीतीश

नीतीश कुमार- नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। 2000 के बाद एक बाद राबड़ी देवी और एक बार जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने। वह 19 वर्ष से भी ज्यादा समय से बिहार की शीर्ष कुर्सी पर विराजमान हैं। इनके अलावा राबड़ी देवी, जगन्नाथ मिश्र और भोला पासवान शास्त्री तीन-तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 

राबड़ी देवी बिहार की अकेली महिला मुख्यमंत्री

बिहार में अब तक सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी है। राबड़ी देवी ने तीन बार इस पद की शपथ ली। पहली बार 25 जुलाई 1997 से 11 फरवरी 1999 तक वह 1 साल, 201 दिन तक मुख्यमंत्री रहीं।  9 मार्च 1999 से 2 मार्च 2000 तक वह 359 दिन के लिए दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।  उनका तीसरा और आखिरी कार्यकाल 11 मार्च 2000 से 6 मार्च 2005 तक रहा। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने का कहानी भी काफी दिलचस्प है। 1996 में लालू का नाम चारा घोटाले में सामने आया। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। उनके पहले कार्यकाल के दौरान बिहार में दो बड़े जातीय नरसंहार हुए। इसके चलते केंद्र सरकार ने बिहार में राषट्रपति शासन लगा दिया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने भी इसे मंजूरी दी। राबड़ी देवी सत्ता ने हट गईं, लेकिन कांग्रेस ने राज्य सभा में इसके विरोध में वोट किया। इसी के साथ राज्य सभा में यह आदेश पास नहीं हो सका। इसके बाद 9 मार्च 1999 को राबड़ी देवी एक बार फिर मुख्यमंत्री बनीं।

2000 के बिहर चुनावों में राजद को बहुमत नहीं मिला। एनडीए ने सरकार बनाते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए। इसी के साथ नीतीश कुमार को सात दिन बाद ही मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़नी पड़ी। 11 मार्च 2000 को एक बार फिर राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनीं।

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