'मेरे पास सलमान खान के साथ फिल्में तो हैं नहीं, जो नखरे करूं'
मीनाक्षी दीक्षित साउथ की फिल्मों में जाना-पहचाना नाम हैं। उनकी जड़े यूपी में हैं। रायबरेली-कानपुर-लखनऊ में उनके रिश्तेदार-दोस्त हैं। अब वह बॉलीवुड में जमने की कोशिश में हैं। पी से पीएम तक की नाकामी के बाद उन्हें दूसरी फिल्म से उम्मीदें हैं। लाल रंग की इस फिल्म में वह डॉक्टर बनी हैं और कहानी में ट्विस्ट की वजह बनती हैं। मीनाक्षी से बातचीत की रवि बुले ने।
पी से पीएम (निर्देशकः कुंदन शाह) में आपके अनुसार ऐसा क्या था जो नाकामी की वजह बना? मीनाक्षी कहती हैं मेरे हिसाब से इसमें सब ठीक था। ऐक्टिंग, डायरेक्शन, म्यूजिक। परंतु मुझे लगता है कि फिल्म में कहीं वह बात थी कि यह हमारे समय की नहीं लगी। आज के सिनेमा के कर्लस और प्रेजेंटेशन उसमें नहीं दिखे। फिल्म थोड़ी-सी बासी दिख रही थी।
माधुरी दीक्षित को ध्यान में रख कर पी का किरदार रचा गया था, मगर उनके साथ फिल्म नहीं बन सकी। लंबा वक्त गुजर गया। क्या इसलिए ऐसा हुआ?
मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि स्क्रिप्ट बहुत अच्छी थी। उस स्तर पर सब कुछ ठीक था। स्क्रिप्ट पांच साल बाद भी पढ़ेंगे तो आपको तरोताजा लगेगी, मगर हां उसे समय के हिसाब से बनाना बहुत जरूरी है। प्रेम कहानियां सैकड़ों साल पहले जैसी थीं आज भी वैसी होती हैं। उनका प्रेजेंटेशन बदल जाता है।
पहली फिल्म नहीं चलने से ही आपको बड़ा बैनर नहीं मिला और आप नए डायरेक्ट/बैनर की फिल्म कर रही हैं?
यह बात नहीं है। लाल रंग के डायरेक्टर अफजाल नए नहीं हैं। मैं उनसे यंगिस्तान के समय मिली थी। मेरा ऑडिशन उन्हें पसंद आया था परंतु उस फिल्म के लिए चीजें वर्कआउट नहीं हुईं। तब उन्होंने वादा किया था कि हम साथ काम करेंगे। जब उन्होंने अगली फिल्म बनाई तो मुझे उसमें लिया है।
बॉलीवुड साउथ की फिल्म इंडस्ट्री से अलग है
इस फिल्म को करने की कोई खास वजह?
मुझे स्क्रिप्ट अच्छी लगी। मैंने सबसे पहले स्क्रिप्ट मांगी थी। मुझे पता था कि रणदीप हुड्डा इसमें हीरो हैं और मेरा रोल उनकी प्रेमिका का है। मुझे विश्वास था कि रणदीप ऐसी-वैसी फिल्म तो करेंगे नहीं, भले ही प्रोड्यूसर नए हैं। फिर मेरे पास सलमान खान की तीन फिल्में तो हैं नहीं, जो मैं अपने लिए रोल सिलेक्ट करूं!!
अफजाल की एकमात्र फिल्म भी सुपरफ्लॉप है। उनके साथ काम करते हुए क्या रिस्क नहीं लगा?
अफजाल बहुत ब्राइट डायरेक्टर हैं। मुझे लगता है कि किसी डायरेक्टर या आर्टिस्ट के बारे में एक ही फिल्म से राय बनाना सही नहीं है। आप एक फिल्म से किसी को जज नहीं कर सकते। हालांकि मैंने यंगिस्तान देखी नहीं, लेकिन उनके साथ काम करते हुए जान गई कि काम पर उनकी पकड़ अच्छी है। वह नॉर्थ के हैं और वहां के समाज की बारीकियों को समझते हैं।
पी से पीएम की रिलीज के बाद साउथ में आपकी दो फिल्में आईं। क्या बॉलीवुड हीरोइन बन जाने का उन फिल्मों पर कोई असर पड़ा?
ऐसा नहीं है। वह इंडस्ट्री बिल्कुल अलग है। मैं अपनी बात करूं तो काम ईमानदारी से करती हूं। वह चाहे वहां हो या यहां। यही वजह है कि फिल्में मुझे मिलती रही। कुछ फिल्में चलती हैं, कुछ नहीं चलती। यह कोई नहीं जानता है कि कौन सी फिल्म चलेगी और कौन सी नहीं चलेगी।