'वेश्या' बनकर सबको लुभाने आ रही यूपी की ये लड़की
बीते चार-पांच बरस में साउथ की फिल्मों में पैर जमा चुकीं मीनाक्षी दीक्षित की जड़ें यूपी में हैं। वह एक जमींदार परिवार से हैं और रायबरेली, कानपुर और लखनऊ में उनके नाते-रिश्तेदार बसते हैं। मीनाक्षी की पहली बॉलीवुड फिल्म पी से पीएम तक रिलीज के लिए तैयार है। इस फिल्म में एक वेश्या की मुख्यमंत्री बनने की कहानी है। निर्देशक कुंदन शाह को उनमें माधुरी दीक्षित का अक्स नजर आता है। यूपी की बेटी मीनाक्षी से बातचीत की रवि बुले ने...
-आपने एंटरटेनमेंट चैनल के डांस शो से शुरुआत की थी, फिर साउथ की फिल्मों में कैसे पहुंच गईं?
- मैं मुंबई अपनी दोस्त के पास आई थी और संयोग से डांस शो में चुन ली गई थी। मेरे पिता का मन नहीं था, परंतु वे बाद में मान गए। शो के खत्म होने के बाद मेरे पास टीवी सीरियलों से ऑफर आने लगे। मैं खुश थी और मेरा विचार साफ था कि इनमें काम करूंगी और खूब पैसा कमाऊंगी। इससे ज्यादा मैंने नहीं सोचा था। परंतु पता नहीं फिर क्यों बात नहीं बनी। इस बीच साउथ में भी शो देखा गया था और वहां से मेरे पास फिल्म के ऑफर आने लगे। बड़े ऐक्टरों के साथ यह फिल्में थीं। मैंने हां कह दी। मलयालम और तेलुगु फिल्में की। फिर तमिल और कन्नड़ में भी काम किया।
-आपने क्या डांस कहीं सीखा था?
- बिल्कुल नहीं। बस मैं ऐसे ही अच्छा डांस कर लेती थी। यह भगवान की दी हुई प्रतिभा थी। स्कूल में हमारा हाउस अंतिम आता था, लेकिन एक दिन मैंने टीचर से कहा कि मैं डांस कंपीटीशन में हिस्सा लेना चाहती हूं। उन्होंने मेरा नाम लिख लिया और हमारा हाउस फर्स्ट आ गया। वहां से मेरे लिए सब कुछ बदल गया। बाद में कॉलेज जाने पर जरूर मैंने थोड़ा बहुत अलग-अलग तरह का डांस सीखा, परंतु कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली। मेरा नाच देख कर लोगों को लगता है कि मैं क्लासिकल डांस में ट्रेंड हूं। मैं ट्रेंड हूं, लेकिन मैंने सीखा नहीं है।
मीनाक्षी को कैसे मिली पहली फिल्म
-पी से पीएम तक आपको कैसे मिली?
- ईमादारी से कहूं तो ऑडिशन से। कई लड़कियां थीं। मुझे डायरेक्टर ने भी नहीं बुलाया था। जब ऑडिशन के लिए तीन डायलॉग दिए गए तो मुझे लगा कि ये तीन स्क्रिप्ट हैं। मैंने इसकी तैयारी के लिए समय मांगा और अपने स्तर पर एक देसी लड़की बनकर बाद में ऑडिशन के लिए गई। टेस्ट दिया। कास्टिंग डायरेक्टर को टेस्ट पसंद आया। फिर मुझे कुंदन जी से मिलवाया गया। उन्होंने मुझसे और भी सीन कराए। बार-बार टेस्ट लिया और देखा कि कहीं मैं कच्ची तो साबित नहीं होऊंगी। लेकिन अंततः उन्होंने मुझे फाइनल किया।
-आपने अपनी पहली ही हिंदी फिल्म में प्रॉस्टीट्यूट का रोल मंजूर किया। क्या मन में कोई हिचक या डर नहीं था?
- अगर मैं कहूंगी कि ऐसा नहीं था तो यह झूठ होगा। मैं अपने मैनेजर से यह डिस्कस करती थी। शुरू में मुझे डर लग रहा था, लेकिन जब फिल्म के लिए हमने वर्कशॉप शुरू की तो सारा डर और हिचक खत्म हो गई क्योंकि कुंदन सर जिस तरह से कहानी और कैरेक्टर के प्रति अप्रोच करते हैं उससे किसी को संदेह नहीं होगा कि वह कुछ भी गलत या निचले दर्ज का दिखाने जा रहे हैं। फिल्म की यह प्रॉस्टीट्यूट भी मूल्यों के साथ जीने वाली महिला है। उनके साथ काम करते हुए मेरा सिनेमा और काम के प्रति नजरिया बदल गया।
क्या आप बोल्ड इमेज बनाना चाहती हैं?
-बॉलीवुड में कलाकार को इमेज में बांध दिया जाता है!
- मुझे लगता है कि अगर इस फिल्म से मेरी कोई इमेज बनेगी तो अच्छी ऐक्टर की बनेगी। कुंदनजी कभी ऐसी फिल्म नहीं बनाते हैं जिसमें कुछ भद्दा या भौंडा हो। फिर मुझे भी लगता है कि जो रोल निभाना हो उसे पूरे मन से करना चाहिए, चाहे वह मिस युनिवर्स का रोल हो या सेक्स वर्कर का।
-कुछ दिन पहले फिल्म आई थी डर्टी पॉलिटिक्स। उसमें एक नाचने-गाने वाली महिला की राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिखाई गई थी। उस फिल्म से आपका किरदार कितना अलग है?
- उस फिल्म से इस फिल्म की कोई समानता नहीं है। यहां जो प्रॉस्टीट्यूट है उसकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। परिस्थितियां उसे राजनीति में ले जाती है। वह तो समाज के सबसे निचले तबके से आती है। अनपढ़ है। कुंदन जी ने इसे एक प्रतीक की तरह दिखाया है। सीएम बनने से पहले वह क्या है, उसके बाद क्या होती है। कैसे उसका राजनीति में इस्तेमाल होता है। यह फिल्म में दिखाया गया है।
-आपने कहा कि यह प्रॉस्टीट्यूट प्रतीकात्मक है। आपने किरदार को निभाने के लिए इसे किस तरह से समझा?
- इसे समझने और निभाने के लिए मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ी। हमारा एक वर्कशॉप कुंदनजी ने रेड लाइट एरिया में भी रखा था। वहां मैं ऐसी महिलाओं से पहली बार मिली। उन्हें ध्यान से देखा। उनका उठना, बैठना, बोलना, चलना। उनकी बातों, मजबूरियों और इस पेशे में आने की कहानियों ने मुझे भीतर तक हिला दिया। उनका दर्द अपने आप मेरे दिमाग में बैठ चुका था। वहां से लौटने के बाद जब मैंने सीन किए तो सब कुछ मेरे किरदार में सहज में आ गया।
यूपी की इस हीरोइन की राजनीति में भी है दिलचस्पी
-फिल्म एक तीखा व्यंग्य है। मगर क्या इसमें समाज के इस तबके लिए कोई नई राह या इनकी स्थिति सुधारने के लिए संदेश है?
- हमने कोई मैसेज नहीं दिया है, लेकिन व्यंग्य के साथ इसमें आप एक काव्यात्मक करुणा भी पाएंगे। हमने इसमें उनकी सच्चाई दिखाई है। यह प्रॉस्टीट्यूट जो दो सौ रुपये के लिए शरीर बेचती है, एक मौका आता है जब गलत ढंग से आए पचास करोड़ रुपये भी स्वीकार करने से इंकार कर देती है। फिल्म में बहुत से मैसेज छुप हुए हैं। कुंदनजी अलग किस्म के निर्देशक हैं। मुझे लगता है कि उनकी यह फिल्म समय से आगे की है। आप इसे देखने के बाद फिर से देखना चाहेंगे और आपको महूसस होगा कि कुछ नया ही देख रहे हैं।
-फिल्म में राजनीति है। आपने भी क्या इससे कुछ राजनीति सीखी?
- इस फिल्म का सबसे बड़ा असर मुझ पर यह हुआ कि अब मैं पॉलीटिक्स में दिलचस्पी लेने लगी हूं। अखबार में देखने लगी हूं कि राजनीतिक मामलों में क्या चल रहा है। मुझे लगने लगा है कि जब कुछ गलत हो रहा है तो चुप नहीं बैठे रहना चाहिए।
देखिए, पी से पीएम तक का ट्रेलर