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Amar Ujala Samwad:‘हमारी वाणी से ही आचरण का पता चलता है’, संवाद के मंच पर कवि आलोक ने सुनाया शिव तांडव स्त्रोत

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: ज्योति राघव Updated Wed, 17 Dec 2025 03:08 PM IST
सार

Amar Ujala Samwad Haryana: आज बुधवार को अमर उजाला संवाद के मंच पर मशहूर कवि, लेखक और गीतकार आलोक श्रीवास्तव पहुंचे। यहां उन्होंने 'कविता की बात' मुद्दे पर चर्चा की।

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Haryana Amar Ujala Samwad: Poet Writer and Lyricist Aalok Shrivastav Talks About Poetry and Cinema
आलोक श्रीवास्तव - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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अमर उजाला संवाद 2025 का आयोजन 17 दिसंबर यानी आज गुरुग्राम में जारी है, जहां खेल, मनोरंजन और राजनीति जगत की दिग्गज हस्तियां शिरकत कर रही हैं। आज आयोजित वैचारिक कार्यक्रम संवाद में लोकप्रिय कवि, लेखक और गीतकार आलोक श्रीवास्तव भी पहुंचे। संवाद के मंच से उन्होंने कविता की बात सत्र में हिस्सा लिया। उन्होंने क्या कहा? जानिए...

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संवाद में पहुंचे आलोक श्रीवास्तव, राष्ट्रवंदना से की शुरुआत
आलोक श्रीवास्तव ने संवाद के मंच पर पहुंचकर सबसे पहले कविता के साथ शुरुआत की। उन्होंने कहा, 'जो यह कहते हैं कि धर्म पहले, उनसे मैं कहता हूं कि नहीं, राष्ट्र पहले, देश पहले। इसलिए मैंने कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्र वंदना से की। इसके बाद वे ईश वंदना की तरफ दर्शकों को लेकर गए'।  उन्होंने 'राम क्या हैं' कविता की पंक्तियां सुनाईं। उन्होंने कहा, 'जो कहते हैं कि राम या रामायण फिक्शन हैं, उनसे कहता हूं, 'रामलीला में ही सत्य का मार्ग है'।

दर्शकों को सुनाया शिव तांडव स्तोत्र
आलोक श्रीवास्तव ने आगे कहा, 'कितना अद्भुत संयोग है कि हमारी वाणी हमारे चरित्र का पता चलता है'। उन्होंने आगे कहा, 'गोस्वामी तुलसीदास जब शिव जी की वंदना कर रहे थे तो उनके सामने 'नमामि शमीशान' आया। मगर जब दशानन ने यह पाठ किया तो उसके सामने जो छंद आया, वह उसकी प्रकृति के अनुकूल आया। आलोक श्रीवास्तव ने आगे कहा, 'एक दिन मुझसे आशुतोष राणा (अभिनेता) ने कहा कि रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र  काफी जटिल है, इसका सरलीकरण करके हिंदी में अनुवाद किया जाए। इसके बाद आलोक ने संवाद में रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र का हिंदी अनुवाद सुनाया, जिसकी कुछ पंक्तियां इस तरह है:

जटाओं से है जिनके जलप्रवाह माते गंग का
गले में जिनके सज रहा है हार विष भुजंग का
डमड्ड डमड्ड डमड्ड डमरु कह रहा शिवः शिवम्
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्

सजल लहर विहोग गई चपल चपल ललाट पर
धधक रहा हैं स्वर्ण सा अनल सकल ललाट पर
ललाट से ही अर्द्ध चंद्र, कह उठा शिव: शिवम्
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्

जो नंन्दनी के वंदनीय, नंन्दनी स्वरूप है
वे तीन लोक के पिता, स्वरूप एक रूप है
कृपालु ऐसे है के चित्त जप रहा शिवः शिवम्
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम् 


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