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'हमारा बजाज' से लेकर 'फेविकोल के जोड़' तक, पीयूष पांडे ने यूं बदला एड जगत का चेहरा; अमिताभ तक थे इनके कायल
एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला
Published by: हिमांशु सोनी
Updated Fri, 24 Oct 2025 10:45 AM IST
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सार
Piyush Pandey Death: भारतीय विज्ञापन जगत की आत्मा और चेहरे को बदलने वाले प्रखर व्यक्तित्व पीयूष पांडे का गुरुवार को 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। चलिए जानते हैं उनके बारे में सबकुछ।
पीयूष पांडे
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
'शरमा के दुल्हन जो ब्याह के आईं..', पीयूष पांडे का वो एड जिसके अमिताभ भी थे कायल। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने साल 2019 में पीयूष पांडे के काम की सराहना करते हुए एक्स पर पोस्ट किया था। ऐसे ही कई यादगार एड के लिए पीयूष को जाना जाता था। पीयूष अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने अपनी रचनात्मकता, सरलता और भारतीयता के रंगों से नई परिभाषा गढ़ी। चलिए जानते हैं पीयूष पांडे के बारे में।
कौन थे पीयूष पांडे?
जयपुर में 1955 में जन्मे पीयूष पांडे नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनके परिवार में कला और सृजन की परंपरा रही। बहन ईला अरुण ने गायकी और अभिनय में नाम कमाया, तो भाई प्रसून पांडे ने निर्देशन की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने राजस्थान के लिए रणजी ट्रॉफी में भी हिस्सा लिया था। क्रिकेटर, चाय बागान में कामगार और मजदूर के रूप में जीवन के अलग-अलग रंग देखने के बाद उन्होंने 27 साल की उम्र में विज्ञापन जगत में कदम रखा। तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह युवक एक दिन भारतीय एड वर्ल्ड का चेहरा बन जाएगा। उनकी शादी नीता पांडे से हुई।
यह खबर भी पढ़ें: रोमांस-थ्रिलर से लेकर पौराणिक कहानियों तक, इस वीकेंड ओटीटी पर मिलेगा एंटरटेनमेंट का फुल डोज
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कौन थे पीयूष पांडे?
जयपुर में 1955 में जन्मे पीयूष पांडे नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनके परिवार में कला और सृजन की परंपरा रही। बहन ईला अरुण ने गायकी और अभिनय में नाम कमाया, तो भाई प्रसून पांडे ने निर्देशन की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने राजस्थान के लिए रणजी ट्रॉफी में भी हिस्सा लिया था। क्रिकेटर, चाय बागान में कामगार और मजदूर के रूप में जीवन के अलग-अलग रंग देखने के बाद उन्होंने 27 साल की उम्र में विज्ञापन जगत में कदम रखा। तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह युवक एक दिन भारतीय एड वर्ल्ड का चेहरा बन जाएगा। उनकी शादी नीता पांडे से हुई।
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पीयूष पांडे
- फोटो : इंस्टाग्राम
भारतीयता की छाप
पीयूष पांडे की खासियत थी कि उन्होंने भारतीय उपभोक्ताओं की भावनाओं को बेहद सादगी से पकड़ा। फेविकोल का 'अटूट बंधन' हो या कैडबरी का 'कुछ खास है', एशियन पेंट्स का 'हर खुशी में रंग लाए' हो या हच का प्यारा 'गुगली वूगली वूस', हर विज्ञापन में उन्होंने देसी मिट्टी की खुशबू डाली। यही कारण है कि उनके कैंपेन सिर्फ विज्ञापन नहीं, बल्कि संस्कृति के प्रतीक बन गए।
राजनीति और प्रचार की नई भाषा
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भारतीय राजनीति में भी विज्ञापन की नई भाषा दी- 'अबकी बार, मोदी सरकार।' यह नारा उस दौर का सबसे चर्चित राजनीतिक स्लोगन बना, जिसने चुनावी अभियानों की दिशा ही बदल दी। पीयूष पांडे ने साबित किया कि विज्ञापन सिर्फ उत्पादों को नहीं, विचारों को भी जन-जन तक पहुंचा सकता है।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’- राष्ट्रीय एकता का स्वर
विज्ञापन से परे, उन्होंने ऐसे अभियानों में भी अहम भूमिका निभाई जो भारत की एकता और विविधता को दर्शाते हैं। ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ उनके दिल के बेहद करीब था। यह गीत केवल एक कैम्पेन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव था जिसने भारत को एक सूत्र में बांध दिया।
पीयूष को मिले सम्मान और उपलब्धियां
उनके योगदान को अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें पद्मश्री (2016), क्लियो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2012), एडवर्टाइजिंग एजेंसिज़ एसोसिएशन ऑफ इंडिया लाइफटाइम अचीवमेंट (2010), एलआईए लीजेंड अवार्ड (2024) जैसे अवॉर्ड्स मिले हैं। इसके अलावा, उन्होंने अपनी रचनात्मक यात्रा और अनुभवों को 'पांडेमोनियम' नाम की पुस्तक में शब्दों का रूप दिया, जो विज्ञापन जगत के छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इसके अलावा उन्होंने साल 2022 में 'ओपन हाउस विद पीयूष पांडे' नाम से भी एक पुस्तक लिखी थी।
अमिताभ ने की थी तारीफ
साल 2019 में बिग बी ने पीयूष के फेविकॉल वाले एड की तारीफ करते हुए एक्स पर पोस्ट किया था। उन्होंने लिखा था- 'पांडे ब्रदर्स की शानदार सोच… पीयूष और प्रसून... बहुत बढ़िया पीयूष जी … बिल्कुल मौलिक और दिल को छू जाने वाला...कोई आश्चर्य नहीं कि आप वर्ल्ड चैंपियन हैं …!!'
पीयूष पांडे की खासियत थी कि उन्होंने भारतीय उपभोक्ताओं की भावनाओं को बेहद सादगी से पकड़ा। फेविकोल का 'अटूट बंधन' हो या कैडबरी का 'कुछ खास है', एशियन पेंट्स का 'हर खुशी में रंग लाए' हो या हच का प्यारा 'गुगली वूगली वूस', हर विज्ञापन में उन्होंने देसी मिट्टी की खुशबू डाली। यही कारण है कि उनके कैंपेन सिर्फ विज्ञापन नहीं, बल्कि संस्कृति के प्रतीक बन गए।
राजनीति और प्रचार की नई भाषा
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भारतीय राजनीति में भी विज्ञापन की नई भाषा दी- 'अबकी बार, मोदी सरकार।' यह नारा उस दौर का सबसे चर्चित राजनीतिक स्लोगन बना, जिसने चुनावी अभियानों की दिशा ही बदल दी। पीयूष पांडे ने साबित किया कि विज्ञापन सिर्फ उत्पादों को नहीं, विचारों को भी जन-जन तक पहुंचा सकता है।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’- राष्ट्रीय एकता का स्वर
विज्ञापन से परे, उन्होंने ऐसे अभियानों में भी अहम भूमिका निभाई जो भारत की एकता और विविधता को दर्शाते हैं। ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ उनके दिल के बेहद करीब था। यह गीत केवल एक कैम्पेन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव था जिसने भारत को एक सूत्र में बांध दिया।
पीयूष को मिले सम्मान और उपलब्धियां
उनके योगदान को अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें पद्मश्री (2016), क्लियो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2012), एडवर्टाइजिंग एजेंसिज़ एसोसिएशन ऑफ इंडिया लाइफटाइम अचीवमेंट (2010), एलआईए लीजेंड अवार्ड (2024) जैसे अवॉर्ड्स मिले हैं। इसके अलावा, उन्होंने अपनी रचनात्मक यात्रा और अनुभवों को 'पांडेमोनियम' नाम की पुस्तक में शब्दों का रूप दिया, जो विज्ञापन जगत के छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इसके अलावा उन्होंने साल 2022 में 'ओपन हाउस विद पीयूष पांडे' नाम से भी एक पुस्तक लिखी थी।
अमिताभ ने की थी तारीफ
साल 2019 में बिग बी ने पीयूष के फेविकॉल वाले एड की तारीफ करते हुए एक्स पर पोस्ट किया था। उन्होंने लिखा था- 'पांडे ब्रदर्स की शानदार सोच… पीयूष और प्रसून... बहुत बढ़िया पीयूष जी … बिल्कुल मौलिक और दिल को छू जाने वाला...कोई आश्चर्य नहीं कि आप वर्ल्ड चैंपियन हैं …!!'
T 3266 - .. a brilliant concept & execution by the Pandey Brothers .. Piyush & Prasoon 👏👏👏👏👏 well done Piyush ji .. so original and endearing .. no wonder you are World Champions ..!!!🇮🇳🇮🇳🙏🙏🌹💖💖 pic.twitter.com/iaan2kouEb
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) August 23, 2019