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Jatadhara Review: दांत किटकिटाती सोनाक्षी को देख फोड़ लेंगे अपना सिर, समय और पैसे की बर्बादी है ‘जटाधरा’

Akash Khare आकाश खरे
Updated Fri, 07 Nov 2025 08:01 AM IST
सार

Jatadhara Movie Review: 2019 में रिलीज हुई 'मिशन मंगल' के बाद से लेकर अब तक सोनाक्षी सिन्हा की 8 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं। ये सभी फ्लॉप रहीं। अब सोनाक्षी अपनी पहली तेलुगु और दूसरी बाइलिंगुअल फिल्म ‘जटाधरा’ लेकर आई हैं। जानिए कैसी है यह फिल्म…

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Sonakashi Sinha and Sudheer Babu Starrer Jatadhara Movie Review Released in telugu and hindi
जटाधरा फिल्म रिव्यू - फोटो : अमर उजाला
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Movie Review
जटाधरा
कलाकार
सुधीर बाबू , सोनाक्षी सिन्हा , दिव्या खोसला और शिल्पा शिरोडकर आदि
लेखक
वेंकट कल्याण
निर्देशक
अभिषेक जयसवाल और वेंकट कल्याण
निर्माता
जी स्टूडियोज , प्रेरणा अरोड़ा और उमेश केआर बंसल
रिलीज
7 नवंबर 2025
रेटिंग
1/5

विस्तार
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1992 में रिलीज हुई ‘रात्री’ से लेकर अनुष्का शेट्टी अभिनीत ‘अरुन्धती’ तक, तेलुगु सिनेमा में कई हॉरर फिल्में बनी हैं। इन सभी फिल्मों में कुछ न कुछ एलीमेंट था। किसी में डर था, तो किसी में कहानी कमाल की थी.. पर फिल्म ‘जटाधरा’ इतनी कमाल है कि इसमें कुछ है ही नहीं। 

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शुरू से लेकर अंत तक यह फिल्म इतनी उबाऊ है कि जब इसमें कोई हॉरर सीन आता है तो दर्शक डरने के बजाय हंसना शुरू कर देते हैं.. या यूं कहें कि वो अपनी किस्मत पर रो रहे होते हैं। क्योंकि शुरू से लेकर अंत तक न तो इस फिल्म में कोई हॉरर एलीमेंट है, न ही ढंग का वीएफएक्स है और न ही कोई थ्रिल। या तो फिल्म को बिना कहानी या बिना स्क्रीनप्ले के शूट किया गया है। या फिर इसे एडिटिंग टेबल पर कचरा किया गया है। वहीं सोनाक्षी सिन्हा जिन्हें पहली बार किसी अलग किरदार में देखने की इच्छा थी और उम्मीद थी कि वो कुछ कमाल कर जाएंगी, वो एक बार फिर से फेल हुई। पूरी फिल्म में वो या तो आपको चीखती-चिल्लाती दिखेंगी या फिर अपने दांत किटकिटाती हुई दिखेंगी, जिसे देखकर आपकी हंसी ही नहीं रुकेगी। जानिए इस फिल्म के बारे में विस्तार से…
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कहानी
कहानी एक घोस्ट हंटर शिवा (सुधीर बाबू) की है जो भूत-प्रेत और आत्माओं पर यकीन नहीं करता पर उन्हें ढूंढता रहता है। उसे हर रात एक ही अजीब सा सपना आता है जिसके तार उसके बचपन से जुड़े हैं। इसी बीच एक गांव है जहां जो भी सोने का कलश ढूंढने जाता है, उसकी मौत हो जाती है। कहते हैं कि उस गांव में खजाना गढ़ा हुआ है और उसकी रक्षा धन पिशाचनी (सोनाक्षी सिन्हा) कर रही है। क्या शिवा उस गांव तक पहुंच पाएगा? वहां जाकर वो धन पिशाचनी से जीत पाएगा? इन सवालों के जवाब आपको फिल्म देखकर मिलेंगे।



स्क्रीनप्ले और एडिटिंग
इस फिल्म की कहानी पढ़ने और सुनने में बड़ी इंट्रेस्टिंग लगती है। संभवत: यह कागजों पर बड़ी अच्छी लगी होगी। विजअुलाइजेशन भी बड़ा कमाल का किया गया हाेगा पर जो स्क्रीन पर बनकर सामने आया है वाे बहुत ही वाहियात है। 
फिल्म की शुरुआत ही होती है पांच मिनट के AI जनरेटेड सीन से, जिसमें आपको फिल्म का बैकड्रॉप बताया जाता है और इस सीन को देखकर ही आपका आधा इंट्रेस्ट खत्म हाे जाता है। अगर 70 करोड़ के बजट में बनी फिल्म में आपको वो सीन देखने को मिलें जो आप फ्री में इंस्टाग्राम रील पर देखते हैं तो सोचिए कैसा लगेगा? फिल्म की एडिटिंग भी एकदम खराब है। कहीं भी कोई भी सीन आ रहा है। कहीं से कुछ भी जम्प हो जा रहा है और आप बस अवाक देख रहे हैं कि आखिर चल क्या रहा है?



अभिनय 
सुधीर बाबू ने पूरी फिल्म में जमकर मेहनत की है। चाहे अभिनय हो या लुक्स उनकी मेहनत दिखती है पर पूरी फिल्म में उनके अलावा कोई और नहीं है जिसे देखा जा सके। सुधीर बाबू के अपोजिट फिल्म में दिव्या खाेसला हैं। उनकी डायलॉग डिलिवरी इतनी स्लो है कि कछुआ भी शर्मा जाए। हर सीन में वो ओवर रिएक्ट करती दिखती हैं। सोनाक्षी सिन्हा के पास यहां करने के लिए कुछ था भी नहीं और जो उन्होंने किया वो वैसे ही बर्बाद है। पूरी फिल्म में उनके बमुश्किल तीन सवांद हैं जिन्हें वो चीखते-चिल्लाते ही बोलती हैं। शिल्पा शिरोड़कर से बहुत उम्मीदें थीं और उन्होंने अपने अहम दृश्यों में अच्छे एक्सप्रेशन भी दिए पर उन्हें भी ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं मिला। रवि प्रकाश, इंदिरा कृष्णा, राजीव कनाकाला ने ठीक ठाक अभिनय किया। पंडित बने सुभालेखा सुधाकर काे पूरी फिल्म में सबसे ज्यादा और सबसे अच्छे डायलाॅग बोलने का मौका मिला।



निर्देशन
ऐसा लगता है जैसे अभिषेक जयसवाल और वेंकट कल्याण ने यह फिल्म अलग-अलग बनाई है। निर्देशक इस फिल्म से कहना क्या चाहते हैं यह तो मेरी समझ से ही परे है। जिस थीम के साथ वो यह कहानी शुरू करते हैं अंत तक उससे भटक जाते हैं। न तो वो बैकस्टोरी ऐसे पेश कर पाते हैं कि लोगों को शॉक लगे और न ही क्लाइमैक्स को ढंग से पेश कर पाते हैं।

म्यूजिक
एक दो गाने और म्यूजिक ठीक-ठाक हैं पर कुछ जगह यह लाउड हो जाता है तो कुछ जगह सीन से मैच नहीं कर पाता।



खूबियां और खामियां
फिल्म के क्लाइमैक्स में सुधीर बाबू ने जो शिव तांडव किया है बस वो ही देखने लायक है। सोनाक्षी के लुक पर भी टीम ने काफी मेहनत की है और वो अच्छी दिखी भी हैं, पर जहां बात एक्टिंग की आती है, तो सबकुछ फीका हो जाता है। बाकी खामियां क्या ही गिनवाऊं? इस फिल्म में खामियां नहीं, खामियाें में यह फिल्म है।

देखें या नहीं 
मुझसे पूछें तो मैं तो अपने दुश्मन को भी ऐसा सिरदर्द नहीं देना चाहूंगा। बाकी आप अगर साउथ की फिल्मों के शौकीन हैं और साेनाक्षी को नए अवतार में देखना चाहते हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं।

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