क्या है शाह बानो केस? जिस पर बनी इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म, सात साल कानूनी लड़ाई के बाद मिला था ‘हक’
What Is The Shah Bano Case: अगर आप भी इमरान हाशमी और यामी गौतम की आगामी फिल्म ‘हक’ देखने का प्लान बना रहे हैं, तो उससे पहले शाह बानो के उस केस के बारे में जान लें, जिस पर यह फिल्म आधारित है।
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इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म ‘हक’ 7 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। फिल्म शाह बानो केस पर आधारित है। यही कारण है कि रिलीज के पहले से ही फिल्म चर्चाओं में बनी हुई है। फिल्म का ट्रेलर सामने आने के बाद से ही शाह बानो का केस भी एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है। आइए जानते हैं क्या है शाह बानो का वो केस जिस पर आधारित है इमरान हाशमी की फिल्म ‘हक’।
1978 में हुई मामले की शुरुआत
शाह बानो का पूरा केस भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मामला है। लगभग सात साल तक चले इस केस की शुरुआत साल 1978 में हुई थी, जब एक 62 साल की बुजुर्ग महिला शाह बानो ने अपने हक और भरण-पोषण के लिए अपने तलाकशुदा पति के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। शाह बानो ने इंदौर की एक अदालत में एक याचिका दायर करके अपने तलाकशुदा पति मोहम्मद अहमद खान से भरण-पोषण की मांग की थी। बता दें कि मोहम्मद अहमद खान उस वक्त एक मशहूर और सबसे बड़े वकीलों में से एक थे।
शादी के 14 साल बाद की दूसरी शादी, बाद में दे दिया तलाक
शाह बानो ने साल 1932 में मोहम्मद अहमद खान से निकाह किया था। दोनों के इस शादी से पांच बच्चे थे, जिनमें तीन बेटे और दो बेटियां थीं। शाह बानो से शादी के लगभग 14 साल बाद मोहम्मद अहमद खान ने दूसरी शादी कर ली, जिसे इस्लामिक पर्सनल लॉ के तहत मंजूरी मिली। इसके बाद दोनों पत्नियां साथ में रहती थीं। लेकिन साल 1978 में मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को तलाक दे दिया और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। इस दौरान अहमद खान ने शाह बानो को इद्दत की अवधि यानी तीन महीने (90 दिन) तक पैसे भेजने का वादा किया।
शाह बानो ने कानूनी तौर पर की भरण-पोषण की मांग
जब तीन महीने बाद मोहम्मद अहमद खान ने पैसे भेजने बंद कर दिए तब शाह बानो ने अपने और बच्चों के भरण-पोषण के लिए इंदौर की अदालत का दरवाजा खटखटाया। यहां उन्होंने याचिका दायर कर अपने तलाकशुदा पति से गुजारे-भत्ते की मांग की। शाह बानो ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के तहत अपने और अपने पांच बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग की। धारा 125 उन महिलाओं को अपने पति से तलाक या अलग होने के बाद भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार देती है, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
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मोहम्मद अहमद खान ने मुस्लिम पर्सन लॉ का दिया था हवाला
शाह बानो की इस याचिका और मांग के जवाब में मोहम्मद अहमद खान ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए शाह बानो की याचिका को गलत बताया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, वो पहले ही शाह बानो को इद्दत की अवधि तक भुगतान कर चुके हैं। इस अवधि के पूरे होने के बाद उनके पैसे देने की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी मोहम्मद अहमद खान की दलील का समर्थन किया। साथ ही कहा गया कि अदालतें मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़े मामलों में दखल नहीं दे सकतीं। ऐसा करना मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 का उल्लंघन होगा। इसके बाद शाह बानो और मोहम्मद अहमद खान के बीच एक लंबी कानूनी लड़ाई चली।
सात साल लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में सुनाया फैसला
करीब सात साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद ये मामला साल 1985 में सर्वोच्च अदालत की चौखट पर पहुंचा। जहां पांच जजों की बेंच ने तमाम दलीलों को सुनने के बाद 73 वर्षीय शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला दिया कि धारा 125 के तहत भारत की कोई भी महिला, चाहें वह किसी भी जाति-धर्म से आती हो। अगर अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है और उसे पाने की हकदार है। यही कानून का नैतिक आदेश है और नैतिकता को धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।
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7 नवंबर को रिलीज होगी 'हक'
इमरान हाशमी और यामी गौतम स्टारर फिल्म 'हक' का निर्देशन सुपर्ण वर्मा ने किया है। 7 नवंबर को रिलीज होने वाली इस फिल्म की कहानी शाह बानो केस पर ही आधारित है। हालांकि, फिल्म के रिलीज से पहले ही फिल्म तब विवादों में आ गई, जब शाह बानो के परिवार ने मेकर्स पर तथ्यों से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने फिल्म को लेकर उनसे सहमति न लेने की भी बात कही।