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Bhiwani News: कैंटीन के चूल्हे ने जगाई आत्मनिर्भरता की लौ...कोरोनाकाल में उम्मीद की किरण से रोशन हुई कैंटीन, भतेरी और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने लोगों की भूख मिटाई

Amar Ujala Bureau अमर उजाला ब्यूरो
Updated Thu, 11 Dec 2025 11:51 PM IST
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The canteen's stove ignited the flame of self-reliance... During the COVID period, the canteen, illuminated by a ray of hope, along with women from Bhatri and self-help groups, fed the hungry.
कैंटीन में रोटी बनातीं भतेरी देवी व अन्य महिलाएं। 
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राकेश कुमार
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भिवानी। जिला प्रशासन की ओर से रेलवे रोड पर बापोड़ा स्टैंड तिकोणा पार्क में करीब छह साल पहले सरकारी कैंटीन के लिए भवन का निर्माण कराया। कोरोनाकाल में जरूरतमंदों की मदद के लिए जिला प्रशासन ने कैंटीन को शुरू कराने की बात कही। इन कैंटीन को चालू करने का मौका मिलने के बाद स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं 60 वर्षीय भतेरी ने अपनी मेहनत और जोश से कई जिंदगियों को बदल दिया। हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह की सदस्य भतेरी ने रेलवे रोड के बापोड़ा स्टैंड तिकोणा पार्क में स्थित कैंटीन का संचालन जिम्मेदारी से संभाला। अब यह कैंटीन न केवल सस्ते भोजन का स्रोत बन चुकी है, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए रोजगार का अवसर प्रदान कर रही है।
भतेरी और उनकी साथी महिलाएं हर दिन ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर तैयार करती हैं। इसके अलावा वे खुद के हाथों से अचार भी तैयार करती हैं, जिसका स्वाद लोगों को बहुत भा रहा है। यह कैंटीन जरूरतमंदों के लिए सस्ता और गुणवत्तापूर्ण भोजन प्रदान करने का एक अहम केंद्र बन चुकी है। भतेरी ने बताया कि वह पहले सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील तैयार करने का काम भी कर चुकी हैं, इसलिए भोजन बनाने का उन्हें अच्छा अनुभव था। कैंटीन में भतेरी के अलावा चार और महिलाएं काम करती हैं। संवाद
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हर दिन 500 लोगों के लिए तैयार होता है भोजन
कैंटीन का संचालन हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बवानीखेड़ा के उजाला महिला महासंघ द्वारा किया जा रहा है। भतेरी के अलावा कैंटीन में भागवंती, उषा, सोनिया और बाला भी काम कर रही हैं। ये महिलाएं सुबह 7 बजे से 11 बजे तक नाश्ता तैयार करती हैं, फिर दोपहर साढ़े 11 बजे से 3 बजे तक मध्याहन भोजन बनाती हैं और शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक रात्रि भोजन तैयार करती हैं। हर दिन यहां करीब 500 लोगों के लिए खाना तैयार किया जाता है, जिसमें दाल, सब्जी, चार रोटियां, चावल, सलाद और रायता शामिल होते हैं।
भतेरी ने बताया कि कोरोनाकाल के दौरान अतिरिक्त उपायुक्त कार्यालय से एक पत्र मिला, जिसमें उन्हें कैंटीन संचालन का जिम्मा सौंपा गया। इससे पहले वह स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अचार बनाने का काम करती थीं। अपने पति की मौत के बाद उनके पास कोई स्थिर रोजगार नहीं था, लेकिन अब कैंटीन संचालन के बाद वह और उनके समूह की महिलाएं खुद का रोजगार कर रही हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण भी कर पा रही हैं।
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70 से लेकर 350 रुपये तक की थाली तैयार करती हैं महिलाएं
भतेरी ने बताया कि वह और उनकी साथी महिलाएं अब निजी कार्यक्रमों के लिए भी भोजन तैयार करती हैं। इन कार्यक्रमों में 70 रुपये से लेकर 350 रुपये तक की कीमत पर भोजन की थाली तैयार की जाती है, जो मेहमानों की जरूरत और मेन्यू के हिसाब से अलग-अलग होती है। आमतौर पर छोटे सरकारी कार्यक्रमों से भी ऑर्डर मिलने लगे हैं।
मिशन की जिला समन्वयक सीखा से मिली
प्रेरणा

भतेरी ने बताया कि उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की जिला समन्वयक सीखा राणा से काम करने की प्रेरणा मिली। सीखा राणा ने ही उन्हें बंद पड़ी कैंटीन को फिर से चालू करने के लिए प्रोत्साहित किया। शुरुआत में थोड़ी घबराहट थी, क्योंकि यह एक बड़ा काम था और संसाधन सीमित थे, लेकिन समय के साथ सब कुछ ठीक चला और आज महिलाएं एकजुट होकर समय से भोजन तैयार कर रही हैं।
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