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सजा निर्धारण में अस्पष्टता का लाभ दोषी को मिलेगा : हाईकोर्ट
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-अदालत ने विभिन्न धाराओं में सुनाई गई सजाएं साथ-साथ चलाने का दिया आदेश
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा, सजा सुनाते समय यदि ट्रायल कोर्ट यह स्पष्ट नहीं करता कि एक से अधिक सजाएं साथ-साथ चलेंगी या क्रमवार तो ऐसी अस्पष्टता दोषी के खिलाफ नहीं जा सकती। ऐसे मामलों में प्रथम दृष्टया लाभ अभियुक्त को मिलेगा और यह माना जाएगा कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी न कि क्रमवार। यह फैसला जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने दिया।
मौजूदा मामले में अदालत ने पाया कि दोषी को पांच वर्ष, सात वर्ष व अन्य धाराओं में कम सजाएं सुनाई गई थी और गई अधिकतम सजा सात वर्ष की कैद थी। खंडपीठ ने आदेश की प्रति रजिस्ट्रार को भेजने का निर्देश दिया ताकि यह मुद्दा मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया जा सके और इस पर विचार किया जा सके। अदालत ने कहा, यदि हम इस पहलू को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाने का अनुरोध न करें तो हम अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल होंगे। अदालत ने सुझाव दिया कि जहां दोषसिद्धि के खिलाफ अपील या पुनरीक्षण दायर हो और निर्णय में यह उल्लेख न हो कि सजाएं साथ-साथ या क्रमवार चलेंगी। रजिस्ट्री प्रथम दृष्टया यह मानकर मामला सूचीबद्ध करे कि सजाएं साथ-साथ चलेंगी। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि क्षेत्राधिकार तय करने के लिए कि मामला एकल पीठ में जाएगा या खंडपीठ में केवल अधिकतम सजा को गिना जाए न कि सभी सजाओं के कुल को।
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चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा, सजा सुनाते समय यदि ट्रायल कोर्ट यह स्पष्ट नहीं करता कि एक से अधिक सजाएं साथ-साथ चलेंगी या क्रमवार तो ऐसी अस्पष्टता दोषी के खिलाफ नहीं जा सकती। ऐसे मामलों में प्रथम दृष्टया लाभ अभियुक्त को मिलेगा और यह माना जाएगा कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी न कि क्रमवार। यह फैसला जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने दिया।
मौजूदा मामले में अदालत ने पाया कि दोषी को पांच वर्ष, सात वर्ष व अन्य धाराओं में कम सजाएं सुनाई गई थी और गई अधिकतम सजा सात वर्ष की कैद थी। खंडपीठ ने आदेश की प्रति रजिस्ट्रार को भेजने का निर्देश दिया ताकि यह मुद्दा मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया जा सके और इस पर विचार किया जा सके। अदालत ने कहा, यदि हम इस पहलू को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाने का अनुरोध न करें तो हम अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल होंगे। अदालत ने सुझाव दिया कि जहां दोषसिद्धि के खिलाफ अपील या पुनरीक्षण दायर हो और निर्णय में यह उल्लेख न हो कि सजाएं साथ-साथ या क्रमवार चलेंगी। रजिस्ट्री प्रथम दृष्टया यह मानकर मामला सूचीबद्ध करे कि सजाएं साथ-साथ चलेंगी। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि क्षेत्राधिकार तय करने के लिए कि मामला एकल पीठ में जाएगा या खंडपीठ में केवल अधिकतम सजा को गिना जाए न कि सभी सजाओं के कुल को।
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