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हाईकोर्ट की एक पति को राय: गुजारा भत्ता देने में सक्षम नहीं हो तो और अधिक कमाओ, खर्चों की दलील नहीं चलेगी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: चण्डीगढ़-हरियाणा ब्यूरो Updated Wed, 02 Jul 2025 08:05 PM IST
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सार

जयपुर के अस्पताल में वरिष्ठ पुरुष नर्स के रूप में काम करने वाले व्यक्ति की शादी 2014 में हुई थी। उसकी पत्नी दो बच्चों को लेकर अलग रह रही है। याची ने पारिवारिक न्यायालय के 24 हजार 700 के भरण-पोषण के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

High Court advice to husband on alimony
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पति गुजारा भत्ता राशि अर्जित करने में यदि पति सक्षम नहीं है, तो यह उसका कर्तव्य है कि वह पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण राशि देने के लिए और अधिक कमाए।
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हाईकोर्ट ने यह आदेश पति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी और दो नाबालिग बच्चों के लिए 24,700 के पारिवारिक न्यायालय के भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी थी। न्यायालय ने पति की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसके पास अन्य दायित्व हैं, जिसके कारण वह इसे वहन करने में असमर्थ है। कानून के प्रावधानों के तहत पति को अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करना होगा।

2014 में हुई थी शादी

दंपति की शादी 2014 में हुई थी और उनके विवाह से दो बच्चे पैदा हुए। पति का कहना था कि पत्नी बिना किसी कारण उससे अलग हो गई और वह करीब 5 साल से अलग रह रही है। पति ने यह भी कहा कि वह एसएमएस अस्पताल, जयपुर में वरिष्ठ पुरुष नर्स के रूप में काम कर रहा है और उसकी मासिक आय 57,606 रुपये है। उसने तर्क दिया कि भरण-पोषण जो उसके मासिक वेतन का लगभग आधा है, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि उसे अपनी बीमार मां की देखभाल भी करनी है, ठीक नहीं है। उसके पास लिए गए ऋण के संबंध में ईएमआई से संबंधित अन्य दायित्व भी हैं।

कोर्ट ने पति के अन्य दायित्व वाली दलील बीमार मां की देखभाल करने की दलील को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी तथा नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करना याचिकाकर्ता का न केवल कानूनी तथा वैधानिक दायित्व है, बल्कि यह सामाजिक तथा आर्थिक दायित्व भी है। कोर्ट ने कहा कि याची की पत्नी काम नहीं कर रही है तथा उसके पास दो नाबालिग बच्चे हैं, जिनकी आयु क्रमशः 8 वर्ष तथा 6 वर्ष बताई गई है। उन्होंने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया होगा, और देश की मुद्रास्फीति के अनुपात में 24,700 रुपये प्रति माह को अधिक नहीं कहा जा सकता। परिणामस्वरूप, याचिका खारिज कर दी गई।
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