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शादी के बाद बच्चों की माता-पिता पर निर्भरता खत्म, यह धारणा सामाजिक वास्तविकताओं से परे : हाईकोर्ट
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-विवाहित होने और कमाई करने के बावजूद हाईकोर्ट ने बेटे को माना मुआवजे का हकदार
-पुरानी धारणाओं को गलत बताते हुए हाईकोर्ट ने जारी किया बेहद अहम फैसला
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। मोटर दुर्घटना मुआवजा कानून के दायरे का विस्तार करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा, मृतक के बालिग, विवाहित और यहां तक कि कमाने वाले बेटे भी कानूनी प्रतिनिधि हैं और वे पूरा मुआवजा जिसमें पैरेंटल कंसोर्टियम (माता-पिता का सान्निध्य) भी शामिल है, पाने के हकदार हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि शादी के बाद बच्चों की माता-पिता पर निर्भरता खत्म हो जाती है यह धारणा सामाजिक वास्तविकताओं से परे और गलत है।
यह फैसला जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कुलदीप, सोनू व अन्य बनाम जगदीप व अन्य में जारी किया है। कोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल 8 फरवरी 2019 के फैसले को संशोधित करते हुए मुआवजा राशि 1,73,100 से बढ़ाकर 14,81,448 रुपये निर्धारित की है। कोर्ट ने ट्रिब्यूनल की उस सोच को खारिज किया जिसमें आर्थिक निर्भरता न होने के आधार पर मृतक के बालिग बेटों को पूर्ण राहत से वंचित किया था। कोर्ट ने कहा कि मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों को मुआवजा मांगने का अधिकार है। बालिग, विवाहित और कमाने वाले बेटे भी कानूनी प्रतिनिधि हैं; उनकी आर्थिक निर्भरता निर्णायक नहीं है। कोर्ट ने सामाजिक संदर्भ जोड़ते हुए कहा कि हमारे समाज में माता-पिता अपने बालिग/विवाहित बेटे-बेटियां ही नहीं बल्कि पोते-पोतियों तक की देखभाल और सहयोग करते रहते हैं। शादी के बाद निर्भरता खत्म होने की बात एक भ्रांति है।
मिस्त्री कुशल श्रमिक-अकुशल मजदूर मजदूरी नहीं
50 वर्षीय मृतक हीरा लाल पेशे से मिस्त्री थे। ट्रिब्यूनल द्वारा उनकी आय को अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी मानना गलत ठहराते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मिस्त्री कुशल श्रमिक होता है। सही मासिक आय 10,000 आंकी गई और भविष्य की संभावनाएं 25 प्रतिशत जोडी गई। इस तरह मासिक आय 12,500 (10,000 + 25 प्रतिशत) तय हुई और व्यक्तिगत खर्च में बेटों के दावेदार होने की स्थिति में 1/3 कटौती सही मानी गई। ट्रिब्यूनल द्वारा कोई कटौती न करना त्रुटिपूर्ण बताया गया। 50 वर्ष की आयु के लिए मल्टीप्लायर 13 लागू कर वार्षिक आय 99,996 और निर्भरता हानि 12,99,948 निर्धारित की गई।
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अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। मोटर दुर्घटना मुआवजा कानून के दायरे का विस्तार करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा, मृतक के बालिग, विवाहित और यहां तक कि कमाने वाले बेटे भी कानूनी प्रतिनिधि हैं और वे पूरा मुआवजा जिसमें पैरेंटल कंसोर्टियम (माता-पिता का सान्निध्य) भी शामिल है, पाने के हकदार हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि शादी के बाद बच्चों की माता-पिता पर निर्भरता खत्म हो जाती है यह धारणा सामाजिक वास्तविकताओं से परे और गलत है।
यह फैसला जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कुलदीप, सोनू व अन्य बनाम जगदीप व अन्य में जारी किया है। कोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल 8 फरवरी 2019 के फैसले को संशोधित करते हुए मुआवजा राशि 1,73,100 से बढ़ाकर 14,81,448 रुपये निर्धारित की है। कोर्ट ने ट्रिब्यूनल की उस सोच को खारिज किया जिसमें आर्थिक निर्भरता न होने के आधार पर मृतक के बालिग बेटों को पूर्ण राहत से वंचित किया था। कोर्ट ने कहा कि मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों को मुआवजा मांगने का अधिकार है। बालिग, विवाहित और कमाने वाले बेटे भी कानूनी प्रतिनिधि हैं
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मिस्त्री कुशल श्रमिक-अकुशल मजदूर मजदूरी नहीं
50 वर्षीय मृतक हीरा लाल पेशे से मिस्त्री थे। ट्रिब्यूनल द्वारा उनकी आय को अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी मानना गलत ठहराते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मिस्त्री कुशल श्रमिक होता है। सही मासिक आय 10,000 आंकी गई और भविष्य की संभावनाएं 25 प्रतिशत जोडी गई। इस तरह मासिक आय 12,500 (10,000 + 25 प्रतिशत) तय हुई और व्यक्तिगत खर्च में बेटों के दावेदार होने की स्थिति में 1/3 कटौती सही मानी गई। ट्रिब्यूनल द्वारा कोई कटौती न करना त्रुटिपूर्ण बताया गया। 50 वर्ष की आयु के लिए मल्टीप्लायर 13 लागू कर वार्षिक आय 99,996 और निर्भरता हानि 12,99,948 निर्धारित की गई।