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Hisar News: रिंग में उतरी तो किट व डाईट का नहीं था जुगाड़, आज स्कॉलरशिप से परिवार का भी खर्च उठा रही इंटरनेशनल बॉक्सर भारती व संजिता

Amar Ujala Bureau अमर उजाला ब्यूरो
Updated Fri, 02 Dec 2022 04:30 AM IST
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Kit-diet was not a jugaad, on the strength of courage, flags were buried in the ring
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हिसार। बॉक्सिंग रिंग में जितनी जरूरत फिजिकल फिटनेस की है, उतनी ही जरूरत मानसिक सेहत और धैर्य रखने की है। यदि खिलाड़ियों को बेहतर खेल सुविधाएं और डाइट मिले तो न केवल उसके प्रदर्शन में सुधार होगा, बल्कि वह पदक की झड़ी लगा देगा। रोहतक की बॉक्सर भारती व संजिता जब रिंग में उतरी तो उनके पास किट व डाइट का जुगाड़ तक नहीं था। लेकिन खुद पर विश्वास कर आगे बढ़ीं और नेशनल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। आज खेल विभाग की ओर से मिलने वाली स्कॉलरशिप से परिवार का खर्च भी उठा रही हैं। वहीं, पानीपत से पहुंची मंजू बॉक्सर मेरीकॉम से प्रेरणा लेकर रिंग में उतरीं। तीनों खिलाड़ी जाट कॉलेज में चल रही राज्यस्तरीय महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में पंच का दम दिखा रही हैं। खिलाड़ियों से बातचीत के कुछ अंश...।
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मजदूर मां-पिता की बेटी का मजबूत पंच
मैं रोहतक के गांव रूड़की की रहने वाली हूं। पिता दिलबाग और माता सुदेश मजदूरी करते हैं। मैं तीन भाई-बहनों में से सबसे छोटी हूं। परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। पिता ने किसी न किसी तरह मुझे खिलाया। आज मैं पदक जीतकर पिता का सपना पूरा कर रही हूं। मैं आठ साल पहले बड़ी बहन मोनिका से प्रेरणा लेकर रिंग में उतरी थी। शुरू में डाइट और किट न मिलने पर काफी परेशानी आई। मैंने हिम्मत नहीं हारी और किसी न किसी तरह बॉक्सिंग का अभ्यास जारी रखा। मैं दो बार इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में पदक जीत चुकी हूं। 2018 में मैंने पोलैंड में स्वर्ण, 2019 में सर्बिया में कांस्य पदक जीता। - भारती, इंटरनेशनल मेडलिस्ट, बॉक्सर
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सहेली को देखकर उतरी थी रिंग में
मैं रोहतक के रूड़की की रहने वाली हूं। चार साले पहले सहेली ज्योति गुलिया को देखकर बॉक्सिंग रिंग में उतरी थी। घर में पिता सतबीर सिंह ही कमाने वाले हैं, माता शशि बाला गृहिणी हैं। हम चार भाई-बहन हैं। सबसे बड़ी मैं हूं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। बॉक्सिंग शुरू की तो काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, मगर माता-पिता ने हमेशा मुझे खेलने के लिए प्रेरित किया। मेरा सपना सरकारी नौकरी लगकर परिवार की स्थिति को मजबूर करना है। उम्मीद है कि वह सपना एक दिन पूरा होगा। मैं अब तक तीन अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में रजत पदक जीत चुकी हूं। - संजिता, इंटरनेशनल मेडलिस्ट, बॉक्सर
खुद की मेहनत का खेल है बॉक्सिंग
मैं पानीपत के जनक गार्डन की रहने वाली हूं। तीन साल पहले बॉक्सर मेरीकॉम से प्रेरणा लेकर बॉक्सिंग शुरू की। खेल में आगे बढ़ने के लिए माता-पिता ने हमेशा ही सपोट किया। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत चुकी हूं। बॉक्सिंग एकल गेम है। इस गेम में खुद की मेहनत होती है। इसलिए मैंने टीम गेम न चुनकर एकल गेम को ही चुना। मेरा सपना ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का है। पिता की बिजली की दुकान है। परिवार की स्थिति भी सामान्य है। कभी भी माता-पिता ने मुझे खेलने के लिए मना नहीं किया। आज उनकी ही बदौलत मैं यहां तक पहुंची हूं। - मंजू, नेशनल बॉक्सर
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