महामंडलेश्वर ममता कुलकर्णी: 25 साल बड़े पर्दे पर छाईं, अब अध्यात्म में डूबीं; अमर उजाला से खास बातचीत
किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर ममता कुलकर्णी उर्फ महामयी ममता नंद गिरी ने कहा कि असली संत वही है जो परमात्मा से जुड़ा हो और जिसे साधना का अनुभव हो। परमात्मा जानता है कि कौन सच्चा और कौन झूठा है।
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बॉलीवुड अदाकारा रहीं ममता कुलकर्णी अब आध्यात्मिकता की गहराइयों में डूबी हुई हैं। पंचकूला सेक्टर-15 स्थित सामुदायिक केंद्र में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर ममता कुलकर्णी उर्फ महामयी ममता नंद गिरी ने अमर उजाला से विशेष बातचीत की और अपने जीवन के उतार-चढ़ाव भरे अनुभव के बारे में बताया।
महामंडलेश्वर ममता कुलकर्णी ने कहा कि मैंने फिल्मी दुनिया में 25 साल अपने जीवन के बर्बाद कर दिए। वो दुनिया अच्छी नहीं थी। उस समय मेरा ध्यान इस तरफ नहीं आया। अब पिछले 22 साल से संन्यासी जीवन जी रही हूं और ब्रह्मचर्य का पालन कर रही हूं। इतनी कठिन परीक्षा शायद ही किसी ने दी हो, जितनी मैंने दी है।
अध्यात्म की राह आसान नहीं
ममता ने बताया कि उन्होंने बॉलीवुड की चकाचौंध से दूर रहकर आत्म-साक्षात्कार की राह पकड़ी। उन्होंने कहा कि अध्यात्म कोई आसान यात्रा नहीं है, यह एक बहुत बड़ी साधना है जो केवल वेद-उपनिषद रट लेने से पूरी नहीं होती है।
आपने चाहे चारों वेद और उपनिषद कंठस्थ कर लिए हों, लेकिन यदि आप ध्यान, समाधि और धारणा तक नहीं पहुंचे, तो वो ज्ञान शून्य मात्र है। अगर आपके जीवन में वैराग्य नहीं है, तो वो ज्ञान भी व्यर्थ है। उन्होंने आधुनिक दिखावे वाले धार्मिक आयोजनों और बाहरी चोले की आलोचना करते हुए कहा कि आज के समय में योग और साधना केवल लिबास तक सीमित हो गई है।
लोग भगवा वस्त्रों का दिखावा करके बाहर से बहुत बड़े साधु महात्मा दिखते हैं लेकिन वास्तव में उनको अध्यात्मिक ज्ञान की कमी होती हैं। ऐसे लोगों का दिखावा व्यर्थ है।
भगवा वस्त्र आपको योगी नहीं बनाते
उन्होंने कहा कि अब उन्हें पता चल गया है कि सच्चा सुख और शांति केवल अध्यात्म में ही है। अब किसी के पैर छूने या न छूने से मुझे फर्क नहीं पड़ता। ये लिबास या भगवा वस्त्र आपको योगी नहीं बनाते। यह यात्रा भगवान से मिलने की होती है। अब समझ आया कि यही असली दुनिया और सुकून है।
कार्यक्रम के अंत में उन्होंने सभी लोगों को सच्चाई, साधना और संयम के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। सभी को अध्यात्म से जुड़ना चाहिए। यही जीवन की सच्चाई है। इस बात की समझ पहले नहीं आती। धीरे-धीरे समय बीतता जाता है। ठोकर लगने के बाद व्यक्ति को सीख मिलती है और वह भगवान के शरण में जाता है।