सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Himachal Pradesh ›   Groaning mountains Uprooted and cut trees also invited disaster rivers and streams are exposing the truth

कराहते पहाड़ : उखड़ते-कटते पेड़ों ने भी दिया आपदा को न्योता... बरसात में नदी-नाले खोल रहे पोल

सुरेश शांडिल्य, अमर उजाला नेटवर्क, शिमला Published by: अंकेश डोगरा Updated Sun, 14 Sep 2025 09:54 AM IST
विज्ञापन
सार

हिमाचल प्रदेश में वैध और अवैध दोनों ही तरीकों से पेड़ों के कटने का सिलसिला दशकों से चल रहा है। 2023 में बड़े-बड़े लॉग थुनाग बाजार में बहकर आए। इसी साल जून में पंडोह डैम में कई टन लकड़ियां बहती देखी गईं। विभाग की दो पन्नों की रिपोर्ट में इसे अवैध कटान नहीं माना गया। पढ़ें पूरी खबर...

Groaning mountains Uprooted and cut trees also invited disaster rivers and streams are exposing the truth
पंडोह डैम में बहकर आईं लकड़ियां। (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

हिमाचल में उखड़ते-कटते पेड़ भी आपदा को न्योता दे रहे हैं। हिमाचल के हरित क्षेत्र को उत्तर भारत के फेफड़े कहा जाता है, लेकिन लापरवाही के चलते ये लगातार कमजोर हो रहे हैं। वर्षों से पहाड़ों की मिट्टी को मुट्ठी में थामे ये पेड़ बेरहमी से कट रहे हैं। वैध और अवैध दोनों ही तरीकों से पेड़ों के कटने का सिलसिला दशकों से चल रहा है। 

loader
Trending Videos

विकास परियोजनाओं के लिए भी जो पेड़ कटान हो रहा है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए उस अनुपात में नए पौधे नहीं लग रहे। विशेषज्ञों के अनुसार बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं का यह भी बड़ा कारण है। भारी बारिश-बादल फटने के बाद रावी-ब्यास नदी और अन्य नालों में हाल ही में बहकर आईं हजारों टन लकड़ियों ने पहाड़ों की हालत की तस्वीर पेशकर इसकी पोल भी खोल दी। हालांकि वन विभाग इसे अवैध कटान मानने को तैयार नहीं। हिमाचल के नदी-नालों में बहकर आए पेड़ों के वीडियो देखकर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे प्रथमदृष्टया अवैध वन कटान माना है।

विज्ञापन
विज्ञापन

55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हिमाचल में 68 प्रतिशत क्षेत्र यानी 37,948 वर्ग किमी वन भूमि के रूप में दर्ज है। यहां पर हर वेस्ट लैंड वन भूमि है, लेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण (आईएसएफआर-2021) की रिपोर्ट के अनुसार वास्तविक वन आच्छादन यानी हरित आवरण मात्र 15,443 वर्ग किमी (28 प्रतिशत) में है। दशकों से हिमाचल के जंगलों में पेड़ों का कटान हो रहा है। हजारों हेक्टेयर वन भूमि पर सेब के बगीचे बना दिए गए हैं। इनके लिए देवदार के विशालकाय पेड़ों की बलि दी गई। देवदार, बान, बांस और चीड़ जैसे पेड़ मिट्टी को थामते हैं और जल स्रोतों को जीवित रखते हैं, लेकिन पारंपरिक वृक्षों की जगह फलदार पौध या एकल प्रजाति यानी मोनोकल्चर पाैधे लगाए गए हैं। 

बिजली प्रोजेक्टों के लिए दी 5,586 हेक्टेयर वन भूमि
कानूनी तौर पर 296 पन बिजली परियोजनाओं को 5,586 हेक्टेयर वन भूमि दी गई है। बांधों, उच्च मार्गों, फोरलेन आदि बनाने के लिए भी हजारों पेड़ कटे हैं। करीब 150 सड़कें अवैज्ञानिक तरीके से पेड़ काटकर बनी हैं। पेड़ कटान के अनुपात में पौधरोपण करने की बातें महज कागजों में नजर आती हैं। हर साल हिमाचल में लाखों पौधे रोपे जाते हैं, लेकिन कितने पौधे जीवित बचते हैं, इसका दशकों से सही आकलन नहीं हो रहा। 

2023 में बड़े-बड़े लॉग थुनाग बाजार में बहकर आए। इसी साल जून में पंडोह डैम में कई टन लकड़ियां बहती देखी गईं। विभाग की दो पन्नों की रिपोर्ट में इसे अवैध कटान नहीं माना गया। धर्मशाला में एक स्वीडिश महिला अवैध वन कटान की शिकायत कर चुकी है। शिमला के कोटी में सैकड़ों पेड़ काटने का मामला बहुचर्चित रहा है।

सैटेलाइट मैपिंग को कहा पर विभाग गंभीर नहीं
मैंने धर्मशाला में ट्री फेलिंग की रिपोर्ट दी थी, जिसके अनुसार निजी और सार्वजनिक तौर पर पेड़ काटे गए। हमने सैटेलाइट मैपिंग करने को कहा था। नाचन और शिकारी माता मंदिर क्षेत्र में बहुत सारी सड़कें पेड़ कटान से निकली हैं। मैंने दोनों जगह अध्ययन किया है। हाईकोर्ट में शिकायत आई तो मुझे दोनों जगह भेजा गया। बहुत सारे पेड़ काटे पाए गए। सैटेलाइट मैपिंग में जंगल के बीच नए-नए पैच मिले। हाईकोर्ट ने सैटेलाइट मैपिंग को कहा था, मगर इसे विभाग ने गंभीरता से नहीं लिया। कोटी में 400 पेड़ काटे गए तो महज फाॅरेस्ट गार्ड को ही निलंबित करके उसी पर जिम्मेवारी डाली गई है। हाईकोर्ट ने वन गार्ड के बजाय उच्च अधिकारियों को भी जिम्मेवार ठहराया था। केवल वन रक्षकों को स्केपगोेट नहीं बनाया जा सकता। - देवेन खन्ना, अधिवक्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता

कटान वैध या अवैध, जांच जरूरी
हाईवे और डैम बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ कट रहे हैं। पर्यावरण सरंक्षण के लिए यह अच्छा नहीं है। जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ने से आपदाएं बढ़ रही हैं। पंडोह डैम और रावी नदी में पेड़ों का जखीरा सवाल खड़े करता है। पानी के साथ पेड़ कहां से आए, इसकी ठीक से जांच होनी चाहिए। ये पेड़ों के अवशेष हैं या अवैध कटान... पता चलना चाहिए। - मानशी आशर, शोधकर्ता

वन क्षेत्र घटने से आपदा का खतरा
वन क्षेत्र घटने से आपदा का खतरा बढ़ सकता है। विकास के नाम पर अंधाधुंध वन कटान हो रहा है। सड़कें बनाने के लिए वैध और अवैध रूप से पेड़ों पर कुल्हाड़ी चल रही है। प्रोजेक्टों के लिए खोदाई से होने वाले भूस्खलन से भी पेड़ों को नुकसान हो रहा है, जिसका आंकड़ा नहीं रखा जा रहा। क्या वन माफिया भी सक्रिय है। इससे निपटना जरूरी है। - संदीप मिन्हास, पर्यावरणविद
 

सामुदायिक सहभागिता जरूरी
वन कटान पर रोक हो या फिर पौधरोपण। सामुदायिक सहभागिता जरूरी है। लोगों को जागरूक होना होगा। उन्हें ग्रीन कवर को बढ़ाने में आगे आना होगा। जो पेड़ जिस क्षेत्र के लिए उपयोगी हैं, उन्हें वहां लगाया जाए। इस दिशा में वन विभाग काम कर रहा है। जंगल अच्छे होंगे तो जलवायु भी मॉडरेट हो जाती है। आपदाएं भी इससे रुकेंगी। - डॉ. संदीप शर्मा, निदेशक, हिमालयन वन अनुसंधान  संस्थान शिमला

अवैध कटान पर सरकार गंभीर
भारी बरसात ने जंगलों को भी तहस-नहस किया है। वन क्षेत्र में भी बड़े स्तर पर भूस्खलन हुआ है। बड़ी संख्या में खड़े पेड़ गिर गए। जंगलों की स्थिति  दुरुस्त करने के लिए केंद्र से भी खास मदद नहीं मिल रही है।  जो लकड़ियां बहकर आई हैं, उनमें अवैध कटान के साक्ष्य नहीं मिले हैं। अवैध वन कटान पर सरकार गंभीर है। - केहर सिंह खाची, उपाध्यक्ष, वन निगम, हिमाचल प्रदेश
 
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

एप में पढ़ें

Followed