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हिमाचल प्रदेश : पहाड़ों को खोद नदी-नालों के किनारे डंप कर दिया तबाही का सामान, जानें क्या बोले विशेषज्ञ

धर्मेंद्र पंडित, अमर उजाला नेटवर्क, शिमला Published by: अंकेश डोगरा Updated Tue, 09 Sep 2025 11:44 AM IST
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सार

हिमाचल प्रदेश में पहाड़ों को खोदकर नदी-नालों, खड्डों के किनारे डंप किया मलबा तबाही का सामान बन गया है। विभिन्न परियोजनाओं और निजी निर्माण कार्यों से रोजाना टनों के हिसाब से मलबा निकल रहा है। निस्तारण का कोई उचित प्रावधान नहीं है। 
 

Himachal Mountains were dug up and the material of destruction was dumped on the banks of rivers and streams
रामपुर में सतलुज नदी में फेंका जा रहा मलबा। (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
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विस्तार
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हिमाचल प्रदेश में मलबे को ठिकाने लगाने के लिए पंचायतों और शहरी निकायों के पास एक भी डंपिंग साइट नहीं है। बड़ी परियोजनाएं बना रहीं कंपनियों की कागजों में डंपिंग साइटें हैं, परंतु यहां भी नियमानुसार मलबे को ठिकाने नहीं  लगाया  जा रहा है। हिमाचल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास ऐसे कई मामले पहुंचे हैं। प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से नियुक्त किए गए एमिकस क्यूरी की अध्ययन रिपोर्ट में ऐसे कई खुलासे हुए हैं।

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पहाड़ों को खोदकर नदी-नालों, खड्डों के किनारे डंप किया मलबा तबाही का सामान बन गया है। राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण हो, बिजली परियोजनाएं हों या फिर अन्य विकास कार्य, कंपनियां टनों के हिसाब से मलबा नदी-नालों के किनारे डंप कर रही हैं। भारी बारिश में यह मलबा तबाही का कारण साबित हो रहा है। इससे भी बाढ़ की स्थिति पैदा हो रही है। हिमाचल में नगर निगम शिमला की एकमात्र अधिकृत डंपिंग साइट बरियाल में है, पर यह केवल ठोस कचरा ठिकाने लगाने के लिए बनी है। भवनों-सड़कों व अन्य परियोजनाओं के मलबे के लिए नहीं। विभिन्न परियोजनाओं और निजी निर्माण कार्यों से रोजाना टनों के हिसाब से मलबा निकल रहा है। निस्तारण का कोई उचित प्रावधान नहीं है। पहाड़ों को खोद मलबा नदी-नालों के किनारे अवैध रूप से डंप किया जा रहा है। निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 में कड़े प्रावधान हैं। स्थानीय निकायों, पंचायतों को डंपिंग साइटें अधिसूचित करना जरूरी है।

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बांध, बिजली परियोजनाओं, फोरलेन, एनएच, अन्य सड़कों, सुरंगों, बड़ी इमारतों आदि का निर्माण करने वाली कंपनियों को भी साइटें तय करने एवं नियमों के अनुसार व्यवस्था बनाने को कहा गया है। मगर पिछले एक दशक में इन नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। बांध, सड़कें, सुरंगें आदि बनाने वाली कंपनियां डंपिंग साइट जरूर चिह्नित कर रही हैं। इन्हें एनओसी जारी किए जा रहे हैं। बावजूद सड़क और नदी-नालों के किनारे मलबा फेंका जा रहा है। यह डंपिंग भारी बरसात में नदी-नालों का प्रवाह रोक रही है और भूस्खलन, बाढ़ को बढ़ा रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में इसी तरह की डंपिंग के लिए सुन्नी बांध बना रहे एसजेवीएन को 70 लाख रुपये का जुर्माना िकया है। हाईवे के निर्माण में इसी तरह की कोताही पर बिलासपुर में करीब साढ़े छह लाख और हमीरपुर में करीब 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

प्राकृतिक जल स्रोतों का पानी हो रहा खराब
पर्यावरण विशेषज्ञों और भू-वैज्ञानियों का मानना है कि अवैज्ञानिक तरीके से मक डंपिंग न रोकी तो तबाही को कोई नहीं रोक सकता। पर्यावरण से जुड़े मामलों के लिए हिमाचल हाईकोर्ट की ओर से नियुक्त किए एमिकस क्यूरी अधिवक्ता देवेन खन्ना की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक अवैध डंपिंग से प्रदेश में बावड़ियों व अन्य प्राकृतिक स्रोतों का 99 फीसदी पानी खराब हो चुका है। 35 नदियों में सीवरेज और कचरा मिल रहा है। हिमाचल में मलबे को ठिकाने लगाने के लिए कोई भी डंपिंग साइट चयनित नहीं है। मलबा बांधों में जा रहा है। बांधों से गाद न निकाले जाने से पानी का स्तर ऊपर उठ रहा है। यह हिमाचल ही नहीं, आगे मैदानी क्षेत्रों में भी बाढ़ की स्थिति पैदा कर रहा है। वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार बांधों से 22 साल की गाद नहीं निकाली गई है। प्रदेश हाईकोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है।

मलबे से धर्मपुर में बन गई थी झील
धर्मपुर और सरकाघाट उपमंडल की सीमा पर पाड़च्छू में निर्माणाधीन पुल के कारण हजारों टन डंप किए मलबे से खड्ड में 22 जून को झील बन   गई थी। इससे गासिया खड्ड का पानी रुक गया। पानी के तेज बहाव से मलबा धर्मपुर तक पहुंचकर कहर बरपा सकता था, लेकिन झील का पानी निकाला गया व मलबा हटवाया गया। इससे खतरा टला।  प्राकृतिक आपदा में जिला चंबा में पहाड़ दरके हैं। यहां नेशनल हाईवे के निर्माण के दौरान पहाड़ों की अवैज्ञानिक तरीके से कटिंग की गई है। मलबा रावी में फेंका गया। नदी में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होने से धरवाला, राख, मोहल्ला माइका बाग, प्रेल, बालू गांव के सैकड़ों लोगों को सुरक्षित संस्थानों पर शिफ्ट किया गया है। जिला सोलन में धर्मपुर, कोटी, सनवारा, पट्टा मोड़, सलोगड़ा, मनसार में लगातार भू-स्खलन हो रहा है। इन जगहों पर लगातार ट्रैफिक जाम लग रहा है। यहां लोगों को शिफ्ट करना पड़ रहा है। पठानकोट-मंडी फोरेलन का मलबा भी नदी-नालों में फेंका जा रहा है।  शिमला-सोलन-परवाणू फोरलेन के निर्माण पर हिमाचल हाईकोर्ट ने भी सख्ती दिखाई है। कंपनियों की ओर से कोर्ट में सही तथ्य नहीं दिए गए। चक्कीमोड़ में लगातार भूस्खलन से मलबा नालों में फेंका जा रहा है। बीते दिनों हाईकोर्ट ने एनएचएआई को सनवारा टोल प्लाजा बंद करने तक की चेतावनी दे दी।

विशेषज्ञ बोले... काम शुरू होने से पहले तय की जाएं डंपिंग साइटें
पहाड़ को काटने का सही तरीका होना चाहिए। हिमाचल प्रदेश में बने रहे फोरलेन और अन्य निर्माण कार्य होने से पहले डंपिंग साइट का चयनित होना जरूरी है। पहाड़ों की कटिंग वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए। प्रदेशभर में कई ठेकेदार मनमर्जी से काम कर रहे हैं। हालात यह हैं कि पहाड़ों की नींव को ही खत्म किया जा रहा है। ऐसे में पहाड़ों का दरकना तय है। यही नहीं, खोदाई करने के बाद निकाला जा रहा मलबा नदी और नालों में फेंका जा रहा है। पानी ऊपर आकर पहाड़ों में रिस रहा है। -सुरेश चंद अत्री, पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक

शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा है कि शहरी क्षेत्रों में डंपिंग साइटें बनाने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि बेतरतीब मलबा फेंकने वालों पर कार्रवाई की जा रही है।

नगर नियोजन मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि एफआरए की मंजूरी के बाद छोटे मामलों में भी डंपिंग साइटें चिह्नित की जानी चाहिए। छोटी सड़कों और छोटे प्रोजेक्टों से भी नुकसान हो रहा है। सरकार इस दिशा में कदम उठाएगी।
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