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Mandi Cloudburst : जल निकासी की कमी, खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल और गैस उत्सर्जन बढ़ा रहे भूस्खलन; जानें

संजीव शर्मा, थुनाग (मंडी)। Published by: अंकेश डोगरा Updated Wed, 06 Aug 2025 05:00 AM IST
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सार

सराज घाटी में हुई तबाही के लिए मानसून ही नहीं, बागाचनोगी में कसमल की अवैध खुदाई, मटर वैली में चोरी-छुपे खरपतवार नाशक का ज्यादा इस्तेमाल और ग्रीनहाउस उद्योग से गैस उत्सर्जन भी इस तबाही के लिए जिम्मेदार हैं। पढ़ें पूरी खबर...

Mandi Cloudburst Lack of drainage use of weedicides and gas emissions are increasing landslides
थुनाग में घरों का हाल - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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त्रासदी के बाद खूबसूरत सराज घाटी के चेहरे पर अब क्रूर खरोंचें हैं। घरों में मलबा, टूटी सड़कें और मुसीबतों का यहां अंबार लगा है। घर, खेत-खलिहान, स्कूल, अस्पताल, मंदिर सब कुछ था, लेकिन अब मिट्टी के ढेर लगे हैं। मानसून ही नहीं, बागाचनोगी में कसमल की अवैध खुदाई, मटर वैली में चोरी-छुपे खरपतवार नाशक का ज्यादा इस्तेमाल और ग्रीनहाउस उद्योग से गैस उत्सर्जन भी इस तबाही के लिए जिम्मेदार हैं। इन सभी से भूस्खलन को बढ़ावा मिला। सड़कों पर जल निकासी की कमी ने भी तबाही को और बढ़ाया है है। प्रशासन राहत कार्य में जुटा है, लेकिन हालात सामान्य होने में अभी लंबा वक्त लगेगा।

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वहीं, इस त्रासदी में जिनकी जान बच गई है, अब वे जीने के लिए संघर्ष का पहाड़ चढ़ रहे हैं। जो परिवार पक्के मकानों में रहते थे, अब टेंट में रहने को मजबूर हैं। रहने के लिए ठिकाना इनकी सबसे बड़ी चिंता है। आंखों में आंसू लिए हर पीड़ित अब असमंजस में है कि आगे क्या होगा? ग्राउंड जीरो पर हालात ये हैं कि कई घर हवा में लटके हैं। बिजली-पानी की व्यवस्था ध्वस्त हो गई है, जिसे धीरे-धीरे बहाल किया जा रहा है। कई लोगों ने अपने घर छोड़ दिए हैं। जो बचे हैं, उन्होंने राहत शिविरों में शरण ली है।

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थुनाग को रेड जोन घोषित करने की मांग
पीड़ित बताते हैं कि 30 जून की रात को गांवों पर पानी वज्रपात की तरह बरसा। बारिश लगातार हो रही थी। रात का खाना खाकर सोए थे। तभी धमाकों के साथ पानी और मलबा आ गया। नींद टूटी और देखते ही देखते जल सैलाब और मलबे ने घरों, दुकानों और इमारतों को अपनी आगोश में ले लिया। कई घंटे तक पानी अपने साथ मिट्टी और बड़े बड़े बोल्डर लेकर तबाही मचाता रहा। मकान और वाहन मलबे में दब गए। कई दोपहिया वाहनों का तो पता ही नहीं चल पाया। चारों तरफ तबाही का मंजर था। अब लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि सफाई करें तो कहां से शुरू करें। प्रशासन राहत कार्य में जुटा है, लेकिन लोग अब थुनाग को रेड जोन घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

खरपतवार नाशक के छिड़काव से घास और झाड़ियां जड़ समेत जल जाती हैं। इससे मिट्टी कमजोर हो जाती है और क्षरण होता है, जो बरसात में भूस्खलन का कारण बनता है। - सुरेंद्र कश्यप, डीएफओ नाचन

आपदा में हमारे चार घर बह गए। अभी तक कुल 25 हजार रुपये की राहत राशि मिली है। अब धार गांव में किराये के कमरे में रह रहे हैं। आय का कोई साधन नहीं बचा है। किराया देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। रिश्तेदार ही अब सहारा हैं। प्रशासन की तरफ से मिला राशन भी कोई दूसरा ही ले गया है। - माहेश्वर सिंह, निवासी चांगणी लेहथान

पर्यावरण से छेड़छाड़ किसी भी तरह से सही नहीं है। डंपिंग साइट का कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। सराज में किया गया जबरन विकास अब भारी साबित होने लगा है। यह आपदा पूरी तरह से मानवीय चूक से हुई है। इससे सबक लेने की जरूरत है। आपदा के बाद राशन की बंदरबांट भी हुई है। इसकी निगरानी करना जरूरी है। - भूप सिंह, सेवानिवृत्त सीएचटी, निवासी शिकावरी

40 साल पहले थुनाग तहसील वाले क्षेत्र में दर्जनों घराट व कूहलें होती थीं। इन्हें बेचकर यहां अब घनी आबादी बस गई है। इस आबादी को दूसरी जगह बिना भूमि बसाना चुनौतीपूर्ण है। भूमि कहीं भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में स्थानीय लोगाें की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। - मोहर सिंह, निवासी थुनाग बाजार
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