{"_id":"6945982f3242edfb1609b18b","slug":"husband-should-give-rs-43000-as-alimony-to-his-wife-mandi-news-c-90-1-ssml1045-179898-2025-12-19","type":"story","status":"publish","title_hn":"Mandi News: गुजारा भत्ता के 43 हजार रुपये पत्नी को दे पति","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Mandi News: गुजारा भत्ता के 43 हजार रुपये पत्नी को दे पति
विज्ञापन
विज्ञापन
मंडी। न्यायिक प्रक्रिया में देरी के आधार पर भरण-पोषण की बकाया राशि से बचने की दलील को अदालत ने सिरे से खारिज कर दिया। सरकाघाट की सिविल जज कोर्ट नंबर-2 ने मामले में स्पष्ट किया कि भरण-पोषण एक सतत अधिकार है और समय बीतने मात्र से यह समाप्त नहीं होता। अदालत ने पति को निर्देश दिए कि वह पत्नी को शेष 43 हजार रुपये की राशि अगली सुनवाई से पहले अदा करे।
मामले के तथ्यों के अनुसार महिला के पक्ष में 23 मार्च 2012 को भरण-पोषण का आदेश पारित हुआ था। बाद में पति ने 1 अप्रैल 2022 से 31 अक्तूबर 2024 तक नियमित भुगतान नहीं किया। इस अवधि के लिए कुल 93 हजार रुपये बनते थे, जिसमें से 50 हजार रुपये का भुगतान पहले किया जा चुका था। शेष राशि की वसूली के लिए महिला ने धारा 128 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आवेदन दायर किया।
प्रतिवादी ने आपत्ति उठाई कि एक वर्ष से अधिक की बकाया राशि की वसूली कानूनन संभव नहीं है और उसने अधिक भुगतान का दावा भी किया। हालांकि अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि भरण-पोषण की देनदारी निरंतर बनी रहती है और केवल प्रक्रिया सीमित हो सकती है, अधिकार समाप्त नहीं होता। भुगतान के समर्थन में कोई दस्तावेज पेश न किए जाने पर अदालत ने आपत्तियों को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि शेष 43 हजार रुपये निर्धारित तिथि तक जमा किए जाएं और मामले को भुगतान की पुष्टि के लिए 12 जनवरी 2026 को सूचीबद्ध किया गया है। संवाद
Trending Videos
मामले के तथ्यों के अनुसार महिला के पक्ष में 23 मार्च 2012 को भरण-पोषण का आदेश पारित हुआ था। बाद में पति ने 1 अप्रैल 2022 से 31 अक्तूबर 2024 तक नियमित भुगतान नहीं किया। इस अवधि के लिए कुल 93 हजार रुपये बनते थे, जिसमें से 50 हजार रुपये का भुगतान पहले किया जा चुका था। शेष राशि की वसूली के लिए महिला ने धारा 128 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आवेदन दायर किया।
विज्ञापन
विज्ञापन
प्रतिवादी ने आपत्ति उठाई कि एक वर्ष से अधिक की बकाया राशि की वसूली कानूनन संभव नहीं है और उसने अधिक भुगतान का दावा भी किया। हालांकि अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि भरण-पोषण की देनदारी निरंतर बनी रहती है और केवल प्रक्रिया सीमित हो सकती है, अधिकार समाप्त नहीं होता। भुगतान के समर्थन में कोई दस्तावेज पेश न किए जाने पर अदालत ने आपत्तियों को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि शेष 43 हजार रुपये निर्धारित तिथि तक जमा किए जाएं और मामले को भुगतान की पुष्टि के लिए 12 जनवरी 2026 को सूचीबद्ध किया गया है। संवाद