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Sirmour News: देव आगमन से गूंजा पाशमी गांव, श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब, मंदिर में विराजमान हुए चालदा महासू
जगत तोमर, शिलाई (सिरमौर)।
Published by: अंकेश डोगरा
Updated Tue, 16 Dec 2025 05:00 AM IST
सार
चालदा महासू महाराज शान से नवनिर्मित पशमी मंदिर में विराजमान हो गए हैं। छत्रधारी चालदा महासू महाराज ने पहली बार उत्तराखंड की धरती से निकलकर गिरिपार क्षेत्र में प्रवेश किया। पढ़ें पूरी खबर...
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चालदा महासू महाराज यात्रा के पशमी पहुंचने पर कुछ ऐसा नजारा नजर आया आस्था का सैलाब।
- फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
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विस्तार
सात दिन तक उत्तराखंड से सिरमौर तक विभिन्न पड़ाव से होकर लगभग 70 किलोमीटर लंबी चालदा महासू महाराज की पैदल देवयात्रा हजारों श्रद्धालुओं के साथ पशमी गांव पहुंच गई। चालदा महासू महाराज शान से नवनिर्मित पशमी मंदिर में विराजमान हो गए। हजारों श्रद्धालु देवता के स्वागत के लिए मौजूद रहे।
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दिसंबर से देवयात्रा उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र के दसऊ गांव से आरंभ हुई। इसमें देवता के साथ हजारों श्रद्धालु चले। कोई नंगे पांव, कोई निशान उठाए तो कोई ढ़ोल-नगाड़ों की थाप पर जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते रहे। छत्रधारी चालदा महासू महाराज ने पहली बार उत्तराखंड की धरती से निकलकर गिरिपार क्षेत्र में प्रवेश किया। 13 दिसंबर को जब देव यात्रा ने मीनस पुल पार किया, तो यह केवल भौगोलिक सीमा पार करना नहीं था, बल्कि दो राज्यों की साझा आस्था का मिलन था।
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उसी रात देवता ने द्राबिल गांव में विश्राम किया, जहां ग्रामीणों ने दीप जलाकर और पारंपरिक रीति से देवता का स्वागत किया और हजारों लोगों ने शीश नवाया अगले दिन चालदा महाराज गांव पशमी के लिए रवाना हुए। 14 दिसंबर को महासू महाराज शिलाई पहुंचे, पचास हजार से अधिक की भीड़ शामिल हुई। देवयात्रा का रात्रि 3.20 बजे अंतिम पड़ाव पशमी गांव बना। गांव पहले से तैयार था, रास्ते साफ किए गए थे। आंगन सजाए थे।
पशमी में करीब दो करोड़ रुपये की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। ध्वजा प्रतिष्ठा पहले ही हो चुकी है और सोमवार को चालदा महासू महाराज विधिवत रूप से अपने नव-जीर्णोद्धारित मंदिर में विराजमान हुए। देवता के आगमन के साथ ही पशमी में सेवा और दान की परंपरा जीवंत हो उठी। मंदिर समिति की ओर से लगातार भंडारे करवाए जा रहे हैं। प्रदेश के कोने-कोने से लोग राशन, घी, दाल और अन्य सामग्री स्वेच्छा से दान करने पहुंचे। ग्रामीणों का कहना है कि यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामूहिक सहभागिता और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
लोक मान्यता के अनुसार पशमी गांव में महासू महाराज की स्थापना 700 से 900 वर्ष पूर्व हुई थी। माना जाता है कि देवता का चालित स्वरूप हनोल धाम से निकलकर देव-वाणी के माध्यम से विभिन्न गांवों की यात्रा करता हुआ पशमी पहुंचा। गांव के गुरों, मालियों, बाजगियों और पुजारियों ने विधिवत अनुष्ठान कर देव-थान की स्थापना की, जिसके बाद महासू महाराज पशमी के प्रधान ग्राम देव बने।
लोक मान्यता के अनुसार पशमी गांव में महासू महाराज की स्थापना 700 से 900 वर्ष पूर्व हुई थी। माना जाता है कि देवता का चालित स्वरूप हनोल धाम से निकलकर देव-वाणी के माध्यम से विभिन्न गांवों की यात्रा करता हुआ पशमी पहुंचा। गांव के गुरों, मालियों, बाजगियों और पुजारियों ने विधिवत अनुष्ठान कर देव-थान की स्थापना की, जिसके बाद महासू महाराज पशमी के प्रधान ग्राम देव बने।