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'वंदे मातरम' के 150 वर्ष:  कौन थे वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र? पढ़ें गीत रचना के पीछे की रोचक कहानी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: राहुल कुमार Updated Fri, 07 Nov 2025 12:43 AM IST
सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर शुक्रवार को इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में वर्ष भर चलने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन करेंगे। प्रधानमंत्री इस मौके पर स्मृति डाक टिकट और सिक्का भी जारी करेंगे।

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150 years of Vande Mataram Who was Bankim Chandra Chatterjee Read fascinating story behind song's writing
वंदे मातरम की रचना के 150 वर्ष - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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इस वर्ष 7 नवंबर 2025 को राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' की रचना के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह एक गीत नहीं है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा है, जिसने न केवल आजादी की लड़ाई में नई जान फूंकी बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्य को मजबूती देते हुए नए आयाम प्रदान किए। इस गीत की रचना बंकिमचंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1874 को अक्षय नवमी के शुभ अवसर पर की थी। यह अमर गीत न केवल भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मुख्य उद्घोष बना बल्कि आज देश का राष्ट्रगीत भी है।  शुक्रवार को इस मौके पर पीएम मोदी एक स्मरणोत्सव का उद्घाटन करेंगे और एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी करेंगे। 
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अमर गीत वंदे मातरम को लिखकर महान साहित्य रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी सदैव के लिए अमर हो गए। वंदे मातरम सिर्फ एक गीत या नारा ही नहीं, बल्कि आजादी की एक संपूर्ण संघर्ष गाथा है, जो 1874 से लगातार आज भी करोड़ों युवा दिलों में धड़क रही है। निस्संदेह स्कूल में पढ़ने के दौरान वंदे मातरम तो सबने सुना होगा, लेकिन वंदे मातरम के पीछे की कहानी और इसके रचयिता बंकिम चंद्र के जीवन के उस संघर्ष को बहुत ही कम लोग जानते होंगे। तो आइए जानते हैं कौन थे बंकिम चंद्र और कैसे मिला हमें वंदे मातरम...   
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150 years of Vande Mataram Who was Bankim Chandra Chatterjee Read fascinating story behind song's writing
स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी - फोटो : अमर उजाला
27 साल की उम्र में पहला उपन्यास लिखा 
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून, 1838 ईस्वी को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में हुआ था। प्रसिद्ध लेखक बंकिम चंद्र बंगला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार रहे हैं। हम उन्हें भारत का एलेक्जेंडर ड्यूमा मान सकते हैं। बंकिम ने अपना पहला बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी 1865 में लिखा था, तब वे महज 27 साल के थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बंकिम चंद्र को बंगला साहित्य को जनमानस तक पहुंचाने वाला पहला साहित्यकार भी माना जाता है। करीब 56 वर्ष की आयु में 08 अप्रैल, 1894 को 19वीं सदी के इस क्रांतिकारी उपन्यासकार ने दुनिया को सदैव के लिए अलविदा कह दिया था।  

हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज से पढ़े 
बंकिम चंद्र ने 1857 में बीए पास की थी। तब वे पहले भारतीय बने थे, जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की उपाधि प्राप्त की थी। 1869 में कानून की डिग्री प्राप्त की। कानून की पढ़ाई खत्म होने के तुरंत बाद उन्हें डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्ति मिल गई। कुछ साल तक तत्कालीन बंगाल सरकार में सचिव पद पर भी काम किया। बंकिम ने रायबहादुर और सीआईई जैसी उपाधियां भी अर्जित कीं। उन्होंने सरकारी नौकरी से 1891 में सेवानिवृत्त ले ली थी। बंकिम चंद्र ने बंगला और हिंदी दोनों भाषाओं में अपनी लेखनी से एक अलग पहचान कायम की। 1874 में उनका लिखा गीत वंदे मातरम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत और मुख्य उद्घोष बन गया था। 

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बंकिम चंद्र चटर्जी - फोटो : अमर उजाला
वंदे मातरम की रचना 
बंकिम चंद्र ने 1875 में देशभक्ति का भाव जगाने वाले गीत वंदे मातरम की रचना की थी। इस रचना के पीछे एक रोचक कहानी है। जानकारी के अनुसार, अंग्रेजी हुक्मरानों ने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत- गॉड! सेव द क्वीन को हर कार्यक्रम में गाना अनिवार्य कर दिया था। इससे बंकिम चंद्र समेत कई देशवासी आहत हुए थे। इससे जवाब में उन्होंने 1874 में वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत की रचना की। इस गीत के मुख्य भाव में भारत भूमि को माता कहकर संबोधित किया गया था। यह गीत बाद में उनके 1882 में आए उपन्यास आनंदमठ में भी शामिल किया गया था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। 

जब पहली बार गाया गया वंदे मातरम 
1896 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ था। उस अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम गीत गाया गया था। थोड़े ही समय में राष्ट्र प्रेम का द्योतक यह गीत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों का पसंदीदा गीत और मुख्य उद्घोष बन गया। देशभर में क्रांतिकारी बच्चे, युवा, व्यस्क और प्रौढ़ ही नहीं यहां तक कि भारतीय महिलाओं की जुबां पर भी आजादी की लड़ाई का एक ही नारा गूंज उठता था और वह है वंदे मातरम। 

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भारत रत्न रवींद्रनाथ टैगोर - फोटो : अमर उजाला
टैगोर ने दी वंदे मातरम की धुन
यह किवंदती ही है कि बंकिम चंद्र के रचित वंदे मातरम गीत को उनके जीवनकाल में ज्यादा ख्याति नहीं मिल पाई। लेकिन, इसमें कोई शक नहीं कि आजाद भारत के करोड़ों युवा दिलों में यह गीत आज भी उसी अमर राष्ट्र भाव के साथ धड़कता है। बताया जाता है कि इस गीत की धुन ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर ने बनाई थी। आजाद भारत में 24 जनवरी, 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा दिए जाने की घोषणा की थी।  
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