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8thCPC: चार साल तक केंद्रीय कर्मियों-पेंशनरों को होगा 10% का आर्थिक नुकसान, सैलरी पर पड़ सकता है असर

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Fri, 12 Dec 2025 04:45 PM IST
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8th CPC: Central employees and pensioners will suffer financial loss for four years, impact on salaries
8वां वेतन आयोग - फोटो : अमर उजाला
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 क्या चार साल तक 49 लाख कर्मियों व 69 लाख पेंशनरों को होगा 10 प्रतिशत वेतन का नुकसान, उनकी सेलरी में लगेगी सेंध, इस सवाल ने कर्मियों की परेशानी बढ़ा दी है। डीए/डीआर तो गत वर्ष ही पचास फीसदी के पार हो गया था। नियम है कि इस स्थिति में डीए/डीआर का मूल वेतन और पेंशन में विलय कर दिया जाए। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी का कहना है कि सरकार, ऐसा कोई विलय नहीं करेगी। नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत' के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल ने अमर उजाला डॉट कॉम के साथ एक विशेष बातचीत में कहा, ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार ने पहले ही कर्मचारियों का दस प्रतिशत पैसा हर माह बचा लिया है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि पिछले दो साल से दस प्रतिशत के हिसाब से कर्मचारियों का वेतन हड़पा जा रहा है। पेंशन भी हड़पी जा रही है। आठवें वेतन आयोग के लागू होने की उम्मीद भी दो साल बाद ही कर सकते हैं। ऐसे में चार साल तक कर्मियों को हर माह दस प्रतिशत वेतन का नुकसान उठाना पड़ेगा। अब सरकार कह रही है कि डीए को मूल वेतन में मर्ज नहीं करेंगे। यह बात समझ नहीं आ रही है कि सरकार, कर्मचारी को उसका आर्थिक फायदा देने से क्यों कतरा रही है।  

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आठवें वेतन आयोग से जुड़े अहम सवाल 
पेंशनरों को आठवें वेतन आयोग का फायदा मिलेगा या नहीं, इस बाबत कर्मचारी और पेंशनधारकों के संगठन, चिंतित हैं। पुरानी पेंशन, क्या इसकी बहाली होगी या अब यूपीएस ही चलेगा। 'गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत', आठवें वेतन आयोग की 'संदर्भ की शर्तें' यानी टर्म ऑफ रेफरेंस (टीओआर) में शामिल इस पंक्ति को हटवाने के लिए क्यों लामबंद हो रहे कर्मचारी। आज डिजिटल का युग है, बहुत सारी डिटेल एक क्लिक पर मिल जाती है तो फिर सरकार ने आठवें वेतन आयोग को अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए 18 महीने का समय क्यों दिया है। आठवें वेतन आयोग के लागू होने पर न्यूनतम बेसिक वेतन कितना हो सकता है। सरकार ने कहां पर कैंची चलाकर सरकारी कर्मियों को आर्थिक नुकसान पहुंचा दिया है। जब आयोग का गठन हुआ तो कहा गया था कि पहली जनवरी 2026 से वेतन आयोग लागू होगा, अब संसद में वित्त राज्य मंत्री का कहना है कि आठवें केंद्रीय वेतन आयोग के लागू होने की तारीख का निर्णय सरकार द्वारा लिया जाएगा। नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत' के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल ने अमर उजाला डॉट कॉम के साथ एक विशेष बातचीत में ऐसे कई अहम सवालों का जवाब दिया है। 
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क्या पेंशन में विभेद कर सकती है सरकार 
डॉ. मंजीत सिंह पटेल ने बताया, 'गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत', आठवें वेतन आयोग की 'संदर्भ की शर्तों' से इस बात को हटाने के लिए मांग की गई। अब इस मुद्दे पर स्थिति साफ हो गई है। पहले यह बात सामने आई कि पेंशनर को टीओआर में शामिल नहीं किया गया। पिछले दिनों संसद में वित्त मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि आठवें वेतन आयोग से पेंशनर भी लाभान्वित होंगे। अब यह मुद्दा खत्म हो गया है। अवित्तपोषित लागत, इस बाबत डॉ. पटेल ने कहा, 25 मार्च 2025 को संसद में 'पेंशन लायबिलिटी बिल' पास किया गया था। उसमें कहा गया था कि भारत सरकार, एक विशिष्ट तिथि से पहले के रिटायर्ड कर्मचारियों और उसके बाद के रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन में विभेद कर सकती है। इसका मतलब, इन दोनों स्थितियों में पेंशनरों को अलग-अलग लाभ मिलेंगे।

दरअसल, ये एजेंडा 'यूपीएस' के पेंशनर को लेकर है। यूपीएस एक फंडेड स्कीम है। कर्मचारी दस प्रतिशत और सरकार साढ़े 18 फीसदी, दोनों अपना-अपना शेयर इसमें कंट्रीब्यूट करते हैं। अगर कोई कर्मचारी 31 दिसंबर 2025 को रिटायर होता है और एक जनवरी 2026 से नया वेतन आयोग आता है तो 31 दिसंबर 2025 को उसकी जो बेसिक सेलरी थी, उसी हिसाब से पेंशन मिलेगी। यह फंडेड स्कीम के तहत होगा। 

दुविधा, इन्हें पुरानी पेंशन का लाभ मिलेगा या नहीं 
अनफंडेड कॉस्ट की बात पर उन्होंने कहा, इसमें वे कर्मचारी हैं जो ओपीएस के दायरे में आते हैं। वेतन आयोग, किसी भी तरह के कर्मचारी हों, वह सभी के लिए है। अभी तीन तरह के सरकारी कर्मचारी हैं। एक वो, जो पुरानी पेंशन में शामिल हैं। दूसरा, ऐसे कर्मचारी जो एनपीएस के दायरे में आते हैं और तीसरा, यूपीएस का विकल्प लेने वाले कर्मचारी। अनफंडेड मतलब पुरानी पेंशन वाले कर्मचारी। इन्हें लेकर अब कोई दुविधा नहीं है। कर्मचारियों को नए वेतन आयोग से कोई दिक्कत नहीं होगी। दूसरा, एनपीएस वाले कर्मचारी हैं, जिनका इससे कोई लेना देना ही नहीं है। ये कर्मी, कॉप्र्स आधारित स्कीम में हैं। रिटायरमेंट पर जितना कॉप्र्स एकत्रित होगा, उसके हिसाब से उन्हें पेंशन मिलेगी। तीसरा, यूपीएस वाले हैं। ये कर्मचारी अगर वेतन आयोग के आने से पहले रिटायर होते हैं तो यहां दुविधा है कि इन्हें वेतन आयोग का लाभ मिलेगा या नहीं। 

'पेंशन' की 'पॉलिसी' में तो अंतर है 
'पेंशन में असमानता' के सवाल पर डॉ. पटेल ने कहा, यह कोई नई बात नहीं है। जैसे ईपीएस 95 में पीएसयू के कर्मचारी हैं। सेमी गर्वनमेंट वाले हैं। उन्हें वैसे पेंशन नहीं मिलती, जैसे ओपीएस में मिलती है। एनपीएस में अलग से पेंशन विभेद हो गया। कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट स्कीम थी, उसमें दस प्रतिशत कर्मचारी और दस प्रतिशत संस्थान, अपना हिस्सा जमा कराता था। रिटायरमेंट के वक्त जितना भी कॉप्र्स एकत्रित होता, उसे कर्मचारी को दे दिया जाता था। अलग से पेंशन नहीं होती थी। पेंशन में विभेद तो पहले से है। एनपीएस लाने का मकसद, सभी को एक जैसी पेंशन व्यवस्था का हिस्सा बनाना था। 

यहां पर भी दिक्कत हुई कि किसी की सर्विस लेंथ लंबी है तो किसी की छोटी है। लोकसभा सांसद, राज्यसभा सांसद, विधायक और एमएलसी की पेंशन अलग है। पेंशन की पॉलिसी में तो अंतर है ही, लेकिन सभी सरकारी कर्मियों की पेंशन में समानता होनी चाहिए। 

सब कुछ डिजिटल है तो 18 माह क्यों?
वेतन आयोग की सिफारिशें तैयार करने के लिए 18 महीने का समय क्यों दिया गया है, जबकि अब तो सब कुछ डिजिटल है। डॉ. पटेल ने कहा, इसके पीछे सरकार की यह रणनीति हो सकती है कि वह उसे चुनाव से जोड़ना चाह रही हो। वेतन आयोग की रिपोर्ट के लिए 18 माह का समय देना, इसका मतलब, सरकार जानबूझ कर वेतन आयोग में देरी करना चाहती है। सातवें वेतन आयोग में जब पहली बार पेमैट्रिक्स बनाया गया, तब यही सोचा गया था कि अगली बार वेतन आयोग ही नहीं लाना पड़ेगा। सरकार, हर पांच साल में सैटलमेंट प्लान लाएगी। वेतन आयोग में देरी होती है। देर से गठित किए जाते हैं, रिपोर्ट देने में देरी हो जाती है। इन सबसे बचने के लिए पे मैट्रिक्स डिजाइन किया गया। 

24 माह के एचआरए का नुकसान होगा 
भविष्य में जब भी नया वेतन आयोग या सैटलमेंट प्लान आएगा, उसमें नए फिटमेंट फैक्टर से वह टेबल रिप्लेस हो जाएगी। सरकार ने वेतन आयोग को अब 18 माह का समय दिया है। इसके बाद रिपोर्ट लागू करने में भी पांच सात माह लग जाएंगे। महानगरों में रहने वाले कर्मियों के मकान किराए का अंदाजा लगाया जा सकता है। वेतन आयोग में दो साल की देरी, भारत सरकार ने आज तक जितने भी वेतन आयोग आए हैं, उनमें जो एरियर मिला है, वह बेसिक प्लस डीए पर मिले हैं। ट्रांसपोर्ट अलाउंस पर भी मिले हैं। उसमें एचआरए को कभी कंसीडर नहीं किया गया। इसका मतलब 24 माह का एचआरए का नुकसान होगा। 

47 हजार रुपये हो सकता है न्यूनतम वेतन 
एक जनवरी 2024 को डीए पचास प्रतिशत हो चुका था। सरकार का कहना था कि इस स्थिति में डीए को बेसिक वेतन में मर्ज कर देंगे, लेकिन मर्ज नहीं किया गया। अब दो साल हो गए हैं। आगे भी दो साल निकल जाएंगे। ऐसे में चार साल के बाद जब डीए मर्ज होगा तो सरकारी कर्मचारी को आठ से दस प्रतिशत हर माह के वेतन का नुकसान होगा। आठवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन कितना हो सकता है, डॉ. मंजीत पटेल ने इस सवाल के जवाब में बताया कि 2.2 से कम तो हो ही नहीं सकता। सभी तरह का गुणा भाग करने के बाद यह उम्मीद कर सकते हैं कि तीन साल बाद की स्थिति में 2.6 तक तो होना चाहिए। इसे आसान भाषा में यूं समझ सकते हैं कि अगर मौजूदा समय में बेसिक वेतन 18000 रुपये है तो आठवें वेतन आयोग के बाद वह लगभग 47 हजार रुपये तक पहुंच सकता है। 

तय समय पर मिलेगा डीए बढ़ोतरी का फायदा 
वेतन आयोग लागू कब होगा, इस बाबत उन्होंने कहा, सरकार इस पर घुमा फिराकर बात कर रही है। वेतन आयोग तय तिथि से ही लागू होना चाहिए। अब वित्त राज्य मंत्री कह रहे हैं कि सरकार तय करेगी। यानी अभी यह तय नहीं है कि वेतन आयोग, एक जनवरी 2026 से ही देगी। संभव है कि दो साल बाद एरियर को लेकर सरकार, निर्धारित भुगतान में कुछ गलत कर दे। एक जनवरी से 2026 से डीए की बढ़ोतरी को लेकर डॉ. पटेल ने कहा, ये चलता रहेगा। यानी तय समय पर मिलता रहेगा। वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद यह देखा जाएगा कि 31 दिसंबर 2025 को कर्मचारी का बेसिक वेतन कितना था, उसके हिसाब से फिटमेंट फैक्टर लगाकर फायदा दे दिया जाएगा। डीए, पचास प्रतिशत से ज्यादा हो गया है, क्या अब सरकार इसे मूल वेतन में विलय करेगी, संसद में इस सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी का कहना है कि सरकार, ऐसा कोई विलय नहीं करेगा। डॉ. पटेल ने कहा, ये अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। 

29 लाख में से एक लाख कर्मी ही यूपीएस में आए 
यूपीएस को लेकर कर्मचारियों का रूझान सकारात्मक नहीं है। अभी तक तीन प्रतिशत कर्मियों ने भी यूपीएस का विकल्प नहीं चुना है। इस पर कर्मचारी नेता ने कहा, सात अक्तूबर को पेंशन सचिव के साथ बैठक हुई थी। उसमें कर्मचारी पक्ष की तरफ से कहा गया था कि यूपीएस में जब तक वीआरएस के दिन से पेंशन देने का प्रावधान नहीं होगा और लम सम राशि को दो से तीन गुणा नहीं किया जाएगा, तब तक यह स्कीम कर्मियों को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती। 29 लाख केंद्र के कर्मियों में से एक लाख ही लोग यूपीएस में शामिल हुए हैं। जो यूपीएस में गए हैं, उनमें आधे ऐसे हैं जो रिटायर हो चुके हैं। आधे वो लोग हैं जो बड़े पदों पर हैं। वे भी चार छह माह बाद वापस एनपीएस में आ जाएंगे, क्योंकि वन टाइम विकल्प के तहत वे वापस आ सकते हैं। 

हमें ओपीएस की आत्मा को समझना चाहिए  
यूपीएस में शामिल होने का विकल्प 30 नवंबर तक देना था। अब वह पोर्टल बंद हो चुका है। वह पोर्टल ठीक से खुल भी नहीं सका। इसके चलते इच्छुक कर्मचारी भी यूपीएस में नहीं जा सके। सरकार द्वारा खुद ही इसे फेल किया जा रहा है। आठवें वेतन आयोग के टीओआर में कर्मचारियों के लिए ओपीएस आज भी सबसे बड़ा मुद्दा है। ओपीएस मिल जाए या वैसे लाभ मिल जाएं, इसके लिए संघर्ष जारी रहेगा। डॉ. पटेल ने कहा, हमें ओपीएस की आत्मा को समझना चाहिए। नाम से कोई लेना देना नहीं है। कर्मचारियों का एक ही मकसद है कि रिटायरमेंट पर पचास प्रतिशत पेंशन मिले और कर्मचारी का अंशदान जीपीएफ सहित वापस मिल जाए।
 

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