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Health: कैंसर के लिए इलाज के लिए दवा के साथ बातचीत जरूरी, मानसिक शक्ति भी है बड़ा हथियार

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली। Published by: निर्मल कांत Updated Mon, 22 Dec 2025 04:04 AM IST
सार

Health: कैंसर से डर और चुप्पी आम है, लेकिन दवा के साथ बातचीत भी उतनी ही जरूरी है। खुलकर बात करने से मरीजों की मानसिक स्थिति बेहतर होती है और उपचार में तेजी आती है। शोधों से पता चलता है कि संवाद से चिंता कम होती है और रोगियों की जीवन गुणवत्ता बढ़ती है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। 

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Along with medicine talking is also very effective treatment in fighting serious diseases like cancer
स्तन कैंसर - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कैंसर का नाम सुनते ही डर, असहजता और चुप्पी हावी हो जाती है। लेकिन वैश्विक शोध और कैंसर से उबर चुके लोगों के अनुभव बताते हैं कि बीमारी से जूझने में दवा जितनी जरूरी है, उतनी ही जरूरी खुलकर बातचीत भी है। विश्वप्रसिद्ध वास्तुकार लॉर्ड नॉर्मन फोस्टर की निजी यात्रा और उनके डिजाइन किए गए मैगीज जैसे कैंसर सहायता केंद्र इस सच्चाई को रेखांकित करते हैं कि सही माहौल और संवाद रोगियों के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं।
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नेशनल ज्योग्राफिक की प्रीमियम हेल्थ सेक्शन की रिपोर्ट के अनुसार कैंसर दुनिया की सबसे आम और गंभीर बीमारियों में से एक है। यह वैश्विक स्तर पर मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है और हर छह में से एक व्यक्ति की मौत का कारण बनता है। कैंसर कोई एक बीमारी नहीं, बल्कि दो सौ से अधिक प्रकारों का समूह है, जिनमें स्तन, फेफड़े, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर सबसे आम हैं। कोलोरेक्टल कैंसर, जिससे लॉर्ड नॉर्मन फोस्टर स्वयं उबर चुके हैं, कैंसर-जनित मौतों का दूसरा प्रमुख कारण माना जाता है।
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लंदन का वेम्बली स्टेडियम, बर्लिन का राइखस्टाग और कैलिफोर्निया का एप्पल पार्क कैंपस जैसे प्रतिष्ठित निर्माण करने वाले लॉर्ड फोस्टर को 1999 में आंत्र (बॉवेल) कैंसर का पता चला था। यह अनुभव उनके लिए और भी पीड़ादायक था, क्योंकि वे पहले ही  पिता व पहली पत्नी को कैंसर के कारण खो चुके थे। फोस्टर स्वीकार करते हैं कि शुरुआत में वे डर, शर्म और इनकार की स्थिति में चले गए। ऐसी मानसिक अवस्था जिससे दुनिया में लाखों मरीज गुजरते हैं।

  वैश्विक स्वास्थ्य संगठन व ब्रिटिश यूनाइटेड प्रोविडेंट एसोसिएशन है (बीयूपा) के लिए किए गए शोध बताते हैं कि आधे से ज्यादा लोग स्वास्थ्य समस्याओं पर बात करने से बचते हैं, जबकि अधिकांश मानते हैं कि बातचीत मददगार हो सकती है। आंकड़े बताते हैं कि 41 प्रतिशत लोगों ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं साझा करने के बाद कम चिंता महसूस की, जबकि 31 प्रतिशत ऐसे लोग जिन्होंने बात नहीं की, उनकी हालत और बिगड़ गई। विशेषज्ञों के अनुसार न बोलना अनिश्चितता, अकेलेपन और असहायता को बढ़ाता है।

उम्मीद जगाती सकारात्मक तस्वीर
जर्नल ऑफ साइको-ऑन्कोलॉजी और लैंसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार जिन कैंसर रोगियों को नियमित भावनात्मक समर्थन, काउंसलिंग व समूह संवाद मिला, उनमें चिंता व अवसाद के स्तर में 30 से 45 फीसदी तक कमी दर्ज की गई। ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस से जुड़े एक बहु-वर्षीय अध्ययन में पाया गया कि जिन मरीजों ने उपचार के दौरान खुलकर अपनी बीमारी, डर और भविष्य को लेकर बातचीत की, वे औसतन 10–15 फीसदी जल्दी कार्यात्मक रिकवरी यानी कामकाज और दैनिक गतिविधियों में वापसी की स्थिति में पहुंचे।

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चुप्पी बनाम संवाद : मानसिक स्वास्थ्य का सवाल: लॉर्ड फोस्टर बताते हैं कि उनके पिता के कैंसर के दौरान परिवार में कोई चर्चा नहीं होती थी। यही चुप्पी पीड़ा को और गहरा कर देती है। विशेषज्ञों के अनुसार कैंसर पर बात करना भावनाओं को समझने, रिश्तों को मजबूत करने व मरीज को नियंत्रण की भावना देने में मदद करता है। कई बार किसी अजनबी या उसी बीमारी से गुजर चुके व्यक्ति से बात करना आसान होता है। शोध बताते हैं कि 30 से 50 प्रतिशत तक कैंसर के मामलों को जोखिम कारकों जैसे आहार, पोषण व शारीरिक गतिविधि पर ध्यान देकर रोका जा सकता है।

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