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Devvrat Rekhe: देवव्रत बोले- ईश्वर मुझसे पारायण करा रहे थे; पिता ने कहा- पुत्र ही शिष्य है और यही सौभाग्य है
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम / नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Wed, 17 Dec 2025 11:26 AM IST
सार
अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर महाराष्ट्र के 19 वर्षीय युवा देवव्रत महेश रेखे ने अध्यात्म और वैदिक विषयों पर विस्तार से चर्चा की। अपने पिता के साथ अमर उजाला के कार्यक्रम में पहुंचे वैदिक विद्वान वेदमूर्ति देवव्रत ने कहा, पिताजी ने ही आज्ञा की कि वेद कार्य में आगे चलते रहो। उन्हीं के पास अध्ययन करके यह सब साध्य हुआ है। जानिए 19 साल के इस तपस्वी और क्या बातें कहीं?
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वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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विस्तार
हरियाणा स्वर्णिम शताब्दी की ओर' थीम पर आधारित अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने भी शिरकत की। उन्होंने कहा कि अमर उजाला को धन्यवाद कि आपने मुझे यह आमंत्रण दिया। वास्तव में यह आमंत्रण मुझे नहीं, हमारी गुरु परंपरा को मिला है। इसी परंपरा के कारण मैं यहा हूं। जब आठ साल की आयु में पिताजी ने जनेऊ कराया, तो पिताजी ने ही आज्ञा की कि वेद कार्य में आगे चलते रहो। उन्हीं के पास अध्ययन करके यह सब साध्य हुआ है। दंडक्रम चुनने का सोचा नहीं था। पिताजी ने 2002 में काशी में घनपारण किया था, तब वे ही बोले कि मैंने घनपारण किया है, तुम उससे आगे कुछ किया। उन्हीं की कृपा से यह सब साध्य हुआ।
ये भी पढ़ें: Devvrat Rekhe: दंडक्रम पारायण का कीर्तिमान स्थापित करने वाले देवव्रत का अमर उजाला संवाद के मंच पर शांति पाठ
देवव्रत के पिता महेश रेखे ने कहा कि व्यक्ति ने हर मुकाम, हर स्थान पर अपनी विजय की कामना करनी चाहिए। यह पुरुषार्थ भी है, लेकिन दो जगह पर अपनी पराजय होनी चाहिए। यह दो स्थान हैं- एक शिष्य और दूसरा पुत्र। भगवान की कृपा से मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि यह मेरा पुत्र भी है और शिष्य भी है। कोई भी व्यक्ति किसी को मार्गदर्शन करे तो वह अपने से अच्छा काम करे तो सबसे ज्यादा आनंद उसी को होता है, जो उसे पढ़ाता है। इसका आनंद अवर्णनीय है। अमर उजाला परिवार ने इस प्रकार हमें मंच पर बुलाकर हमारा सम्मान किया है, वह अद्भुत है।
सवाल: योगी जी ने भी बधाई दी। प्रमुख हस्तियों ने आपको शुभकानाएं दीं। क्या सभी को जवाब दे पाए?
महेश रेखे: हम सभी को जवाब तो ज्यादा नहीं दे पाए। जैसे ही 30 तारीख को पारायण का समापन हुआ, उसके बाद समय ही नहीं मिल सका। पहली बार ऐसा हुआ कि वैदिक शास्त्र और वैदिक अभ्यास से जुड़ी सनातन की मूल परंपरा के बारे में देश के प्रधानमंत्री जी ने कुछ कहा। जब मूल का सिंचन करते हैं, तभी उस वृक्ष पर पत्र और पुष्प आते हैं। हमारे धर्म का मूल वेद हैं। इसी वजह से आज हमारे सनातन धर्म में उत्साह का वातावरण निर्माण हुआ है। जो युवा पीढ़ी इस परंपरा में है, उनके मन में भी विचार उत्पन्न हुआ है कि हमें भी अपनी संस्कृति से जुड़ना चाहिए।
सवाल: पारायण के दौरान कैसी अनुभूति हुई?
देवव्रत रेखे: जब पारायण चल रहा था, तब ऐसा लग नहीं रहा था कि मैं खुद बोल रहा हूं। भगवान ही मुझसे बुलवा रहे थे। भगवान का आशीर्वाद रहा और उन्हीं की कृपा रही, इसलिए पारायण पूरा हो सका।
महेश रेखे: हमें पूरा विश्वास था कि वेद हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ हैं तो वेदों का महत्व और प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ेगा। जितने लोग वहां श्रवण के लिए आए थे, उन सभी का कथन था कि इस पारायण से उत्पन्न होने वाली आभा और ऊर्जा बहुत अलग है। वहां आने के बाद जो मन में संतुष्टि और शांति मिली, वो बहुत ही अलग थी। इन वेदों का कोई लेखनकर्ता नहीं है। वेदवाणी वास्तव में भगवान की वाणी है। वेद मंत्रों का साक्षात्कार भगवान के श्वास और उच्छवास से होता है।
सवाल: अगला लक्ष्य क्या है?
देवव्रत रेखे: अगला लक्ष्य अभी कुछ सोचा नहीं है। जैसे पिताजी बोलेंगे, हम करते जाएंगे। अभी और अध्ययन करना बाकी है। और भी कई ऐसे ग्रंथ हैं, जिनका पारायण हुआ नहीं है, जिनका कोई अध्ययन नहीं करता। पिताजी ने आज्ञा की है कि उनका भी अध्ययन करना है।
युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
देवव्रत रेखे: मैं खुद युवा हूं तो मैं युवाओं का क्या संदेश दे सकता हूं? स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि उठो, जागो, दौड़ो, भागो और जब तक सफलता प्राप्त न हो, उसके लिए कार्य करते रहो। स्वामी विवेकानंद जी ने ही संदेश दिया है। उसी मार्ग पर हम चलते रहें।
बातचीत के समापन अवसर पर उन्होंने यजुर्वेद के मंत्र- 'ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परा सुव' का वाचन किया।
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देवव्रत के पिता महेश रेखे ने कहा कि व्यक्ति ने हर मुकाम, हर स्थान पर अपनी विजय की कामना करनी चाहिए। यह पुरुषार्थ भी है, लेकिन दो जगह पर अपनी पराजय होनी चाहिए। यह दो स्थान हैं- एक शिष्य और दूसरा पुत्र। भगवान की कृपा से मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि यह मेरा पुत्र भी है और शिष्य भी है। कोई भी व्यक्ति किसी को मार्गदर्शन करे तो वह अपने से अच्छा काम करे तो सबसे ज्यादा आनंद उसी को होता है, जो उसे पढ़ाता है। इसका आनंद अवर्णनीय है। अमर उजाला परिवार ने इस प्रकार हमें मंच पर बुलाकर हमारा सम्मान किया है, वह अद्भुत है।
सवाल: योगी जी ने भी बधाई दी। प्रमुख हस्तियों ने आपको शुभकानाएं दीं। क्या सभी को जवाब दे पाए?
महेश रेखे: हम सभी को जवाब तो ज्यादा नहीं दे पाए। जैसे ही 30 तारीख को पारायण का समापन हुआ, उसके बाद समय ही नहीं मिल सका। पहली बार ऐसा हुआ कि वैदिक शास्त्र और वैदिक अभ्यास से जुड़ी सनातन की मूल परंपरा के बारे में देश के प्रधानमंत्री जी ने कुछ कहा। जब मूल का सिंचन करते हैं, तभी उस वृक्ष पर पत्र और पुष्प आते हैं। हमारे धर्म का मूल वेद हैं। इसी वजह से आज हमारे सनातन धर्म में उत्साह का वातावरण निर्माण हुआ है। जो युवा पीढ़ी इस परंपरा में है, उनके मन में भी विचार उत्पन्न हुआ है कि हमें भी अपनी संस्कृति से जुड़ना चाहिए।
सवाल: पारायण के दौरान कैसी अनुभूति हुई?
देवव्रत रेखे: जब पारायण चल रहा था, तब ऐसा लग नहीं रहा था कि मैं खुद बोल रहा हूं। भगवान ही मुझसे बुलवा रहे थे। भगवान का आशीर्वाद रहा और उन्हीं की कृपा रही, इसलिए पारायण पूरा हो सका।
महेश रेखे: हमें पूरा विश्वास था कि वेद हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ हैं तो वेदों का महत्व और प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ेगा। जितने लोग वहां श्रवण के लिए आए थे, उन सभी का कथन था कि इस पारायण से उत्पन्न होने वाली आभा और ऊर्जा बहुत अलग है। वहां आने के बाद जो मन में संतुष्टि और शांति मिली, वो बहुत ही अलग थी। इन वेदों का कोई लेखनकर्ता नहीं है। वेदवाणी वास्तव में भगवान की वाणी है। वेद मंत्रों का साक्षात्कार भगवान के श्वास और उच्छवास से होता है।
सवाल: अगला लक्ष्य क्या है?
देवव्रत रेखे: अगला लक्ष्य अभी कुछ सोचा नहीं है। जैसे पिताजी बोलेंगे, हम करते जाएंगे। अभी और अध्ययन करना बाकी है। और भी कई ऐसे ग्रंथ हैं, जिनका पारायण हुआ नहीं है, जिनका कोई अध्ययन नहीं करता। पिताजी ने आज्ञा की है कि उनका भी अध्ययन करना है।
युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
देवव्रत रेखे: मैं खुद युवा हूं तो मैं युवाओं का क्या संदेश दे सकता हूं? स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि उठो, जागो, दौड़ो, भागो और जब तक सफलता प्राप्त न हो, उसके लिए कार्य करते रहो। स्वामी विवेकानंद जी ने ही संदेश दिया है। उसी मार्ग पर हम चलते रहें।
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