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भोपाल गैस कांड: जहरीले कचरे से निपटने के कितने तरीके, जहां नष्ट किया जा रहा वहां क्या हो सकता है खतरा? जानें

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 03 Jan 2025 04:02 PM IST
सार
यह जानना अहम है कि आखिर पीथमपुर में भोपाल गैस कांड के कचरे को नष्ट करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जा रही है? यह प्रक्रिया कितनी प्रभावी रही है? क्या इस जहरीले कचरे को खत्म करने के लिए कुछ और तरीके भी हैं? इसके अलावा दुनिया में कहां-कहां औद्योगिक आपदा के बाद पैदा हुए रासायनिक कचरे को ठिकाने लगाने की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? आइये जानते हैं...
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Bhopal Gas Tragedy Waste Pithampur Protests know dangers of Toxic Waste Management Incineration Landfilling
भोपाल गैस त्रासदी से पैदा हुए जहरीले कचरे को नष्ट करने पर भी चिंता। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड के आसपास पड़े कचरे को नष्ट करने के लिए 1 जनवरी से ही पीथमपुर पहुंचाना शुरू कर दिया गया। हालांकि, यहां जहरीले कचरे के खात्मे को लेकर अब माहौल उग्र हो गया है। तीन जनवरी को यहां के रहवासियों ने पीथमपुर बंद करने का एलान किया। लोगों में डर है कि भोपाल का केमिकल कचरा पीथमपुर आने से यहां का माहौल दूषित हो सकता है।


इस पूरे घटनाक्रम को लेकर मध्य प्रदेश सरकार से लेकर भाजपा के बड़े नेताओं तक के बयान आ चुके हैं। जहां सीएम समेत कुछ नेताओं ने इस प्रक्रिया के सुरक्षित होने की बात कही है, वहीं भाजपा के ही कुछ और नेताओं ने केमिकल कचरा खत्म करने को लेकर चिंता जताई है। मसलन भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हमें भी शहर की चिंता है। रातभर हमने सरकार को सोने नहीं दिया। वहीं, इंदौर की सांसद रहीं सुमित्रा महाजन ने कहा कि जहरीले कचरे को पीथमपुर में नष्ट करने के लिए एक्सपर्ट से सलाह लेना जरूरी है।


इस बीच पीथमपुर में शुक्रवार को प्रदर्शनों का दौर जारी रहा। लोगों के मन में कचरे को नष्ट करने की प्रक्रिया को लेकर कई तरह के सवाल उभर रहे हैं। इतना ही नहीं इस प्रक्रिया के जरिए कचरे के खात्मे और इससे उभरने वाले प्रभावों को लेकर भी संशय की स्थिति है।



ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर पीथमपुर में भोपाल गैस कांड के कचरे को नष्ट करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जा रही है? यह प्रक्रिया कितनी प्रभावी रही है? क्या इस जहरीले कचरे को खत्म करने के लिए कुछ और तरीके भी हैं? इसके अलावा दुनिया में कहां-कहां औद्योगिक आपदा के बाद पैदा हुए रासायनिक कचरे को ठिकाने लगाने की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? आइये जानते हैं...

रासायनिक कचरे को पीथमपुर में नष्ट करने पर सरकार का क्या तर्क?
इस मुद्दे पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने खुद आगे आकर साफ किया है कि रासायनिक कचरे को लेकर किसी भी तरह की आशंका नहीं है क्योंकि इसका पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सीएम ने भरोसा दिया कि सरकार पूरी संवेदनशीलता के साथ जहरीले कचरे के निपटान में जुटी है। भोपाल के लोग पिछले 40 साल से इसी कचरे के साथ रह रहे हैं, भारत सरकार की कई संस्थाओं के द्वारा कचरे का परीक्षण किया गया है। 



उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यूनियन कार्बाइड के 358 टन कचरे का वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार नष्ट करने के लिए पीथमपुर लाया जा रहा है। इस कचरे में 60 प्रतिशत मिट्टी और 40 प्रतिशत नेफ्थाल और अन्य प्रकार के केमिकल से जुड़े अपशिष्ट है। उन्होंने आगे बताया कि कीटनाशक बनाने में नेफ्थाल सह उत्पाद की भूमिका में रहता है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसका असर 25 वर्षों में समाप्त हो जाता है। चूंकि घटना को 40 वर्ष हो चुके हैं, इसलिए कचरे के निष्पादन को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही हैं वो स्वत: समाप्त हो जाती हैं।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव। - फोटो : अमर उजाला
उन्होंने बताया कि कचरे के निष्पादन के लिए कई संस्थाओं ने गहन अध्ययन और परीक्षण किया। कोर्ट और कई विभागों के सुझाव और परामर्श के बाद ये प्रक्रिया शुरु हुई। भारत सरकार की विभिन्न संस्थाओं जैसे नेशनल इन्वायरमेंट इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर, नेशनल जियोफिजिकल इंस्टीट्यूट हैदराबाद, आईआईसीटी यानी इंडियन इंस्टीट्यूट आफ केमिकल टेक्नोलॉजी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से किए गए अध्ययन और उनकी रिपोर्ट के बाद कचरा निष्पादन प्रक्रिया तय हुई।

इससे पहले 2013 में केरल के कोच्ची के संस्थान में 10 टन यूनियन कार्बाइड के समान कचरे का परिवहन कर इसे पीथमपुर में जलाकर परीक्षण किया जा चुका है। इसे सफलता के साथ जलाकर इसकी रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई। सभी निष्कर्षों की रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई, जिसमें कहा गया कि कचरे के निष्पादन से किसी प्रकार वातावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ है। सभी रिपोर्ट के गहन परीक्षण के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया की अनुमति दी गई। फैक्टरी के बाहर के कचरे का भी निष्पादन किया जाएगा इसीलिए भोपाल की 40 साल पुरानी समस्या का अब समाधान हो रहा है।

कितना खतरनाक है भोपाल गैस कांड से जुड़ा जहरीला कचरा?
बताया जाता है कि इस गैस लीक के चलते फैक्टरी के आसपास बड़ी मात्रा में फैली चीजें जहरीली हो गईं। खासकर कीटनाशक उत्पादन के बाद जो बचा हुआ कचरा फैक्टरी के सौर वाष्पीकरण तालाब (जहां सूरज की रोशनी से भाप बनाकर गंदे पानी को खत्म कर दिया जाता हो और ठोस पदार्थों को अलग इकट्ठा कर लिया जाता था) में पड़ा था, उसे गैस लीक के बाद जहां-तहां ही छोड़ दिया गया। इसका असर यह हुआ कि जहरीली गैस के प्रभाव में आने के बाद यह कचरा और ज्यादा खतरनाक हो गया। इसका असर फैक्टरी के आसपास मौजूद जल स्रोतों पर भी पड़ा और बड़ी संख्या में क्षेत्र में लगे हैंडपंपों को सील किया जा चुका है।

यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के पास जो कचरा था, उसमें कीटनाशक- सेविन के बायप्रोडक्ट शामिल हैं। इसके अलावा अधूरे उत्पादन के चलते कुछ केमिकल्स और इसे बनाने में लगा कच्चे केमिकल भी कचरे में शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतने वर्षों में यह कचरा जानलेवा केमिकल्स का भंडार बन चुका है। इसमें भारी धातुएं, जैसे निकेल और मैंगनीज की मौजूदगी है। इसके अलावा लेड, मरकरी और क्लोरिनेटेड नैप्थलीन शामिल हैं, जो कि कचरे के जहरीले होने की असली वजह हैं। यह केमिकल कैंसर जैसी बीमारी को जन्म दे सकते हैं। इसके अलावा यह बच्चों के विकास और मानव शरीर में कई और तरह की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। 
 

भोपाल गैस त्रासदी।
भोपाल गैस त्रासदी। - फोटो : अमर उजाला
भारत सरकार के साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यूनियन कार्बाइड के पास जो जहरीला कचरा इकट्ठा हुआ था, उसमें 1.1 मीट्रिक टन केमिकल से प्रभावित मिट्टी, एक टन मरकरी, 1500 मीट्रिक टन यूनियन कार्बाइड प्लांट का खराब हुआ मैटेरियल और 150 मीट्रिक टन भूमिगत रसायनिक कचरा है। इनमें से फिलहाल 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा ही पीथमपुर में नष्ट करने के लिए ले जाया गया है। 

जहरीले कचरे ने भोपाल को कैसे प्रभावित किया?
अब तक यह साफ नहीं है कि इस कचरे ने भोपाल में कितने क्षेत्र पर असर डाला है। हालांकि, एक एनजीओ ने 2004 में कहा था कि यूनियन कार्बाइड प्लांट से 5 से 10 किलोमीटर की दूरी तक कई हैंडपंपों में जहरीले केमिकल पाए जाने की बात सामने आई है। भारत के राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थान की रिपोर्ट में भूमिगत जल के डरावने स्तर तक जहरीले होने की बात सामने आने के बाद सरकार ने कई हैंडपंपों को सील कर दिया था। 

सरकारों की तरफ से अब तक ऐसी कोई स्टडी नहीं कराई गई है, जिससे यह पता लग सके कि फैक्टरी का यह जहरीला कचरा कितनी गहराई और कितनी लंबी दूरी तक भोपाल के पानी को प्रभावित कर चुका है। हालांकि, माना जाता है कि हर साल होने वाली बारिश के चलते इस जहरीले कचरे का असर बड़े क्षेत्र में फैल चुका है। 

भोपाल गैस कांड के कचरे को नष्ट करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जा रही
यूनियन कार्बाइड की बंद पड़ी फैक्टरी के बाहर फैले कचरे को एक जनवरी से हटाना शुरू किया गया है। योजना के मुताबिक, यह पूरा प्रोजेक्ट 180 दिन में खत्म किया जाना है। पहले 20 दिन में इस जहरीले कचरे को प्रदूषण वाली जगह से ड्रमों में भरकर और पैक कर नष्ट करने वाली जगह पर ले जाया जाएगा। बाद में इस कचरे को एक स्टोरेज केंद्र में रखा जाएगा, जहां इसमें उन केमिकल्स को मिलाया जाएगा, जो कि कचरे के जहरीले असर को खत्म कर देंगे। यानी केमिकल रिएक्शन के जरिए जहरीले कचरे को निष्क्रिय किया जाएगा। इसके बाद इस कचरे को फिर 3-9 किलो की मात्रा में बोरियों में भरा जाएगा।

इसके बाद इस कचरे को जलाने की तैयारियां शुरू होंगी। कचरे की जहरीली प्रकृति को खत्म करने के बाद इस पर कई टेस्ट्स होंगे और इन्हीं टेस्ट रिपोर्ट्स के आधार पर अलग-अलग विभागों से इसे इन्सिनरेटर (कचरा-भट्ठी) में जलाने की मंजूरी मांगी जाएगी। कचरे को जलाने से पहले यह तय किया जाएगा कि जहां इसे जलाया जा रहा है, वहां हवा की गुणवत्ता न खराब हो और जहरीले पदार्थ इसमें न मिल जाएं। इसके बाद 40 साल से पड़े इस कचरे को कचरा भट्ठी में जलाकर नष्ट कर दिया जाएगा। इस पूरे कार्य में केंद्र की तरफ से जारी 126 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान है। 

पीथमपुर में जलेगा यूनियन कार्बाइड का कचरा।
पीथमपुर में जलेगा यूनियन कार्बाइड का कचरा। - फोटो : अमर उजाला
किन दावों पर अभी भी उठ रहे सवाल?
एक तरफ जहां सरकार की तरफ से कचरे में मौजूद कई जहरीले पदार्थों की क्षमता कम होने का दावा किया जा रहा है तो वहीं अन्य रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि भोपाल से जो जहरीला कचरा पीथमपुर पहुंचाया गया है, उसमें पांच तरह के खतरनाक पदार्थ मौजूद हैं। इनमें कीटनाशक के सह-उत्पाद (जिनकी क्षमता एक समय के बाद खत्म हो जाती है) के अलावा कुछ फॉरेवर केमिकल्स (वे रसायन, जिनकी जहरीली क्षमताएं अनिश्चितकाल तक बनी रहती हैं) शामिल हैं। भारत सरकार के अंतर्गत आने वाले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) की 2018 की स्टडी में कहा गया है कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड के पास वर्षों से फैले कचरे ने आसपास के 42 रिहायशी क्षेत्रों में जमीन को दूषित कर दिया है।

जहरीले कचरे को खत्म करने वाली इस प्रक्रिया क्यों घेरे में?
इन्सीनिरेशन यानी कचरा भट्ठी में जहरीले कचरे को खत्म करने की इस प्रक्रिया पर कई सवाल भी उठते हैं। दरअसल, कई केमिकल कचरा भट्ठी में जलने के दौरान प्रतिक्रिया (केमिकल रिएक्शन) भी करते हैं और कई बार इनके पूरी तरह नष्ट न होने का खतरा भी बना रहता है। खासकर भारी जहरीले पदार्थ कई बार इस प्रक्रिया में खत्म नहीं होते। इसके अलावा इन जहरीले पदार्थों के जलने के बाद बनी राख और गैस के पर्यावरण में पहुंचने की संभावना भी बढ़ जाती है। यह जहरीली राख या गैस हवा और जमीन में मिलकर जहरीले कचरे जैसे प्रभाव ही पैदा कर सकते हैं। जहरीले पदार्थों के जलने से डायऑक्सिन और फ्यूरन्स के उत्सर्जन का सबसे ज्यादा खतरा रहता है, जो कि आसपास रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। इन्सिनिरेटर की बेहतरीन क्षमताओं के बावजूद कई बार इस तरह की गैस सफाई प्रणाली से बचकर निकल जाती है और पर्यावरण को प्रभावित करती है।

इसके अलावा इन्सिनिरेटर में जहरीले पदार्थों को नष्ट किए जाने के दौरान सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, भारी धातुएं और कुछ महीन कण या अंश भी कचरा भट्ठी से निकल सकते हैं। भारी धातुओं में मरकरी (पारा) सबसे जहरीला होता है, सामान्य तापमान में तरल होने की वजह से इसके उत्सर्जन की संभावनाएं भी काफी बढ़ जाती हैं। भोपाल गैस त्रासदी से जमा हुए कचरे में मरकरी का भी बड़ा हिस्सा पाया गया है। 

इन चिंताओं पर प्रशासन ने क्या जवाब दिया?
हालांकि,  इन सभी चिंताओं पर भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि शुरुआत में कुछ कचरे को पीथमपुर स्थित निपटान इकाई में जलाया जाएगा और अवशेष (राख) की जांच की जाएगी, ताकि पता लगाया जा सके कि कोई हानिकारक तत्व बचा है या नहीं। उन्होंने बताया कि अपशिष्ट निपटान प्रक्रिया से निकलने वाला धुआं विशेष चार-परत फिल्टर से होकर गुजरेगा, ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो। उन्होंने बताया कि एक बार जब यह पुष्टि हो जाती है कि जहरीले तत्वों का कोई निशान नहीं बचा है, तो राख को दो-परत वाली झिल्ली से ढक दिया जाएगा और उसे जमीन में दबा दिया जाएगा ताकि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आना सुनिश्चित किया जा सके।

क्या इस तरह के जहरीले कचरे को खत्म करने के लिए और तरीके भी हैं? 
दुनियाभर में औद्योगिक आपदा के बाद जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए कई और तकनीक भी अस्तित्व में हैं। हालांकि, अब तक ऐसी कोई एक प्रक्रिया नहीं है, जिसे हानिकारक पदार्थों का असर पूरी तरह खत्म करने वाला माना जाता हो। यानी जरूरी नहीं है कि जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए कोई एक तरीका ही हर तरह के हानिकारक कचरे को नष्ट करने में काम ही आए। 

विश्व में जहरीले कचरे को जलाकर नष्ट करने की प्रक्रिया- इन्सीनिरेशन और इन्हें मजबूती से पैक कर के दफनाने- लैंडफिल की प्रक्रिया सबसे ज्यादा चलन में रही है। इन दोनों ही तरीकों के इस्तेमाल से जोखिम भी जुड़े रहे हैं। आइये जानते हैं इन तरीकों बारे में...
 

पीथमपुर में सुबह से लाखों लोग सड़कों पर हैं।
पीथमपुर में सुबह से लाखों लोग सड़कों पर हैं। - फोटो : अमर उजाला, इंदौर
1. लैंडफिलिंग
इस प्रक्रिया के तहत जहरीले कचरों को जमीन में गहरा गड्ढा या खाई खोदकर उसमें गाड़ दिया जाता है। सुरक्षित लैंडफिल बनाने के लिए इन्हें पानी की पहुंच से बचाना सबसे जरूरी मानक है। इसके लिए जहरीले कचरे को आमतौर पर कॉन्क्रीट या ऐसे पदार्थ से बने बक्सों में पैक किया जाता है, जो कि कचरे में मौजूद केमिकल से प्रतिक्रिया न करें। यह पदार्थ कचरे को बारिश या पानी की पहुंच से भी बचाने में सक्षम होते हैं। हालांकि, इस तरह लैंडफिलिंग की प्रक्रिया पर करीब से नजर रखना जरूरी होता है। खराब पदार्थ या टूटी-फूटी पैकेजिंग से इस कचरे के फिर बाहर लीक होने का खतरा बना रहता है और इसके आसपास की जमीन, पानी और हवा तक पहुंच आसान हो सकती है। 

लैंडफिलिंग के जरिए जहरीला कचरा नष्ट करने का यह तरीका जोखिम भरा भी रहा है। चूंकि यह तकनीक काफी आधुनिक है, इसलिए इसकी सफलता से जुड़ा डाटा मौजूद नहीं है। लेकिन लंबे समय तक कचरे के एक जगह इकट्ठा रहना खतरा भी बना रहता है। खासकर फॉरेवर केमिकल्स के अनिश्चितकाल तक बने रहने की खासियत की वजह से। इसके लिए प्रशासनों की सतर्कता बेहद जरूरी रहती है और लीक डिटेक्टर्स के जरिए जहरीले कचरे की निगरानी जरूरी हो जाती है। इसके अलावा खेती और बारिश के की वजह से भूमिगत जलस्तर के बढ़ने का खतरा भी इस प्रक्रिया में जोखिम बढ़ा देता है। ऐसी स्थिति में जहरीले कचरे की वजह से आसपास के जल स्रोतों के दूषित होने का खतरा पैदा हो सकता है। 

ऐसे में कचरे को नष्ट करने की इस प्रक्रिया के दौरान और बाद में सावधानी काफी अहम हो जाती है। आमतौर पर यह प्रक्रिया अपनाने वाले प्रशासन उन जगहों को चुनते हैं, जहां बारिश कम होती है और वहां पानी और लोगों की पहुंच भी मुश्किल होती है। सरकारें और प्रशासन उन क्षेत्रों की निगरानी भी करते हैं, जहां जहरीले कचरे को दफनाया जा रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्राकृतिक या मानवीय दखल के कारण इस कचरे के फिर पर्यावरण से मिलने का खतरा न पैदा हो। 

2. भौतिक, रासायनिक या जैविक तरीका
इस प्रक्रिया के तहत जहरीले कचरे को भौतिक, रासायनिक या जैविक तरीकों से बेअसर किया जाता है। इससे कचरे में मौजूद जहरीले न्यूट्रलाइज होते हैं और इसके बाद इन्हें दूसरे तरीकों से नष्ट किया जाता है। कचरों को फिल्टर करना, एसिड और बेस को अलग अलग रसायनों के जरिए न्यूट्रलाइज करना या जहर नष्ट करने वाले बैक्टेरिया के इस्तेमाल (बैक्टेरियल डाइजेशन) के जरिए कचरे की जहरीली प्रकृति को खत्म किया जा सकता है। एक तरह से देखा जाए तो यह जहरीले कचरे को नष्ट करने का एक मध्यवर्ती तरीका है और इसके बाद बचे कचरे को भी परीक्षण के बाद ठीक ढंग से ठिकाने लगाना जरूरी हो जाता है। 

जहरीले कचरे के कंटेनर पहुंचे पीथमपुर।
जहरीले कचरे के कंटेनर पहुंचे पीथमपुर। - फोटो : अमर उजाला
3. स्टेबिलाइजेशन
स्टेबिलाइजेशन, जिसे सॉलिडिफिकेशन भी कहा जाता है मुख्यतौर पर लैंडफिलिंग से पहले ही इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया है। लैंडफिलिंग के साथ एक सबसे बड़ा खतरा जहरीले पदार्थों के जमीन के अंदर ही लीक हो जाने से जुड़ा है। हालांकि, स्टेबिलाइजेशन के जरिए जहरीले कचरे में मौजूद तरल पदार्थों को ठोस कर दिया जाता है, जिससे इनके लीक होने का खतरा कम हो जाता है। ऐसा जहरीले केमिकल्स को मजबूत बाइंडिंग एजेंट (ऐसे रसायन जो प्रतिक्रिया कर जहरीले केमिकल्स को बांध लें) के जरिए सख्त बना दिया जाता है। ये बाइंडिंग एजेंट- सीमेंट या कोई अन्य केमिकल हो सकता है। इसके बाद जहरीले कचरे को सुरक्षित तौर पर जमीन में दफनाया जा सकता है। 

स्टेबिलाइजेशन लैंडफिलिंग का सबसे सुरक्षित तरीका है। यह आमतौर पर तब अपनाया जाता है, जब जहरीला कचरे को कचरा भट्ठी में जलाना सुरक्षित नहीं होता। खासकर उन स्थितियों में जब कचरे में भारी धातुएं भी मौजूद हों। अच्छे तरीके से स्टेबिलाइज किए गए कचरे के जमीन में लीक होने का खतरा कम होता है। हालांकि, इसकी समय समय पर निगरानी आवश्यक है। 

4. स्टोरेज
हानिकारक कचरे का स्टोरेज इसके बुरे प्रभावों को अस्थायी तौर पर रोकने की सबसे आम प्रक्रिया है। इसके तहत जहरीले कचरे को उसके भौतिक चरित्र (पैदा होने वाले ठोस या तरल पदार्थ की मौजूदगी) के आधार पर कंटेनरों या बल्क टैंकों में इकट्ठा कर के रखा जाता है। हालांकि, यह तरीका जहरीले कचरे को नष्ट करने का नहीं, बल्कि उसे बाहरी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से रोकने का है।

कहां-कहां इन्सिनिरेटर के जरिए जहरीला कचरा नष्ट किया जाता है?
भोपाल के जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा इन्सिनिरेशन का तरीका भारत में नया हो सकता है, लेकिन जापान, सिंगापुर और नीदरलैंड जैसे कम जमीन वाले देशों में औद्योगिक कचरे के निपटान के लिए यही तरीका अपनाया जाता रहा है। इसके अलावा डेनमार्क और स्वीडन में औद्योगिक कचरे को कचरा भट्ठी (इन्सिनिरेटर) में डालकर ऊर्जा जरूरतें भी पैदा की जाती हैं। 

इसके अलावा यूरोप में लैंडफिलिंग के जरिए जहरीले औद्योगिक कचरे को नष्ट करने पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। इसलिए यूरोप के अधिकतर देशों में भी बीते वर्षों में इन्सिनिरेटर का इस्तेमाल बढ़ा है। दूसरी तरफ उत्तरी अमेरिका में 1885 से ही औद्योगिक और जहरीले कचरे को ठिकाने लगाने के लिए इसे कचरा भट्ठी में झोंकने की प्रथा जारी रही है। न्यूयॉर्क से लेकर, मैसाच्युसेट्स और आइओवा तक कचरे के निस्तारण के लिए इन्सिनिरेटर का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है।
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