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भोपाल गैस कांड: मानव इतिहास की सबसे भयावह गैस त्रासदी की सिर्फ बरसी पर ही क्यों आती है याद

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Updated Sun, 02 Dec 2018 06:06 PM IST
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Bhopal gas tragedy: Why disastrous gas tragedy in human history is only remembered on anniversary
भोपाल गैस त्रासदी
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भोपाल गैस त्रासदी, मानव इतिहास में अबतक विश्व की सबसे भयावह और दर्दनाक ओद्योगिक त्रासदी में से एक है। त्रासदी के पीड़ितों के लिए ये एक ऐसा जख्म है जो 34 साल बाद आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। 33 साल पहले, 2 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली कम से कम 30 टन अत्यधिक जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने हजारों लोगों की जान ले ली थीं। 

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उस सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे। हालांकि, गैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना जयादा थी।
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त्रासदी के दुष्प्रभाव जारी, आज की पीढ़ी भी है प्रभावित: 

33 साल बाद भी, गैस के संपर्क में आने वाले कई लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को जन्म दिया है। हालांकि लोग तो दशकों से, साइट को साफ करने के लिए भी लड़ रहे हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, 2001 में मिशिगन स्थित डॉव केमिकल के यूनियन कार्बाइड पर कब्जा करने के बाद कार्य धीरे हो गया। 

मानवाधिकार समूह कहते हैं कि हजारों टन खतरनाक अपशिष्ट भूमिगत दफनाया गया है, और यहां तक की  सरकार ने स्वीकार किया है कि क्षेत्र दूषित है। स्वस्थ को लेकर हालात कुछ ऐसे हैं की, भोपाल गैस कांड के बाद सरकार की ओर से बनाए गए गैस राहत विभाग में हर माह दर्जन भर आवेदन ऐसे आते हैं, जिसमें कैंसर के इलाज के लिए आर्थिक सहायता की मांग की जाती है। 

बता दें की इस गैस त्रासदी में पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। हजारों लोग की मौत तो मौके पर ही हो गई थी. जिंदा बचे लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। कैंसर एक अकेली बीमारी नहीं है, जिससे गैस प्रभावित लोग जूझ रहे हैं, सैकड़ों बीमारियां हैं। घटना के 33 साल बाद भी गैस कांड के दुष्प्रभाव खत्म नहीं हो रहे हैं। 

मुआवजे जो सिर्फ वादे बनकर रह गए: 
 

दुर्भाग्यवश, इतने सालों में घटना को हर बार बरसी के याद कर लिया जाता है, दोषी को सजा दिलाने और अतिरिक्त मुआवजा दिलाने के तमाम वादे किए जाते हैं। लेकिन दिन गुजरते ही वादों को घटना की तरह दफन कर दिया जाता है। 

चूंकि, यूनियन कार्बाइड कारखाने का मालिकाना अधिकार अमेरिका की कंपनी के पास होने के कारण हमेशा यह मांग उठती रही है कि गैस पीड़ितों को मुआवजे की मांग डॉलर के वर्तमान मूल्य पर की जाना चाहिए। हालांकि, इस याचिका में दिए गए निर्देश अभी भी सरकारी फाइलों में ही बंद हैं। 

इसके लिए वर्ष 2010 में एक पिटिशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी थी। इस पीटिशन में 7728 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग की गई थी। कंपनी से वर्ष 1989 में जो समझौता हुआ था, उसके तहत 705 करोड़ रुपए मिले हैं। सरकार का तर्क है कि गैस कांड से प्रभावित और मृतकों की संख्या बढ़ी है, इस कारण मुआवजा भी बढ़ाना चाहिए। 

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