Birsa Munda: पीएम मोदी को यूं ही नहीं याद आए बिरसा मुंडा, 155 सीटों पर नैया पार लगाएंगे आदिवासी
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विस्तार
प्रधानमंत्री मोदी 15 नवंबर को आदिवासियों के नायक भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती पर विभिन्न योजनाओं की शुरुआत करेंगे। पांच चुनावी राज्यों की कुल 679 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं, लेकिन इसमें आदिवासियों के लिए 155 सीटें आरक्षित हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में आदिवासी मतदाता ही सरकार बनाने की भूमिका में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, तो अन्य राज्यों में भी इनकी भूमिका बहुत अहम है। यही कारण है कि भाजपा सहित सभी सियासी दल इन्हें साधने की कोशिश कर रहे हैं। आइये देखते हैं कि किस चुनावी राज्य की सियासत में आदिवासी समुदाय की अहमियत क्या है...
मध्यप्रदेश में आदिवासी
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में आदिवासियों का हिस्सा लगभग 21.10 फीसदी है। यानी मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि राज्य का हर पांचवा मतदाता आदिवासी है। इस समय प्रदेश में इनकी अनुमानित जनसंख्या लगभग दो करोड़ है। मध्यप्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। इनमें 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन माना जाता है कि आदिवासी समुदाय राज्य की 84 सीटों को प्रभावित करता है।
कहा जाता है कि मध्यप्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, यह आदिवासी मतदाता तय करते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम इस बात की तरफ स्पष्ट इशारा भी करते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 47 सुरक्षित आदिवासी सीटों में 30 पर सफलता हासिल की थी। इस कारण वह सत्ता तक पहुंचने में सफल रही थी। इसके पूर्व यानि 2013 में भाजपा ने इन्हीं 47 सीटों में 31 सीटों पर जीत हासिल की थी और उसने सरकार बनाने में सफलता पाई थी। इस बार आदिवासियों का दिल जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपना जोर लगा रखा है।
छत्तीसगढ़ में क्या है स्थिति?
चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ की विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं। इनमें लगभग एक तिहाई यानी 29 विधानसभा सीटों को आदिवासियों के लिए सुरक्षित रखा गया है। राज्य की कुल आबादी में आदिवासियों का हिस्सा करीब 34 फीसदी है, स्वाभाविक रूप से इस राज्य में भी आदिवासी मतदाता यह तय करने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि प्रदेश में किसकी सरकार बने। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन सुरक्षित सीटों में 27 पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस बड़े बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही थी। भाजपा केवल दो आदिवासी सुरक्षित सीटें जीत पाई थी।
इस बार भाजपा को लगता है कि उसने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासी समुदाय को गौरव प्रदान किया है, ऐसे में उसे इनका साथ मिल सकता है। चूंकि, द्रौपदी मुर्मू छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य ओडिशा की रहने वाली हैं और एक अन्य पडोसी राज्य झारखंड की राज्यपाल भी रही हैं, भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है। राज्य के गठन से ही भाजपा यहां की सत्ता की सबसे प्रबल दावेदार रही। इस बार भी पीएम नरेंद्र मोदी आदिवासियों को यह बता रहे हैं कि छत्तीसगढ़ का गठन भाजपा ने ही किया था और वही इसका विकास भी करेगी। यानी भाजपा भावनातमक मुद्दे पर आदिवासियों को साधने की कोशिश कर रही है।
वहीं, कांग्रेस को भूपेश बघेल सरकार में ग्रामीण आदिवासियों के लिए किये गए कार्यों पर भरोसा है। जिस तरह गाय के गोबर को खरीदने की योजना शुरू की गई है, इसका सबसे ज्यादा लाभ आदिवासियों को ही हुआ है। यह गरीबों के लिए एक आकर्षक आय का स्रोत बनकर उभरा है। किसी भी भावनात्मक मुद्दे की बजाय आर्थिक लाभ मतदाताओं को ज्यादा मजबूती के साथ आकर्षित कर सकते हैं। ऐसे में आदिवासी मतदाताओं पर कांग्रेस का दावा भी किसी भी तरह से कमजोर करके नहीं आंका जा रहा है। हालांकि, नई-नई बनी हमर राज पार्टी उसके लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
राजस्थान में आदिवासी किसके साथ
चुनावी राज्यों में भाजपा के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण माने जा रहे राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। राज्य के आठ जिलों में 45.5 लाख आदिवासी रहते हैं। मेवाड़ क्षेत्र इस दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसका महत्त्व देखते हुए ही पीएम मोदी ने इस क्षेत्र के मानगढ़ धाम में जनसभा को संबोधित कर आदिवासियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तुलना में कम हिस्सेदारी होने के बाद भी पिछले तीन चुनावों का परिणाम यही है कि जिस राजनीतिक दल ने आदिवासियों का दिल जीता, जयपुर में सरकार उसी ने चलाई।
भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही खतरे की घंटी बनकर उभरी है। पिछले चुनावों में इस पार्टी ने कोई बड़ी सफलता नहीं हासिल की थी, लेकिन थोड़े बहुत वोटों के कटने से भी यहां परिणाम में बड़ा परिवर्तन हो सकता है।
तेलंगाना में आदिवासियों की अहमियत
तेलंगाना की कुल 119 सीटों में से 12 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। कम सीट संख्या होने के बाद भी यह सभी दलों की प्रमुखता में आता है। प्रधानमंत्री ने तेलंगाना के आदिवासियों को लुभाने के लिए उनकी देवी 'सम्मक्का-सरक्का' के नाम पर विशेष आदिवासी विश्वविद्यालय खोलने का एलान किया है। इसके लिए 900 करोड़ रुपये का विशेष फंड निर्धारित कर नियमों में बदलाव को भी स्वीकृति दे दी गई है। वहीं, कांग्रेस का दावा है कि जिस तरह उसने कर्नाटक की सभी 15 आदिवासी सीटें जीतने में सफल रही थी, उसी तरह वह यहां भी सभी सीटें जीतने में सफल रहेगी।
मिजोरम की स्थिति
मिजोरम की लगभग 98 फीसदी आबादी आदिवासी समुदाय की विभिन्न जातियों की है। यही कारण है कि यहाँ के विधानसभा की 40 सीटों में से 39 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। ऐसा इसलिए किया गया है जिससे धन-बल के प्रभाव में कोई शक्तिशाली व्यक्ति या दल आदिवासियों को प्रभावित कर यहां की सत्ता पर काबिज न हो सके। यहां की सत्ता में आदिवासियों के लिए लगभग सौ फीसदी आरक्षण यह सुनिश्चित करता है कि आदिवासी समुदाय अपना शासन-प्रशासन स्वयं संभालें और अपनी प्राथमिकताओं को देखते हुए राज्य का विकास करें।