CAPF: युवा कैडर अफसरों को आधे सेवाकाल में भी पहली पदोन्नति नहीं, अब 30 दिन में मांगा 'कैडर समीक्षा प्रपोजल'
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के ग्रुप-ए कैडर अधिकारियों को 15 वर्ष सेवा के बाद भी पहली पदोन्नति नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट से पदोन्नति और वित्तीय लाभ का फैसला उनके पक्ष में आने के बावजूद अमल नहीं हुआ, जिस पर अवमानना याचिका दायर की गई। इसके बाद गृह मंत्रालय ने सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी और असम राइफल्स से 30 दिन में कैडर समीक्षा प्रस्ताव मांगा है।
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केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कैडर अधिकारी (ग्रुप-ए), विशेषकर युवा अफसरों को अपने सेवाकाल के 15 वर्ष बीतने के बावजूद पहली पदोन्नति नहीं मिल सकी है। खास बात है कि कैडर अफसरों ने पदोन्नति एवं वित्तीय हितों की यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट से जीत ली है, लेकिन उन्हें फायदा नहीं दिया गया। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कैडर अफसरों की तरफ से छह दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका लगाई गई। नतीजा, गत सप्ताह केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी छह बलों 'सीआरपीएफ', 'बीएसएफ', 'सीआईएसएफ' 'आईटीबीपी', 'एसएसबी' और 'असम राइफल' से तीस दिन के भीतर 'कैडर समीक्षा प्रपोजल' मांगा है। इस प्रपोजल में 'ग्रुप ए' कैडर का विस्तृत एवं गहराई से रिव्यू करना होगा। शुरु से लेकर अब तक कैडर रिव्यू की क्या स्थिति रही है, नए रिक्रूटमेंट रूल्स व 'संगठित समूह ए सेवा' (ओजीएएस) का दर्जा, ये सब बातें कैडर रिव्यू प्रपोजल में शामिल रहेंगी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी छह केंद्रीय बलों के ग्रुप ए अधिकारियों के कैडर की व्यापक समीक्षा करने के लिए कार्यालय ज्ञापन जारी किया है। कैडर अफसरों के मुताबिक, संपूर्ण तरीके से और नियमानुसार ओजीएएस का दर्जा मिले। यह 'नॉन-फंक्शनल वित्तीय उन्नयन' (एनएफएफयू) तक सीमित न रहे। सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2025 में आईटीबीपी, सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, असम राइफल और एसएसबी सहित सभी सीएपीएफ में छह माह के भीतर कैडर समीक्षा करने का निर्देश दिया था। यह समीक्षा मूल रूप से 2021 के लिए निर्धारित थी, लेकिन अभी तक यह कैडर रिव्यू लंबित है। बीएसएफ और सीआरपीएफ की बात करें तो इन बलों में 2016 के बाद से कैडर रिव्यू नहीं हो सका है। डीओपीटी का नियम है कि प्रत्येक पांच साल में यह कैडर रिव्यू होना चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को आदेश दिया था कि वह केंद्रीय गृह मंत्रालय से कैडर समीक्षा और मौजूदा सेवा नियमों व भर्ती नियमों की समीक्षा के संबंध में कार्रवाई रिपोर्ट प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर उचित निर्णय ले। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के छह माह बाद भी संबंधित मंत्रालय ने इस केस में जरुरी कार्रवाई नहीं की। नतीजा, कैडर अफसरों की तरफ से छह दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका लगा दी गई। सुप्रीम कोर्ट का 23 मई 2025 का यह फैसला, गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन, कैडर समीक्षा और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए भर्ती नियमों के पुनर्गठन व संशोधन की मांग वाली कई याचिकाओं पर आया था।
सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि देश की सीमाओं पर सुरक्षा बनाए रखने के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों के निर्वहन के लिए सीएपीएफ की भूमिका महत्वपूर्ण है। केंद्रीय गृह मंत्रालय को छह माह के भीतर इस फैसले का पालन करना था। इस अवधि के दौरान केंद्र सरकार, रिव्यू पिटीशन में चली गई। 28 अक्तूबर को सर्वोच्च अदालत में जस्टिस सूर्य कांत (अब चीफ जस्टिस) और जस्टिस उज्जल भुइयां की बैंच द्वारा रिव्यू पिटीशन को डिसमिस कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि केंद्रीय बलों में आईपीएस की प्रतिनियुक्ति को धीरे-धीरे कम किया जाए। दूसरी तरफ गत छह माह में केंद्रीय बलों में आईपीएस की प्रतिनियुक्ति में तेजी देखने को मिली। सीएपीएफ में डीआईजी के पदों पर आईपीएस अफसरों की तैनाती का ग्राफ ऊपर की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया।
न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका एवं जस्टिस उज्जल भुइयां की बैंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि इन बलों में प्रतिनियुक्ति को धीरे धीरे कम किया जाए। कम से कम सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड 'एसएजी' में तो प्रतिनियुक्ति बंद हो। सुनवाई में यह बात सामने आई कि केंद्र की 'समूह-'ए' सेवा में 19-20 वर्ष में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) मिल रहा है तो वहीं केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में 36 वर्ष तक लग रहें हैं। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में 'संगठित सेवा का दर्जा' देने और कैडर अधिकारियों के दूसरे हितों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इन बलों में 'संगठित समूह ए सेवा' (ओजीएएस) सही मायने में लागू किया जाए। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में केवल एनएफएफयू (नॉन फंक्शनल फाइनेंशियल अपग्रेडेशन) के लिए नहीं, बल्कि सभी कार्यों के लिए 'ओजीएएस पैटर्न' लागू हो।
सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि आईपीएस अफसरों के प्रतिनियुक्ति पर आने के कारण कैडर अधिकारी, पदोन्नति में पिछड़ जाते हैं। उन्हें सीएपीएफ में नेतृत्व का अवसर नहीं मिल पाता। ऐसे में केंद्रीय बलों में आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को धीरे धीरे कम कर दिया जाए। सीआरपीएफ के पूर्व एसी एवं अधिवक्ता सर्वेश त्रिपाठी बताते हैं कि कैडर अधिकारियों के पास अवमानना याचिका लगाने के अलावा अब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू ही नहीं करना चाहती। अगर सरकार इस केस में, सकारात्मक रूख अपनाती तो वह रिव्यू पिटीशन में नहीं जाती। अब तीस दिन में कैडर रिव्यू प्रपोजल मांगा गया है। यूपीएससी से सेवा में आए ग्राउंड कमांडर यानी सहायक कमांडेंट को 15 साल में भी पहली पदोन्नति नहीं मिल रही।
बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद कहते हैं, कैडर अफसरों के पास कार्य करने की क्षमता और लंबा अनुभव है, लेकिन पॉलिसी लेवल पर निर्णय लेने में इनका इस्तेमाल बहुत कम है, जबकि बॉर्डर या इंटरनल सिक्योरिटी में इनका बड़ा योगदान है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने के बावजूद कैडर अफसरों को कोई राहत नहीं दी। कैडर अधिकारियों के नेतृत्व में अर्धसैनिक बलों ने राष्ट्र की सुरक्षा तंत्र में अपनी विशिष्ट और निर्णायक भूमिका के साथ एक लंबी यात्रा की है। सीएपीएफ अफसरों ने अपने अपने डोमेन में विशेषज्ञता अर्जित कर ली है। इन अधिकारियों ने कंपनी कमांडर से लेकर कमांड के उच्च पदों तक, समय-समय पर अनुकरणीय नेतृत्व, व्यावसायिकता और परिचालन दक्षता का प्रदर्शन किया है। इतिहास, सैकड़ों सीएपीएफ अधिकारियों द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदानों का साक्षी है। इतना होने पर भी पुलिस अफसरों द्वारा इन्हें कमांड किया जाता है।
पुलिस अधिकारी, अपने राज्य को छोड़कर केंद्र में इन बलों में प्रतिनियुक्ति पर आ जाते हैं। ऐसे में पुलिस अधिकारियों को काम करने का तरीका मालूम नहीं होता। सूद के मुताबिक, वे इन बलों को चलाने का प्रयास करते हैं। 1986 से सरकार ने इन्हें ओजीएएस माना था। 2006 में वेतन आयोग ने इन्हें एनएफएफयू देने का समर्थन किया। इसे भी लागू नहीं किया गया। नतीजा, कैडर अफसरों न तो समय पर पदोन्नति मिल सकी और न ही वित्तीय फायदे। सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ और दूसरे बलों में बहुत पदोन्नति को लेकर हालात खराब होते चले गए।
अब हालत ऐसी हो गई है कि कैडर अधिकारी, कमांडेंट के पद से ही रिटायर हो जाएंगे। दो तीन सौ में से एक आध ही अफसर ही 'एडीजी' तक पहुंच सकेगा। 2015 में जब दिल्ली हाईकोर्ट ने कैडर अफसरों के हक में फैसला दिया तो सरकार उसके खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में चली गई। 2019 में सरकार की एसएलपी डिसमिस हो गई। सर्वोच्च अदालत ने कहा, इन बलों के कैडर अधिकारी, ओजीएएस के हकदार हैं।
सर्वेश त्रिपाठी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीएपीएफ में प्रतिनियुक्ति को धीरे धीरे खत्म किया जाना चाहिए। इन बलों में पहले सैन्य अधिकारी भी प्रतिनियुक्ति पर आते थे, लेकिन बाद में उस पहल को बंद कर दिया गया। आईपीएस की प्रतिनियुक्ति को नहीं रोका जा सका। अब आईपीएस की प्रतिनियुक्ति बंद होनी चाहिए। वजह, आईपीएस के चलते कैडर अधिकारी, पदोन्नति में पिछड़ जाते हैं। उन्हें नेतृत्व का अवसर नहीं मिल पाता। डेढ़ दशक में पदोन्नति नहीं मिल रही। कंपनी कमांडर को शीर्ष पदों पर जाने का अवसर दिया जाए।